संसद में पारित तीन कृषि विधेयकों के खिलाफ किसान सड़कों पर हैं। इसके खिलाफ पूरे देशभर में प्रदर्शन किए जा रहे हैं, लेकिन यह पहली बार नहीं है, जब केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में किसान धरना-प्रदर्शन कर रहे हों। जनवरी से सितंबर 2020 के बीच 9 माह में 20 राज्यों में कम से कम 50 बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं, जबकि जनवरी, मई, अगस्त व सितंबर में किसान 4 देशव्यापी प्रदर्शन कर चुके हैं। ज्यादातर प्रदर्शन हरियाणा और पंजाब में हुए हैं। वे कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक, 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
किसानों को सबसे बड़ा डर इस बात का है कि सरकार मंडियों को खत्म कर देगी। इन मंडियों का संचालन कृपि उपज विपणन कमेटियों के माध्यम से किया जाता है। चर्चा है कि सरकार किसानों से तय कीमतों पर उपज खरीदना बंद कर देगी और उन्हें निजी खरीदारों के भरोसे छोड़ देगी। हालांकि केंद्रीय कृषि मंत्री लगातार कह रहे हैं कि ऐसा नहीं होगा। न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खत्म की और ना ही मार्केट कमेटी की मंडिया खत्म होंगी। लेकिन न तो किसान इस पर भरोसा कर पा रहा है और न ही विपक्ष। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा रही अकाली दल (ब) कोटे से मंत्री हरसिमरत कौर कैबिनट से इस्तीफा दे चुकी हैं। इससे पहले 9 अगस्त को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आव्हान पर किसान देशव्यापी प्रदर्शन कर चुके हैं। इस दिन देश के लगभग 250 किसान संगठनों ने एक साथ कॉर्पोरेट भगाओ, देश बचाओ के नारे के साथ प्रदर्शन किया था। इस साल की शुरुआत में जनवरी 2020 में किसानों ने प्रदर्शन किया। यह बड़ा प्रदर्शन था, जिसमें श्रमिक, कर्मचारी, किसान, ग्रामीण मजदूर शामिल थे और उन्होंने सरकार की आर्थिक नीतियों के विरोध में प्रदर्शन किया। किसानों के अपने मुद्दे थे, जिनमें कर्जमाफी और बाढ़, सूखा की वजह से बर्बाद फसल की बीमा योजना को सही ढंग से लागू करना शामिल था। इस प्रदर्शन को लगभग 200 किसान व खेतिहर मजदूर संगठनों ने एक दिन के ग्रामीण भारत बंद आंदोलन को समर्थन दिया।
सरकार ने संसद के मानसून सत्र के दौरान कहा कि कृषि अकेला ऐसा क्षेत्र है, जिसने कोरोनावायरस संक्रमण के दौर में वृद्धि की, जबकि दूसरे जैसे मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर पर असर दिखाई दिया। बावजूद इसके, किसानों की दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं और वे धरना-प्रदर्शन के लिए मजबूर हैं। इस साल के 9 महीने के दौरान 20 राज्यों के किसान 50 बड़े प्रदर्शन कर चुके हैं। इनमें आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, कर्नाटक, केरल, मप्र, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और उप्र शामिल हैं। पंजाब के किसान इस मामले में सबसे आगे हैं। यहां के किसान मई माह से लगातार कृषि विधेयकों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। यहां किसान आंदोलन की वापसी हाल ही में हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 2016 से 2018 के बीच यहां कोई प्रदर्शन दर्ज नहीं किया गया।
उत्तर पूर्व में बाढ़ और चक्रवात अम्फन जैसी मौसम की घटनाओं के कारण किसानों को उनकी फसल को नुकसान होने के कारण कर्ज में डूबना पड़ रहा है। वे कर्जमाफी और मुआवजे के लिए विरोध करते रहे हैं। इसके अलावा उपज और श्रम की सही कीमत न मिलना एक और बड़ी वजह रहा है। इस साल उत्पादन अधिक रहा है। फिर भी किसानों की आय पर भी कोई बड़ा असर नहीं पड़ा है। खरीद के खराब प्रबंधन के कारण भी किसानों में असंतोष है। उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ में किसान फरवरी में सरकार की धान खरीद प्रक्रिया में अनियमितताओं के विरोध में सड़कों पर उतरे। केंद्र सरकार ने भी 23 सितंबर को संसद में स्वीकार किया था कि लॉकडाउन के दौरान महाराष्ट्र की निजी डेयरियों द्वारा दूध कम खरीदे जाने के कारण कीमतें गिर गई थीं। विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित भूमि का सही मुआवजा न मिलने के कारण भी किसानों ने विरोध किया।
विरोध प्रदर्शनों का भूगोल बदल रहा है
उत्तर पूर्व के किसानों में भी विरोध बढ़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट और एनसीआरबी द्वारा 2018 तक उपलब्ध कराए गए आंकड़े बताते हैं कि कुछ ऐसे राज्यों में भी विरोध प्रदर्शन होने लगे हैं, जहां अमूमन किसान पहले प्रदर्शन नहीं करते थे। उदाहरण के लिए, 2016, 2017 और 2018 में आंध्र प्रदेश के किसानों ने प्रदर्शन नहीं किए, लेकिन 2020 में अब तक कम से कम चार प्रदर्शन हो चुके हैं। इसी तरह, एनसीआरबी के अनुसार, गोवा में 2016 और 2018 के बीच किसानों ने आंदोलन नहीं किए, लेकिन फरवरी 2020 में राज्य के गन्ना किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए गए। उत्तर पूर्व में भी किसानों के बीच संकट बढ़ गया है। असम में, 2016 और 2018 के बीच कृषि आंदोलन में नौ गुना वृद्धि हुई। 2018 में, एनसीआरबी के अनुसार, 2016 में जहां किसानों ने असम में चार प्रदर्शन किए थे, 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 37 हो गए। मणिपुर और त्रिपुरा में 2016-2018 के किसानों द्वारा कोई विरोध दर्ज नहीं किया गया था, जबकि 2020 में यहां भी आंदोलन हुआ। तीन कृषि विधेयकों के अलावा किसान कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 का भी विरोध कर रहे हैं। स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2019 के आंकड़ों के अनुसार 2018 में 15 राज्यों में 37 प्रदर्शन दर्ज किए गए। लगता है कि 2020 ये सारे रिकॉर्ड तोड़ सकता है। अब देखना यह है कि किसान आंदोलन कब समाप्त होता है।
- श्याम सिंह सिकरवार