मप्र में 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस ने मोर्चा संभाल लिया है। दोनों पार्टियों का पूरा फोकस किसान पर है। इससे यह साफ दिख रहा है कि दोनों पार्टियां किसानों के भरोसे उपचुनाव जीतने की रणनीति पर काम कर रही हैं।
मप्र में सियासी दलों के केंद्र बिंदु में इन दिनों किसान हैं। किसान कर्जमाफी, किसान सम्मान निधि से लेकर सियासी दल हर आयोजन में किसान और किसान से जुड़े मुद्दों पर बयान देकर किसान वोटर को साधने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन अब किसानों से जुड़ी योजनाओं को लेकर सियासी संग्राम उठ खड़ा हुआ है। प्रदेश कांग्रेस ने राज्य सरकार के किसान बजट को घटाने का आरोप लगाते हुए किसान हित की योजनाओं पर ताला लगाने का आरोप लगाया है। कांग्रेस का आरोप है कि प्रदेश सरकार किसान हितैषी योजनाओं को एक के बाद एक बंद कर रही है। कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे के मुताबिक, राज्य सरकार ने कृषक समृद्धि योजना, सूरज धारा योजना, कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी योजना, खेत तीर्थ योजना, अन्नपूर्णा योजना, कृषि यंत्रीकरण प्रोत्साहन योजना में बजट घटाकर योजनाओं को बंद करने की तैयारी कर ली है।
कांग्रेस का आरोप है कि कृषक समृद्धि योजना के तहत किसानों की फसलों पर समर्थन मूल्य के ऊपर प्रोत्साहन राशि दी जाती थी, लेकिन अब सरकार ने बजट में सिर्फ 3000 रुपए का प्रावधान किया है। इससे साफ है कि प्रदेश सरकार किसानों को पूर्व घोषित प्रोत्साहन राशि नहीं दे रही है। कांग्रेस का आरोप है कि सूरज धारा योजना के तहत सरकार ने बजट प्रावधान शून्य कर दिया है। जो इस बात को बताता है कि योजना के तहत अनुसूचित जाति जनजाति के किसानों को 75 फीसदी तक बीज के लिए मिलने वाला अनुदान अब बंद हो गया है। कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी के लिए योजना में बजट का प्रावधान शून्य करने और महिला कृषक को योजनाओं का लाभ नहीं देने का आरोप भी कांग्रेस ने लगाया है। मुख्यमंत्री खेत तीर्थ योजना में भी कांग्रेस ने बजट का प्रावधान शून्य करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने अन्नपूर्णा योजना के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति को खाद्यान्न किस्मों के बीज उपलब्ध कराने के बजट को भी जीरो कर दिया है। प्रदेश कांग्रेस ने कृषि यंत्रीकरण प्रोत्साहन और ट्रैक्टर कृषि उपकरणों पर अनुदान जैसी योजनाओं में बजट आधा कर योजना को बंद करने का आरोप लगाया है। वहीं कांग्रेस के आरोपों पर भाजपा ने जवाबी हमला बोला है। भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा है कि प्रदेश में किसान हितैषी योजनाओं को कभी बंद नहीं किया गया। तीर्थ दर्शन योजना में भी भाजपा सरकार ने शुरू की थी योजनाओं को बंद करने का काम कांग्रेस सरकार में हुआ है। भाजपा प्रवक्ता के मुताबिक जनता की योजनाओं पर भाजपा राजनीति नहीं करती है।
बहरहाल, प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस के फोकस में किसान वोटर हैं, क्योंकि इस बार उपचुनाव में किसान वोटर ही भाजपा और कांग्रेस की हार और जीत तय करेगा। यही कारण है प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार किसान हित में बड़े फैसले लेकर किसान वोटरों को खुश करने की कोशिश में हैं, तो वहीं किसान कर्जमाफी के बाद किसान हितैषी योजनाओं को बंद करने के आरोप के सहारे कांग्रेस भाजपा को टक्कर देने में लगी हुई है।
गौरतलब है कि उपचुनाव में 28 सीटें सत्ता का स्वरूप तय करेंगी। सत्ता में बने रहने या सत्ता पाने के लिए इन सीटों की अहमियत है। माना जा रहा है कि जो जीता वही सत्ता का सिकंदर होगा। भाजपा यदि दस सीटें भी जीत लेती है तो उसकी सरकार मजबूत हो जाएगी, लेकिन यदि कांग्रेस सर्वाधिक सीटें जीतती है तो समीकरण बदल सकता है। यही कारण है कि यह उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। दोनों पार्टियों के नेता एक-दूसरे के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा रहे हैं।
आम चुनाव से भी अधिक नेता एक-दूसरे पर निजी हमले कर रहे हैं। शब्दों की मर्यादा टूट चुकी है। जो आमने-सामने शिष्टाचार का प्रदर्शन करते थे वे एक-दूसरे को चोर-डाकू, गद्दार जैसे विशेषणों से नवाज रहे हैं। एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए रोज मुद्दे और नारे गढ़े जा रहे हैं, लेकिन उपचुनाव में भी कर्जमाफी ही सर्वाधिक चर्चा में है। दोनों पार्टियों ने इसे सबसे बड़ा मुद्दा बना रखा है। भाजपा पर तोहमत मढ़कर कांग्रेस अपना बचाव करना चाहती है तो भाजपा उसे नए सवालों पर घेर रही है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में किसानों की कर्जमाफी बड़ा और निर्णायक मुद्दा था। दरअसल, कांग्रेस और कमलनाथ को यह भान था कि शिवराज सिंह चौहान की छवि किसान हितैषी है। किसानों के लिए भावांतर से लेकर कई योजनाएं भी शुरू हुई थीं। इसकी तोड़ के तौर पर कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में कर्जमाफी योजना को आगे रखा था। भाजपा को यह उम्मीद थी कि कांग्रेस की यह घोषणा उसके द्वारा बीते 15 वर्षों में किए गए किसान हितैषी कार्यों के आगे नहीं टिक पाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किसानों ने कमलनाथ के वचन पर भरोसा जताया और कांग्रेस का सत्ता से वनवास खत्म हो गया।
कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजते ही उन्होंने सबसे पहले आदेश 48 लाख किसानों की 54 हजार करोड़ रुपए की कर्जमाफी का निकाला। इससे किसानों का भरोसा और बढ़ा, पर यह जितना आसान दिख रहा था, उतना था नहीं। खजाना खाली था और दो लाख रुपए तक का कर्ज चुकाने में लगने वाली राशि इतनी बड़ी थी कि यदि इसे पूरा करने लग जाते, तो दूसरे कोई काम नहीं हो सकते थे। लिहाजा, वित्त विभाग ने पेच फंसाना शुरू किया। कर्जमाफी का ऐसा फॉर्मूला बनाया कि दो खाते वाले, दो लाख रुपए से अधिक कर्ज वाले, खेती के अलावा अन्य कामों के लिए कर्ज लेने वाले किसान दायरे से बाहर हो गए। इसके बाद भी किसानों की बड़ी संख्या बची थी। इनका कर्ज माफ करने के लिए 16 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की जरूरत थी, इसलिए इसे तीन चरणों में करने का निर्णय लिया गया। विपक्ष में रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कई बार चेतावनी दी कि सरकार किसानों की कर्जमाफी करे। कांग्रेस ने भी प्रतिक्रिया स्वरूप उनके घर जाकर उन्हें कर्जमाफी के रिकॉर्ड उपलब्ध कराए। इस बीच कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कर्जमाफी से लेकर कई अन्य वादे पूरे नहीं होने का आरोप लगाते हुए हाथ को झटका दे दिया और कांग्रेस की सत्ता से विदाई हो गई। कांग्रेस तब से लेकर अब तक कर्जमाफी के मुद्दे पर भाजपा को घेर रही है। भाजपा नेता भी पलटवार कर रहे हैं कि किसानों को कर्जमाफी का प्रमाणपत्र पकड़ा दिया, पर कर्जमाफी हुई नहीं। कांग्रेस ने योजनाबद्ध तरीके से विधानसभा में कर्जमाफी के संबंध में प्रश्न किए। कई विधायकों के सवाल के जवाब में कृषि मंत्री ने जो जवाब दिए वो सरकार को परेशानी में डालने वाले थे।
विधानसभा में स्वीकार किया गया कि पहले चरण में दो लाख रुपए तक कालातीत खाते और पचास हजार रुपए तक चालू खाते पर कर्ज वाले किसानों की कर्जमाफी का निर्णय लिया। इसके लिए 20,23,136 किसानों के 7,108 करोड़ रुपए के ऋण माफ करने के लिए स्वीकृत किए गए। दूसरे चरण में चालू खाते पर एक लाख रुपए तक कर्ज माफ होना था। इसके लिए 6,72,245 खातों के 4,538 करोड़ रुपए के प्रकरण स्वीकृत किए गए। इस प्रकार दोनों चरणों में 26,95,381 खातों का ऋण 11,646 करोड़ रुपए की कर्जमाफी के लिए स्वीकृत किया गया। यदि कर्जमाफी की यह प्रक्रिया पूरी होती तो 5,90,848 किसानों को और लाभ मिलता। कांग्रेस ने इसे हथियार की तरह इस्तेमाल किया और भाजपा सरकार पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया। इस बीच विधानसभा में दिए उत्तर से बैकफुट पर आने की जगह सरकार ने आक्रामकता के साथ कांग्रेस पर पलटवार किया। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने दावा किया कि किसानों की कर्जमाफी नहीं हुई।
विधानसभा में अधिकारियों के स्तर पर त्रुटि हुई और गलत आंकड़े प्रस्तुत हो गए। जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी होगी। वहीं, कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा कि किसानों के साथ इससे बड़ी धोखाधड़ी कभी नहीं हुई। किसानों का दो लाख रुपए तक कर्ज माफ करने का वादा किया था, लेकिन नहीं हुआ। यह मुद्दा इस समय इसलिए ज्वलंत है, क्योंकि प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं। भाजपा से वे लोग चुनाव मैदान में होने वाले हैं, जो कर्जमाफी के वचन के सहारे ही सत्ता तक पहुंचे थे। कुछ मंत्री तो कर्जमाफी के कार्यक्रमों में शरीक भी हुए थे।
प्रदेश कांगे्रस के आव्हान पर गत दिनों राजधानी भोपाल के कमला पार्क स्थित रेत घाट पर केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए किसान विरोधी काले कानूनों के खिलाफ कांगे्रसजनों ने जंगी प्रदर्शन कर केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों को जमकर कोसा। केंद्र सरकार ने जो काले कानून किसानों के लिए बनाए हैं, आज देश के 62 करोड़ किसान, 250 से अधिक किसान संगठन इस कानून के खिलाफ हैं और मोदी सरकार से इन कानून को वापिस लेने की मांग कर रहे हैं। संघीय ढांचे का उल्लंघन कर संविधान को रौंदकर संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर बगैर किसी रायशुमारी के मोदी सरकार द्वारा तीन काले कानूनों को पारित किया गया। कांगे्रस ने इसी कड़ी में हजारों की संख्या में प्रदेश कांगे्रस के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं एवं किसानों के साथ एकत्र होकर काले कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर उसका पुरजोर विरोध किया है तथा केंद्र सरकार द्वारा पारित किसान विरोधी इन कानूनों को वापस लिए जाने की मांग का दस सूत्रीय ज्ञापन राज्यपाल को सौंपा।
कृषि विधेयक का मप्र में खास विरोध नहीं
केंद्र के कृषि विधेयकों के खिलाफ हरियाणा, पंजाब सहित देश के सात राज्यों में विरोध देखा जा रहा है, हालांकि मप्र में अब तक इसका खास विरोध नहीं दिखाई दिया है। केवल ग्वालियर-चंबल अंचल में छिटपुट काम प्रभावित हुआ है। जबलपुर में किसान संघों का जुबानी विरोध सामने आ रहा है। मैदानी गतिविधियां नहीं के बराबर हैं। मालवा-निमाड़ अंचल में छोटे-मोटे विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। विधेयकों का ग्वालियर-चंबल अंचल के कुछ जिलों में किसान, व्यापारी व मंडी कर्मचारी विरोध कर रहे हैं। व्यापारी व मंडी कर्मचारी हड़ताल पर हैं। इससे कृषि मंडियों का कामकाज प्रभावित हो रहा है। डबरा में किसान कुछ दिन से धरना दे रहे हैं। श्योपुर में कृषि मंडी में व्यापारी व कर्मचारी अलग-अलग धरना दे रहे हैं। मुरैना, शिवपुरी में हड़ताल नजर आई तो भिंड-दतिया में कोई विरोध सामने नहीं आया।
उपचुनाव में किसानों के मुद्दे पर मप्र से दिल्ली तक सियासत
प्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव की तारीखें आने से पहले ही प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने आ गए हैं। चुनावी समर में जुबानी जंग तेज हो गई है। वार-पलटवार भी शुरू हो चुका है। इस जंग के केंद्र में किसान और उनसे संबंधित मुद्दे ही हैं। इस मुद्दे पर प्रदेश के दोनों प्रमुख दल वोटरों को साधने की जुगत में लगे हैं। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में प्रेस कॉन्फे्रंस के दौरान पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने कृषि मंत्री कमल पटेल पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा, कमल पटेल जब सदन में कर्जमाफी के सवाल का जबाब दे रहे थे तो क्या उस वक्त शराब पीकर या भांग खाकर बोल रहे थे। पटेल की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है या उनका अध्ययन। मंत्री कमल पटेल ने कहा, राहुल गांधी व कमलनाथ ने नशे में कर्जमाफी की घोषणा की। अब कोई कांग्रेस पर भरोसा नहीं करेगा, चाहे राहुल गांधी आएं या राजीव गांधी और इंदिरा गांधी। पटवारी को लेकर बोले, सत्ता जाने से लूटखसोट बंद हो गई, इसलिए मानसिक संतुलन बिगड़ गया है।
- रजनीकांत पारे