देश के सबसे बड़े वन क्षेत्र वाले मप्र में जंगल खतरे में है। वनाधिकार अधिनियम के तहत मिलने वाले भू अधिकार पत्र (पट्टे) के लिए अतिक्रमणकारी लगातार पेड़ों की कटाई कर वन भूमि पर कब्जा कर रहे हैं। विरोध करने पर वनकर्मियों पर हमले, हवाई फायर, पथराव जैसी घटनाएं भी बढ़ी हैं। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ पत्र व्यवहार हो रहा है लेकिन कब्जाधारियों की बेदखली इसलिए नहीं हो रही क्योंकि अभी प्रदेश में उपचुनाव हंै। इसका फायदा उठाकर प्रदेशभर में वनों की अवैध कटाई जोरों पर है। प्रदेश का कोई भी ऐसा जिला नहीं है जहां वनों की अवैध कटाई न हो रही हो।
वर्ष 2019 में फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने प्रदेश में दो साल में 68.49 प्रतिशत वर्ग किमी में जंगल बढ़ने की घोषणा की थी लेकिन इस साल तस्वीर बिल्कुल अलग है। प्रदेश में इस साल वन अधिकार पत्रों के लिए कुल 1 लाख 65 हजार 139 दावे किए गए हैं। इनमें से 20 हजार 41 दावों को जायज माना गया है। यानी 88 प्रतिशत दावे खारिज कर दिए गए। सबसे कम करीब 4 प्रतिशत दावे चंबल संभाग में सही पाए गए हैं। बड़े पैमाने पर दावों के अमान्य होने के कारण जंगल की कटाई करके अवैध अतिक्रमण करना, एक से ज्यादा जिलों में जाकर दावा करना, गलत दस्तावेज देने जैसे कारण सामने आए हैं। मप्र में 94 हजार 689 वर्ग किमी में जंगल है। वन अधिकार पत्र हासिल करने के लिए ग्राम समिति अनुमोदन करती है, फिर तहसील स्तर की समिति और अंत में जिला स्तरीय समिति। ग्राम समितियों ने भी बिना दस्तावेज जांचे और भौतिक सत्यापन किए दावे मान्य किए हैं। उनकी भूमिका भी संदिग्ध है।
7 सितंबर को वनमंत्री विजय शाह के गृह जिले खंडवा के गुड़ी वनक्षेत्र के ताल्याधड़ जंगल में अतिक्रमणकारियों ने वनकर्मियों और ग्रामीणों पर हमला कर दिया। धमकी दी कि पेड़ की तरह काट डालेंगे। 12 जुलाई को गुना जिले के मूंदोल में वन विभाग के अफसरों के सामने ही बड़ी तादाद में अतिक्रमणकारियों ने जंगल में पेड़ काटे। उन्हें रोका नहीं गया। अफसरों का कहना था- हमारे पास अमला नहीं है।
7 अगस्त को बुरहानपुर जिले के घाघरला में 200 से ज्यादा लोग जंगल कटाई में लगे थे। वन विभाग का अमला ग्रामीणों के साथ रोकने पहुंचा तो हथियार से हमला कर दिया। करीब 100 लोग घायल हुए। 7 सितंबर को नेपानगर आए वनमंत्री विजय शाह वनों की कटाई करने वालों को नहीं बख्शने का दावा कर गए। इसके दूसरे दिन अतिक्रमणकारियों ने पेड़ काटकर और पत्थर डालकर घाघरला के जंगल में खुली चुनौती दी। 28 अगस्त को खरगोन जिले के वड़िया झिरी फलिया में दो चचेरे भाई पकड़े गए। उन्होंने पट्टे की जमीन पर 29 लाख के गांजे के पौधे लगाए थे। पुलिस पूछताछ में आदिवासियों को लालच देकर खेती की बात सामने आई।
बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 57 किमी दूर घाघरला का जंगल है। नेपानगर विधानसभा क्षेत्र में आता है। यहां प्रशासन और वन विभाग की नहीं अतिक्रमणकारियों की अपनी हदबंदी है। जंगल में बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटकर और खूंटे गाड़कर जमीन बांट रखी है, कि यह जमीन तेरी, यह मेरी। एक-एक अतिक्रमणकारी द्वारा कब्जा की गई जमीन 100-200 फीट नहीं, बल्कि पांच से सात एकड़ तक है। दो महीने में वन अमले और ग्रामीणों पर तीन बार हो चुके हमले का खौफ इस कदर है कि मजदूर और किसान खेतों में जाने से डर रहे हैं। दूर कहीं कुल्हाड़ी चलने की आवाज सुनते ही लोग सहम जाते हैं। अकेले खेत जाना तो किसी के भी बस की बात नहीं रही। जंगल से लगे घाघरला, नावरा, गोराड़िया, मझगांव और अमुल्ला सहित अन्य गांव हैं। इन गांवों के जंगल में कहीं एक तो कहीं दो कम्पार्टमेंट हैं। एक कम्पार्टमेंट में करीब 1200 हेक्टेयर जमीन है। लेकिन अब यहां कुल्हाड़ी चल रही है। गांव से एक किमी दूर जंगल से लगे खेत में मौजूद रमाकांत पाटिल और रघुनंदन पाटिल ने बताया मजदूर खेत तक आने से डर रहे थे। ट्रैक्टर-ट्रॉली में बैठाकर लाए हैं। पांच से सात लोगों को एक साथ खेत आना पड़ रहा है। यहां काम करते हुए भी आंखें और कान जंगल से आ रही छोटी से छोटी आहट पर चौकन्ने हो जाते हैं। हम यहां खतरे के बीच रह रहे हैं।
खेती और पट्टे के लिए कब्जा
ग्रामीणों ने बताया कि सहरिया आदिवासी समुदाय की आड़ में वन माफिया काम करता है। वह उनसे जमीन साफ करवाकर उस पर कब्जा करके खेती करता है। आदिवासी समुदाय गरीब का गरीब बना रहता है। उनका कहना है कि गांव वाले यह समझने लगे हैं कि वनों पर उनकी जिंदगी निर्भर है। अगर वे न रहे तो न तो मवेशियों को चराने के लिए जगह बचेगी न ही बारिश होगी। इसके लिए ग्रामीण भी पहल कर चुके हैं लेकिन विभागीय लापरवाही की वजह से जंगल कटाई नहीं रुक पा रही है। वहीं पट्टों को लेकर भी ग्रामीण कब्जे करने जंगलों की ओर रुख कर रहे हैं। वहीं क्षेत्र में जंगलों को बचाने की पहल 15 अगस्त से एकता परिषद और महात्मा गांधी सेवा आश्रम के द्वारा शुरू की है। जिसके तहत गत दिनों ग्राम परौंदा के मंदिर में ग्रामीण आदिवासियों को राहत सामग्री देकर 300 पौधे रोपे गए। जिसमें मंदिर परिसर में सामुदायिक जमीन पर 300 फलदार वृक्ष लगाकर सामुदायिक वृक्षारोपण का संदेश दिया। इससे पहले भी राजस्थान सीमा पर स्थित स्टापडेम पर पौधे लगाए गए थे। वहीं पिछले माह रामगढ़ धरावला और बनियानी में चल रही कटाई की सूचना पर इन जंगलों के आसपास गांवों में रहने वाले लोगों ने जब जंगल काटने वाले लोगों पर दबाव बनाया था तब वन अमले ने मौके पर जाकर कटाई रुकवाई थी। जंगलों से इमारती लकड़ी के साथ-साथ अवैध जलाऊ लकड़ी का कारोबार भी दिनोंदिन फल-फूल रहा है। इन लकड़ियों का प्रयोग होटलों, ढाबों, ईंट भट्टों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा रहा है।
- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया