23-Jun-2020 12:00 AM
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लॉकडाउन के बाद एक बार फिर से लाल आतंक एक्टिव हो गया है। प्रदेश के बालाघाट सहित नक्सल प्रभावित सभी जिलों में माओवादियों की गतिविधियां तेज हो गई हैं। पिछले एक माह में प्रदेश में पुलिस और नक्सलियों के बीच कई मुठभेड़ हो चुकी हैं। जिसमें पुलिस को हथियार, नक्सल साहित्य आदि मिले हैं।
भारत में लाल आंतक की वजह से चर्चित दंडकारण्य के सबसे सुरक्षित क्षेत्र बालाघाट में इन दिनों नक्सली काफी सक्रिय हैं। लॉकडाउन के दौरान जहां नक्सली भी अपने-अपने क्षेत्रों में लॉक थे, वहीं लॉकडाउन खत्म होते ही इनकी सक्रियता बढ़ गई है। बालाघाट सहित मप्र के नक्सल प्रभावित सभी क्षेत्रों में नक्सलियों की सक्रियता देखी जा रही है। सूत्रों का कहना है कि नक्सली बालाघाट को आधार मुख्यालय बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसका संकेत इससे भी मिल रहा है कि बालाघाट सहित पूरे दंडकारण्य इलाके में नक्सली गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं।
नक्सली बालाघाट को मुख्यालय क्यों बनाना चाहते हैं, इस संदर्भ में पुलिस विभाग के सूत्रों के अनुसार दंडकारण्य इलाके में बालाघाट के जंगलों को नक्सली अपने लिए सबसे सुरक्षित जगह मान रहे हैं। वह कहते हैं कि दंडकारण्य विंध्याचल पर्वत से गोदावरी तक फैला हुआ प्रसिद्ध वन है। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से सहित मप्र का बालाघाट भी शामिल है। बालाघाट का क्षेत्रफल 9,245 वर्ग किमी है। इसका वन क्षेत्र अभी भी सघन है और पुलिस की सक्रियता अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कम है।
टाइल्स कारखानों और चावल मिलों के लिए प्रसिद्ध बालाघाट भौगोलिक नजरिए से नक्सलियों के लिए शुरू से अहम रहा है। माओवादियों के पृथक दंडकारण्य के नक्शे के लिहाज से देखें तो बालाघाट रेड कारपेट कॉरीडोर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह जिला महाराष्ट्र के नक्सली प्रभावित जिले गढ़चिरौली और चंद्रपुर और छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के बीच गलियारा कहा जा सकता है। बस्तर और राजनांदगांव के नक्सली दलम और महाराष्ट्र के नक्सली टोलियों की महत्वपूर्ण बैठकें भी बालाघाट में होती रही हैं। तेलंगाना में कमजोर हो चुके माओवाद की भरपाई वे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से करना चाहते हैं। मध्य प्रदेश में अमरकंटक से लेकर गुजरात के मुहाने तक सटे बड़वानी जिले तक नक्सलवाद के विस्तार की उनकी योजना है। नर्मदा नदी से सटे जंगलों में अपना साम्राज्य कायम करने की उनकी पुरानी हसरत है।
सूत्रों के अनुसार, नक्सली देश में बड़ी वारदात करने की तैयारी में हैं। इसके लिए ओडिशा और आंध्रप्रदेश के रास्ते उनके पास गोला-बारूद पहुंच रहा है। खास बात यह है कि पिछले कुछ माह में नक्सलियों ने सबसे अधिक सक्रियता बालाघाट सहित मप्र के नक्सल प्रभावित जिलों में बढ़ाई है। बालाघाट में पुलिस और नक्सलियों के बीच पिछले दो माह में कई मुठभेड़ हो चुकी है। 7 जून को मंडला जिले के जंगल मेें पुलिस और नक्सलियों में मुठभेड़ हुई। मंडला पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार शुक्ला कहते हैं कि मंडला जिले के मोतीनाला थाना क्षेत्र में नक्सलियों की उपस्थिति देखी जाती रही है। पुलिस को मुखबिर से सूचना मिलने पर थाना क्षेत्र के एंटी नक्सल बल हॉकफोर्स के द्वारा नक्सलियों की तलाश की जा रही थी। इस दौरान पुलिस और नक्सलियों का लगातार दो दिन तक आमना-सामना हुआ। 7 जून को तो पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई और गोलियां भी चलीं। लेकिन नक्सली मौके का फायदा उठाते हुए जंगल के बीच सामान छोड़कर भाग गए। नक्सलियों की संख्या 3 थी। छत्तीसगढ़ सीमा से लगते हुए खुजराही और नेवसा के बीच जंगल में नक्सली थे।
हाल के दिनों में दंतेवाड़ा में फोर्स ने रिमोट आधारित लैंडमाइन बरामद की थी। इससे पहले भी उनके पास से अति आधुनिक हथियार मिल चुके हैं। अभी कुछ दिनों पहले कांकेर पुलिस ने नक्सलियों के 11 सप्लायरों को गिरफ्तार किया है। इससे पहले भी कई बार नक्सलियों के शहरी नेटवर्क से जुड़े आरोपितों की गिरफ्तारी हो चुकी है। हालांकि उच्चाधिकारियों की मानें तो हथियारों के मामले में उनकी मुख्य ताकत मुठभेड़ के बाद जवानों से लूटे हथियार ही हैं। उधर, कोरोना के खिलाफ जंग को कामयाब बनाने के लिए घोषित लॉकडाउन के कारण नक्सलियों की भी कमर टूटने लगी है। मप्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों से मिल रही खबरों के मुताबिक लॉकडाउन का नक्सलियों पर व्यापक असर दिख रहा है।
बड़ी वारदात कर सकते हैं नक्सली
मप्र इंटेलीजेंस को इनपुट मिले हैं कि छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में नक्सलियों ने मप्र का रुख किया है। नक्सली मप्र में बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं। इसलिए बालाघाट सहित प्रदेश के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस की गतिविधियां बढ़ गई हैं। सूत्र बताते हैं कि 17 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के सुकमा के चिंतलनार, 28 अप्रैल को मप्र के बालाघाट जिले के लांजी क्षेत्र के सीमावर्ती गांव मोहन खोदरा और 2 मई को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ ऐसे दस्तावेज हाथ लगे हैं, जिसमें यह बात सामने आई है कि माओवादियों ने वनोपज और तेंदूपत्ता से करोड़ों रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है और इसके लिए वन क्षेत्र का बंटवारा कर लिया है। मप्र का तेंदूपत्ता सबसे अच्छा रहता है। इस बार भी नक्सली तेंदूपत्ता वाले वन क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं। इंटेलीजेंस के सूत्रों के अनुसार, नक्सलियों की सक्रियता की खबर मिलते ही बालाघाट, सीधी, सिंगरौली, मंडला, डिंडौरी, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में पुलिस का सतर्क कर दिया गया है। ऑपरेशन से जुड़े अफसरों ने बताया कि फोर्स के दबाव मेंं पिछले काफी समय से बैकफुट पर चल रहे माओवादी आर्थिक रूप से कमजोर हो गए हंै। वहीं लॉकडाउन के चलते रही-सही कसर पूरी हो गई है। कोरोना वायरस के चलते उनके पास खाने तक का सामान नहीं है।
- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया