ऐसा लगता है देश के सबसे पुराने और शक्तिशाली राजनीतिक कुनबे में भी वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई है। जिस तरह के नजारे दिख रहे हैं, उससे यही लगता है कि प्रियंका गांधी की सक्रियता किसी को पसंद नहीं है।
कांग्रेस में सोनिया गांधी की मंजूरी से राहुल गांधी की अगुवाई में एक कंसल्टेटिव कमेटी बनाई गई है। राहुल गांधी की अगुवाई इसलिए भी क्योंकि लिस्ट में सबसे ऊपर उनका ही नाम नजर आ रहा है। वैसे तकनीकी तौर पर राहुल गांधी का नाम मनमोहन सिंह के ठीक बाद है, हालांकि, वो कमेटी के चेयरमैन बनाए गए हैं और रणदीप सिंह सुरजेवाला संयोजक। कंसल्टेटिव कमेटी में प्रियंका गांधी वाड्रा की गैरमौजूदगी खासतौर पर ध्यान खींच रही है। अहमद पटेल, एके एंटनी और गुलाम नबी आजाद जैसे नेता भी सूची से नदारद हैं। बाकी नेताओं के न होने को तो राहुल गांधी की पंसद-नापसंद से जोड़कर देखा और समझा जा सकता है, लेकिन उनकी बहन प्रियंका गांधी का नाम सूची से बाहर होना काफी अजीब लगता है। ऐसे में जबकि प्रियंका गांधी कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान खासी एक्टिव देखी जा रही हैं, कंसल्टेटिव कमेटी से उनका नाम बाहर होने की असली वजह क्या हो सकती है। आइए कुछ कड़ियों को जोड़कर समझने की कोशिश करते हैं।
किसी क्रिकेट टीम की तरह कंसल्टेटिव कमेटी में कुल 11 कांग्रेस नेताओं को शामिल किया गया है। क्रिकेट टीम में 12वां खिलाड़ी भी होता है, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा को वहां भी जगह नहीं मिल सकी है। हैरानी इसलिए भी हो रही है कि सुप्रिया श्रीनेत, रोहन गुप्ता और गौरव वल्लभ जैसे नए चेहरों को भी कंसल्टेटिव कमेटी में शामिल किया गया है, लेकिन गाजे-बाजे के साथ 2019 के आम चुनाव से पहले औपचारिक तौर पर लाए गए कांग्रेस महासचिव को इस लायक नहीं समझा गया है और यही फिलहाल सबसे बड़ी मिस्ट्री साबित हो रही है।
हाल फिलहाल देखने को मिला है, प्रियंका गांधी वाड्रा लगातार किसी न किसी को पत्र लिख रही हैं। योगी आदित्यनाथ से लेकर मुकेश अंबानी तक, प्रियंका गांधी अलग-अलग तरीके से पत्र लिखकर सबसे कोरोना वायरस से जंग में सुझाव, सलाह और गरीब-मजदूरों के हित में अपील कर रही हैं। और तकरीबन ऐसा ही सोनिया गांधी भी कर रही हैं और राहुल गांधी भी। फिर ऐसी क्या वजह हो सकती है कि प्रियंका गांधी को उस कमेटी से बाहर रखा गया जिसकी रोजाना मीटिंग होनी है, वर्चुअल ही सही। कमेटी को कोरोना वायरस की चुनौतियों और बाकी जरूरी मुद्दों पर सलाह देनी है। ताज्जुब होता है जो नेता कोरोना को लेकर पार्टी में इस कदर एक्टिव है उसकी कोई राय ही नहीं ली जा रही है।
पार्टी में आम कार्यकर्ता आज सवाल कर रहा है कि प्रियंका चूक रही हैं या कांग्रेस नेतृत्व की उलझन है? प्रियंका गांधी ने बड़े स्तर पर कोरोना वायरस से संक्रमण को लेकर टेस्टिंग की मांग की है। ये तो वही मांग है जिसकी सलाह राहुल गांधी केंद्र सरकार को दे रहे हैं और कह रहे हैं कि लॉकडाउन से कुछ नहीं होने वाला। लॉकडाउन खत्म होते ही नंबर बढ़ जाएंगे। क्या कंसल्टेटिव कमेटी में ऐसी बातों को लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा की कमी नहीं महसूस की जाएगी। प्रियंका गांधी ने लॉकडाउन के दौरान रेलवे टिकिटों की बुकिंग पर भी सवाल उठाया था। उन्होंने ट्वीट कर पूछा था कि बुकिंग क्यों जारी थी? केंद्र से प्रियंका गांधी ने जांच की भी मांग की थी। प्रियंका गांधी रह-रहकर उत्तर प्रदेश से जुड़े कई मसलों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखती रही हैं। कोरोना संकट के मद्देनजर प्रियंका गांधी ने आर्थिक उपायों के लिए एक टास्क फोर्स बनाने की सलाह दी है। प्रियंका गांधी ने योगी आदित्यनाथ से किसानों, मजदूरों और मनरेगा कामगारों की मुश्किलें लॉकडाउन के वक्त कम करने की कोशिश करने की भी मांग की है।
प्रियंका गांधी ने धर्मगुरुओं को भी पत्र लिखकर अपील की थी कि वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर लोगों को जागरूक करें कि वे कोरोना से बचाव के उपायों पर अमल करें। याद कीजिए उद्धव ठाकरे की सलाह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुख्यमंत्रियों को ये सलाह दी थी और बाद में देखा गया कि किस तरह योगी आदित्यनाथ और उनके अफसर पूरे राज्य में धर्मगुरुओं से मुलाकात कर लॉकडाउन और कोरोना से बचाव के उपायों को समझाने की बात कर रहे हैं। अंबानी और अडानी हमेशा ही राहुल गांधी के निशाने पर रहे हैं और उसी कारण वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सूट-बूट की सरकार कहकर टारगेट करते रहते हैं, लेकिन प्रियंका गांधी ने मुकेश अंबानी को पत्र लिखा और ट्विटर पर शेयर भी किया था। पत्र में प्रियंका गांधी ने मुकेश अंबानी से जियो फोन की वैलिडिटी बढ़ाने की अपील की थी ताकि गरीब और दिहाड़ी मजदूर पलायन के दौर में आपस में घर परिवार से बात करना चाहें तो दिक्कत न हो। प्रियंका गांधी ने ऐसे ही पत्र वोडाफोन, एयरटेल और बीएसएनएल के प्रमुखों को भी लिखा था। प्रियंका गांधी के पत्र लिखने के बाद ऐसा लगा था जैसे कांग्रेस ऐसी चीजों के लिए कोई नरम दल तैयार कर रही हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस नेतृत्व को प्रियंका गांधी की ये पहल नागवार गुजरी हो और उनको कंसल्टेटिव कमेटी से बाहर रखे जाने की ये बड़ी वजह बनी हो?
2019 में आम चुनाव के बाद झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की सूची आई तो प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम गायब था। प्रियंका गांधी का नाम गायब रहने की खूब चर्चा रही क्योंकि ऐसे कई उम्मीदवार थे जो प्रियंका गांधी को कैंपेन के लिए बुलाना चाहते थे। जहां तक सूची में नाम की बात है तो प्रियंका गांधी का नाम महाराष्ट्र और हरियाणा के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल था, लेकिन वो एक भी रैली करने नहीं गईं। सिर्फ राहुल गांधी ही रैलियां करते रहे। तब तो राहुल गांधी को विदेश दौरे से प्रचार के लिए बुलाया गया था। बहरहाल, राहुल गांधी ने वो रैली भी की जो सोनिया गांधी करने वाली थीं, लेकिन अंतिम वक्त में उनका कार्यक्रम रद्द हो गया।
महाराष्ट्र और हरियाणा में प्रियंका गांधी के चुनाव प्रचार न करने को लेकर बताया गया कि चूंकि वो उत्तर प्रदेश में 2022 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव पर फोकस कर रही हैं, इसलिए वो दूसरे राज्यों के चुनावों के लिए समय नहीं दे पा रही हैं। महाराष्ट्र को लेकर तो नहीं, लेकिन हरियाणा के मामले में माना गया कि रॉबर्ट वाड्रा के जमीन सौदों को लेकर भाजपा मुद्दा बना सकती थी, इसी वजह से प्रियंका गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव से दूरी बनाने की कोशिश की होगी। झारखंड के स्टार प्रचारकों की दूसरी सूची में तो प्रियंका गांधी का नाम आ गया था, लेकिन वो कैंपेन के लिए तब पहुंची जब राहुल गांधी के एक बयान पर बवाल हो गया। तब राहुल गांधी ने मेक इन इंडिया की तर्ज पर रेप इन इंडिया कहकर बवाल करा दिया था। फिर प्रियंका गांधी ने झारखंड के पाकुड़ में एक रैली की थी, इसलिए भी क्योंकि राहुल गांधी के बाहर जाने का कार्यक्रम बन गया था।
अब अगर उप्र पर फोकस कर रही थीं तो प्रियंका गांधी ने झारखंड में चुनाव प्रचार क्यों किया और फिर दिल्ली में भी तो राहुल गांधी के साथ चुनाव प्रचार किया ही। दिल्ली चुनाव में तो ऐसा लगा जैसे भाई-बहन ने योगी और मोदी में से एक-एक को अपने-अपने हिस्से में बांट रखा हो। प्रियंका गांधी हर रैली में योगी आदित्यनाथ को टारगेट करती रहीं और राहुल गांधी के निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी रहे। दिल्ली चुनाव के दौरान ही तो राहुल गांधी का डंडा-मार बयान चर्चित हुआ था। सवाल ये है कि अगली बार कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रियंका गांधी को लेकर सवाल पूछा जाए तो क्या जवाब देंगे?
अगर फिर से यही समझाया जाए कि प्रियंका गांधी उप्र पर फोकस कर रही हैं तो सवाल है कि क्या उप्र जैसे महत्वपूर्ण राज्य में काम करने वाले की कांग्रेस की कोर टीम में जरूरत नहीं महसूस की जा रही है, वो भी तब जबकि कोरोना संकट के वक्त भाजपा के सारे मुख्यमंत्रियों में योगी आदित्यनाथ ही सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आ रहे हैं। बताते हैं कि कोरोना वायरस के दौर में प्रियंका गांधी ने उप्र के लिए खास तैयारी की हुई है। प्रियंका गांधी ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया है जिसका नाम 'कांग्रेस फाइट्स कोरोना’ है। ये ग्रुप उप्र पर ही फोकस है और इसमें राज्य के सभी कांग्रेस पदाधिकारी और जिलाध्यक्ष जुड़े हुए हैं। इसी ग्रुप में प्रियंका गांधी का ध्यान आजमगढ़ की ओर दिलाया गया कि वहां मदद की जरूरत है। प्रियंका गांधी ने वहां एक ट्रक अनाज भिजवाया और साफ-साफ निर्देश दिया कि इसे उन जरूरतमंद लोगों को दिया जाए जिन तक सरकारी मदद नहीं पहुंच पा रही हो।
जरा गौर कीजिए। आजमगढ़ लोकसभा सीट का फिलहाल अखिलेश यादव प्रतिनिधित्व करते हैं और वो उप्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। एक साथ और एक तीर से दो-दो विरोधी नेताओं अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ को टारगेट करने वाली प्रियंका गांधी के साथ कांग्रेस क्या अनदेखी नहीं कर रही है? सिर्फ यही नहीं प्रियंका गांधी छोटी-छोटी चीजों पर भी ध्यान दे रही हैं, ताकि कांग्रेस को प्रदेश में खड़ा किया जा सके। प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके इलाहाबाद की चमन रावत के जज्बे को सलाम किया है। कांग्रेस कार्यकर्ता चमन रावत कोरोना से जंग के लिए घर पर मास्क तैयार कर रही हैं। फर्ज कीजिए ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा नहीं ज्वाइन किए होते तो क्या कंसल्टेटिव कमेटी में उनको भी जगह नहीं मिलती। खासकर तब जबकि रणदीप सुरजेवाला, मनीष तिवारी और केसी वेणुगोपाल जैसे नेता मौजूद हैं?
पूरी संभावना होती कि ज्योतिरादित्य सिंधिया निश्चित तौर पर कंसल्टेटिव कमेटी का हिस्सा होते। इसलिए भी क्योंकि ये टीम पूरी तरह राहुल गांधी के मनमाफिक बनाई गई है और ऐसे में कमलनाथ की दखलंदाजी शायद ही हो पाती। वो भी तब जब वो कुर्सी गंवाने के बाद शिवराज सिंह चौहान से बदला लेने की दिन-रात तैयारियों में जुटे हों। फिर ऐसी क्या वजह रही होगी कि सिंधिया के साथ कांग्रेस में औपचारिक एंट्री के बाद बराबर की जिम्मेदारी निभाने वाली प्रियंका गांधी कांग्रेस की कोर टीम से बाहर रहीं? प्रियंका गांधी वाड्रा की कंसल्टेटिव कमेटी में गैरमौजूदगी पर सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं क्योंकि इसे राहुल गांधी के मनमाफिक और सोनिया गांधी की मंजूरी से बनाया गया है।
लोकप्रियता में सबसे आगे
देश में कांग्रेस भले ही रसातल की ओर जा रही है लेकिन प्रियंका गांधी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। खासकर उप्र में तो वे सरकार को घेरने के लिए कोई भी मौका नहीं चूकती हैं। आलम यह है कि विषम परिस्थिति में भी वे लोगों के बीच पहुंचकर उनकी सहानुभूति पा रही हैं। वर्तमान समय में वे देश की सबसे लोकप्रिय महिला नेत्री बनी हुई हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता है जिस दिन वे केंद्र और राज्य सरकार पर वार नहीं करती हों। यही नहीं उन्होंने कांग्रेस में भी अपने प्रशंसकों की बड़ी फौज तैयार कर ली है। प्रियंका की यही लोकप्रियता शायद उनके घर को पसंद नहीं आ रही है।
टास्क फोर्स में मध्यप्रदेश के नेता को नहीं मिली जगह
कोरोना वायरस को लेकर देश में बने हालातों पर नजर रखने और कांग्रेस की रणनीति तय करने के लिए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक उच्च स्तरीय परामर्श समूह का गठन किया है। इसमें पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को शामिल किया गया है। दिल्ली के अलावा कई राज्यों के नेताओं को परामर्श समूह में जगह दी गई है। इस समूह के जरिए कांग्रेस पार्टी कोरोना से बने देश के हालातों को लेकर पार्टी की रणनीति तय करेगी। लेकिन सोनिया गांधी के उच्च स्तरीय परामर्श समूह में मध्यप्रदेश के नेताओं को जगह नहीं मिल पाई है। कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ समेत पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, विवेक तन्खा जैसे नेता समूह का हिस्सा नहीं बन पाए हैं। प्रदेश में सरकार गंवाने के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की पार्टी में अनदेखी अब प्रदेश में चर्चा का विषय बन गई है। अब तक कांग्रेस पार्टी के तमाम बड़ी समितियों में प्रदेश के पार्टी नेताओं को जगह मिलती रही है। इससे पहले कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी कई अहम समितियों में शामिल किया गया था। कांग्रेस पार्टी की नेता मीनाक्षी नटराजन को भी इस बार समूह में जगह नहीं मिल पाई है। यह अब चर्चा का विषय जरूर बन गया है कि आखिर कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह को भी उच्च स्तरीय परामर्श समूह का हिस्सा क्यों नहीं बनाया गया है?
- दिल्ली से रेणु आगाल