कुपोषण मुक्त होगा मप्र
20-Nov-2021 12:00 AM 790

 

मप्र में कुपोषण के कलंक को समूल नष्ट करने के लिए सरकार ने कमर कस ली है। कुपोषितों को पोषण आहार मुहैया कराने के लिए जहां सरकार ने पोषण आहार संयंत्रों की जिम्मेदारी महिलाओं के हाथ में दे दी है, वहीं प्रदेश को कुपोषण के अभिशाप से मुक्ति दिलाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 10 साल की कार्ययोजना बनाई है। कार्ययोजना के अंतर्गत तीन स्लैब रखे गए हैं। पहला स्लैब वर्ष 2022, दूसरा वर्ष 2025 और तीसरा और अंतिम वर्ष 2030 तक का है। यानी 2030 तक मप्र पूरी तरह कुपोषण मुक्त राज्य बन जाएगा।

सबल एवं सशक्त राष्ट्र निर्माण के लिए बचपन का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। कुपोषण किसी भी राष्ट्र के लिए अभिशाप के समान है। हमारे देश में कुपोषण एक अभिशाप है। मप्र में कुपोषण की गंभीर स्थिति है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने पहले शासनकाल से ही कुपोषण को खत्म करने के लिए अभियान चला रहे हैं। इसका असर यह हुआ है कि आज मप्र में कुपोषण कंट्रोल में है। लेकिन मुख्यमंत्री इतने से संतुष्ट नहीं हैं। इसलिए उन्होंने प्रदेश को कुपोषण के अभिशाप से मुक्ति दिलाने के लिए 10 साल की कार्ययोजना बनाई है। इस कार्ययोजना के तहत सरकार और आमजन मिलकर कुपोषण को दूर भगाएंगे।

गौरतलब है कि एक दशक पहले तक मप्र की गिनती सबसे अधिक कुपोषित राज्य में होती थी। लेकिन आज मप्र की स्थिति सुधर गई है। अभी हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में बताया है कि देश में 33 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं और इनमें से आधे से अधिक अत्यंत कुपोषित की श्रेणी (एसएएम) में आते हैं। कुपोषित बच्चों वाले राज्यों में महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात शीर्ष पर हैं। यानी मप्र में कुपोषण के मामले में लगातार गिरावट आ रही है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर जो कार्ययोजना बनाई गई है, उसमें जनभागीदारी को विशेष महत्व दिया गया है। सरकार का प्रयास है कि जिस तरह कोरोना महामारी को जनभागीदारी से दूर किया गया, उसी तरह कुपोषण को भी समाप्त किया जाए। गौरतलब है कि कार्ययोजना के अंतर्गत तीन स्लैब रखे गए हैं। पहला स्लैब वर्ष 2022, दूसरा वर्ष 2025 और तीसरा और अंतिम वर्ष 2030 तक का है। इसमें सरकार योजनाबद्ध तरीके से साल दर साल कार्ययोजना का क्रियान्वयन कर आंकलन करेगी कि इसमें हमने क्या हासिल किया और क्या प्रयास किए जाने चाहिए सुनिश्चित किया जाएगा। इस कार्ययोजना की तीन स्तर पर मॉनीटरिंग की जाएगी। पहली राज्य स्तर यानी पूरे राज्य स्तर की मॉनीटरिंग होगी, दूसरी जिला स्तर यानी पूरे जिला स्तर की मॉनीटरिंग होगी और तीसरी ग्राम व नगरीय निकाय स्तर की मॉनीटरिंग होगी।

लेकिन केवल सरकारी प्रयास से ही कुपोषण के अभिशाप से मुक्ति नहीं मिल सकती है। इसमें आमजन की सहभागिता जरूरी है। क्योंकि स्वास्थ्य से जुड़े कारणों के अलावा इस समस्या के सामाजिक कारण भी हैं। कुपोषण तब होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्वों की सही मात्रा नहीं होती है। भोजन आपको स्वस्थ रखने के लिए ऊर्जा और पोषक तत्व प्रदान करता है। यदि आपको प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलते हैं तो आप कुपोषण से पीड़ित हो सकते हैं। कुपोषण के कई कारण हैं। इनमें से गरीबी कुपोषण का प्रमुख कारण है। इसके अलावा लड़का-लड़की के बीच का भेदभाव, कम उम्र में मां बनना, स्तनपान का अभाव बच्चों में कुपोषण की वजह है। और इन सबकी वजह है शिक्षा और ज्ञान की कमी। इसलिए प्रदेश सरकार ने कुपोषण के अभिशाप से मुक्ति का जो अभियान शुरू किया है उसमें हर एक व्यक्ति को सहभागी बनना होगा। अधिकांश लोगों, विशेषकर गांव, देहात में रहने वाले व्यक्तियों को संतुलित भोजन के बारे में जानकारी नहीं होती, इस कारण वे स्वयं अपने बच्चों के भोजन में आवश्यक वस्तुओं का समावेश नहीं करते, इस कारण वे स्वयं तो इस रोग से ग्रस्त होते ही हैं साथ ही अपने परिवार को भी कुपोषण का शिकार बना देते हैं। इसलिए लोगों के बीच जागरुकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

कार्ययोजना के तहत कुपोषित बच्चों का निरंतर फॉलोअप लिया जाएगा। ताकि यह पता चल सके कि बच्चे की स्थिति क्या है। जानकारी के अनुसार, परिजन कुपोषित बच्चों का एक फॉलोअप करा रहे हैं। इसके बाद दूसरी और तीसरी फॉलोअप नहीं करा रहे हैं। इससे काफी संख्या में बच्चे कुपोषित ही रह जा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में फिलहाल 10,84,948 बच्चे  मध्यम कुपोषित और 1,19,574 अति कुपोषित हैं। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम यानी एसआरएस के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में कुपोषण हर 1000 में से 46 बच्चों को लील लेता है। इनमें अधिकांश वे बच्चे होते हैं जिनके चारों फॉलोअप पूरे नहीं हो पाते हैं। सूत्र बताते हैं कि एक बार किसी तरह एनआरसी कुपोषित बच्चों के इलाज के लिए पहुंच जाते हैं। यहां पर 14 दिन तक इलाज के बाद वापस चले जाते हैं लेकिन दोबारा नहीं पहुंच रहे हैं। इससे दोबारा घर जाते ही फिर कुछ दिन बाद बच्चा कुपोषित हो जाता है। इसमें जहां एक ओर परिजनों की लापरवाही सामने आ रही है, वहीं दूसरी ओर मैदानी अमले की भी उदासीनता उजागर हो रही है।

यह हालत तब हैं जब कुपोषित बच्चों के साथ भर्ती माताओं को भत्ता भी मिलता है। कुपोषित बच्चों के परिजनों को एक फॉलोअप यानी 14 दिन के लिए 1680 रुपए क्षतिपूर्ति भत्ता मिलता है। दरअसल एनआरसी में कुपोषित बच्चों के साथ भर्ती माताओं को उचित समझाइश नहीं मिल रही है। इसके चलते वे बच्चों की स्वास्थ्य को लेकर गंभीर नहीं हो पा रही हैं और पूरे फॉलोअप नहीं करा रही हैं। दरअसल कुपोषित बच्चों के साथ उनके परिजन या माता भी बच्चों के साथ रहते हैं। इसमें उनके लिए खाने की सबसे बड़ी समस्या होती है। सुबह चाय और बिस्किट के बाद सीधे दोपहर में उन्हें खाना मिलता है। इस बीच सुबह दस बजे के करीब उनको खाना खाने के लिए बाहर जाना पड़ता है। इसकी वजह से काफी संख्या में परिजन फिर से बच्चों को लेकर नहीं आते हैं।

केंद्र सरकार द्वारा जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) बुलेटिन के अनुसार शिशु मृत्यु दर (0 से 1 साल) के मामले मप्र की स्थिति भारत में सबसे ज्यादा खराब है। यह न केवल देश का सबसे कमजोर प्रदर्शन है, बल्कि विश्व मानक में भी मप्र की स्थिति 150 देशों से भी ज्यादा खराब है। यहां आज भी हर 1000 में से 46 बच्चे एक साल की आयु से पहले दम तोड़ देते हैं। राज्य के शहरी क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर 32 है और ग्रामीण क्षेत्रों में 50 है। यह हालात तब, जबकि 2018 की तुलना में स्थिति कुछ संभली भी है। 2020 में शिशु मृृत्यु दर 48 थी। एसआरएस की 2020 की इस रिपोर्ट में रेफरेंस ईयर 2018 का था और हाल ही में आई 2021 की इस रिपोर्ट में 2019 के आंकड़े लिए गए हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (एनएफएचएस-4) के अनुसार कुपोषण के तीनों पैमानों पर मप्र सबसे कमजोर 10 प्रदेश में शामिल है। 42 प्रतिशत बच्चे कम कद के, 25.8 प्रतिशत  निर्बलता और 42.8 प्रतिशत में कम वजन के होते हैं। मप्र में 52.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में एनिमिया की दिक्कत। इस वजह से आने वाली संतान में भी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें ज्यादा हो जाती हैं। राज्य में जन्म के 1 घंटे में सिर्फ 36 प्रतिशत बच्चों को मां का पहला दूध (खीस) मिलता है, जो सबसे जरूरी है। राज्य में 20-24 साल की 18.4 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है। वहीं रूरल हेल्थ स्टैटिस्टिक्स की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार मप्र के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों पर 298 और आदिवासी क्षेत्रों में 85 शिशुरोग विशेषज्ञों की कमी है।

रिपोर्ट के अनुसार मप्र में शहरों की तुलना में शिशु मृत्यु दर ज्यादा है। शहरी क्षेत्र में 32 संख्या है, जबकि गांवों में प्रति हजार पर 50 की संख्या है। प्रदेश में वर्ष 2014 में आईएमआर 52 थी, जो कि 6 साल में 46 तक आ गई। इसके पहले वर्ष 2009 में 67 रही थी। दूसरे राज्यों की तुलना में सुधार काफी कम हो सका है। उप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र सभी अच्छी स्थिति में हैं। इन राज्यों में शिशु मृत्यु दर पर काफी अंकुश लग पाया है। केरल तो इतना अव्वल है कि वहां एक हजार शिशुओं में केवल 6 की मौत होती है।

कुपोषित बच्चों को मिलेंगे मेवे से बने लड्डू

प्रदेश में कुपोषण दूर करने के लिए सरकार अब कुपोषित बच्चों को मेवे से बने लड्डू खिलाएगी। इसकी शुरुआत बड़वानी जिले से हो गई है। बड़वानी जिले के कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने के लिए बाल शक्ति मिशन की शुरुआत की गई है। इसके साथ ही बड़वानी प्रदेश का पहला जिला बन गया, जहां पर कुपोषित बच्चों को ड्रायफ्रूट (मेवे) से बने लड्डू दिए जा रहे हैं। प्रभारी मंत्री हरदीपसिंह डंग ने मिशन की शुरुआत की है। जिले में अभी 1248 कुपोषित बच्चे हैं। जिले में एनआरसी केंद्र बनाए गए हैं, जहां बच्चों के साथ माताएं भी 14 दिन तक रहती हैं तो उन्हें शासन के द्वारा 14 दिन की मजदूरी दी जाती है और अब बाल शक्ति योजना के माध्यम से बच्चे की छुट्टी होने के दिन उसे 15 दिन के लिए 3 किलो ड्रायफ्रूट के लड्डू भी दिए जाएंगे। माताएं इन ड्रायफ्रूट के लड्डुओं को घर ले जाकर बच्चों को 200 ग्राम प्रतिदिन के मान से खिलाए तो बच्चा जल्दी सुपोषित होगा।

महिलाओं के जिम्मे पोषण आहार 

गौरतलब है कि कुपोषण के कलंक को मिटाने के लिए सरकार हर साल अरबों रुपए खर्च करती है, लेकिन कुपोषण बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में कुपोषण के खिलाफ सरकार की जंग निरंतर जारी है। अब सरकार ने इस जंग की कमान महिलाओं के हाथ में दे दी है। यानी अब 97 हजार 135 आंगनबाड़ी केंद्रों के 97 लाख से ज्यादा बच्चों, गर्भवती एवं धात्री माताओं के स्वास्थ्य का जिम्मा महिलाएं संभालने जा रही हैं। प्रदेश में पोषण आहार बनाने के लिए सरकार ने सात (देवास, धार, होशंगाबाद, शिवपुरी, रीवा, मंडला और सागर) पोषण आहार संयंत्र स्थापित किया है। इन संयंत्रों की कमान महिला स्व-सहायता समूहों को दी जा रही है। ये महिलाएं हर माह सात सौ करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करेंगी। महिलाओं के समूह ने देवास जिले के संयंत्र का काम संभाल लिया है। अगले चरण में समूहों को धार जिले का संयंत्र सौंप दिया जाएगा। इन संयंत्रों से होने वाली आमदनी की 95 फीसदी राशि संयंत्रों से जुड़े समूहों की महिला सदस्यों को लाभांश के रूप में दी जाएगी। जानकारी के अनुसार राज्य में 45 हजार गांवों में तीन लाख 33 हजार स्व-सहायता समूह हैं। इनसे 38 लाख परिवार जुड़े हैं। इनमें से ज्यादातर परिवारों को अब स्थाई रोजगार मिलने जा रहा है। कुछ परिवार की महिलाएं सीधे संयंत्रों से जुड़ेंगी, तो ज्यादातर महिलाओं को भविष्य में अपने क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केंद्रों तक पोषण आहार पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। हालांकि इस पर अंतिम निर्णय अभी होना है। ज्ञात हो कि सात संयंत्रों के संचालन के लिए सात महासंघ बनाए गए हैं।

- नवीन रघुवंशी

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