बड़े बुजुर्ग हमेशा से कहते आए हैं कि कर्ज लेकर घी पीने की आदत ठीक नहीं। जितनी चादर हो उतने पैर पसारने चाहिए, वक्त-बेवक्त के लिए हमेशा थोड़ी पूंजी बचाकर रखो। अनुभवों के आधार पर बड़ों की इन नसीहतों से जो भी सबक नहीं लेता, उसे नुकसान निश्चित है। चाहे वो घर का मुखिया हो या देश, राज्यों में सत्ता संचालित करने वाले प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री। उनके किए का खामियाजा उनसे जुड़े हर शख्स, हर सूबे और तमाम पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है। कर्ज लेकर तरक्की और भविष्य की बुनियाद मजबूत करने का कदम बुरा नहीं है, लेकिन जब उसका इस्तेमाल सार्थक, सुनियोजित न होकर व्यक्तिगत या जन, समाज, राष्ट्रहित के नाम पर सियासी हित साधने के लिए होने लगे, तो बदहाली के चक्रव्यूह में घिरना हमारी नियति बन जाएगी।
इन सारी नसीहतों और नतीजों का जिक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि हम मप्र के कदम आत्मनिर्भरता की बजाय कर्ज पर निर्भरता की ओर लगातार बढ़ते देख रहे हैं। दो साल पहले तक जिस राज्य सरकार के खजाने में 7-8 हजार करोड़ रुपए हमेशा पड़े रहते थे, वह इस समय पैसे-पैसे को मोहताज है। मार्च 2020 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार के अपदस्थ होने के बाद राज्य में बनी शिवराज सरकार अपने कार्यकाल के 7 महीनों में राज्य को चलाने के लिए 10 हजार करोड़ का कर्ज ले चुकी है। सरकार नवंबर-दिसंबर में 6 हजार करोड़ का और कर्ज लेने के लिए तैयार है। इस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक राज्य पर कुल कर्ज 2 लाख 10 हजार 538 करोड़ रुपए हो चुका था, जो नए साल में वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक 2 लाख 40 हजार करोड़ तक पहुंच सकता है। हर साल 30 से 40 हजार करोड़ का कर्ज सरकार पर बढ़ता जा रहा है। इसी अनुपात में ब्याज की रकम भी सालाना करीब 3 से 4 हजार करोड़ रुपए बढ़ रही है। वर्ष 2019-20 के वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक राज्य सरकार कर्ज के मूल धन के रूप में 14 हजार 403 करोड़ रुपए और ब्याज के रूप में 14 हजार 803 करोड़ रुपए ब्याज के रूप में चुका रही थी, अब यह आंकड़ा और बढ़ जाएगा।
राज्य सरकार इस साल 23 मार्च को 750 करोड़, 30 मार्च को 750 करोड़, 7 अप्रैल को 500 करोड़, 2 जून को 500 करोड़, 9 जून को 500 करोड़, 7 जुलाई को 1000 करोड़, 14 जुलाई को 1000 करोड़, 4 अगस्त को 1000 करोड़, 12 अगस्त को 1000 करोड़, 9 सितंबर को 1000 करोड़, 6 अक्टूबर को 1000 करोड़ और 13 अक्टूबर को 1000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। आगे भी कर्ज लेने की तैयारी रिजर्व बैंक ने चालू वर्ष की अंतिम तिमाही का जो सांकेतिक कैलेण्डर जारी किया है, उसके मुताबिक अक्टूबर के बाद नवंबर और दिसंबर में मप्र सरकार कुल 6 हजार करोड़ का कर्ज लेने की कतार में लगी है। यह सारा उधार सरकार की जरूरत, बाजार के हालातों और केंद्र के इरादों पर निर्भर करेगा।
पिछले कुछ महीनों से हालात यह हैं कि सरकार के पास केवल वेतन देने लायक पैसा ही बच पाता है। हर महीने ओवर ड्राफ्ट की स्थिति से बचने के लिए सरकार को बाजार अथवा केंद्र सरकार से लगातार पैसा लेना पड़ रहा है। जितने बुरे हाल अभी हैं, ऐसी स्थिति 2003 में दिग्विजय सिंह के कार्यकाल के अंतिम दिनों में पैदा हुई थी। इस डैमेज कंट्रोल के लिए मुख्यमंत्री लगातार खुद भी बैठकें ले रहे हैं। वित्त विभाग के सचिव विभिन्न विभागों के साथ बैठकें कर आने वाले खर्चों का अनुमान लगा रहे हैं। अभी तो कर्ज मिल रहा है, इसलिए फिलहाल कोई दिक्कत नहीं है, अन्यथा सरकार पर ओवर ड्राफ्ट भी हो सकता है। ओवर ड्राफ्ट वो स्थिति है, जिसमें सरकार के पास आय कम और खर्च ज्यादा हो जाता है। ओवर ड्राफ्ट का होना, मतलब प्रदेश और सरकार की साख पर बट्टा लगना माना जाता है। विभागों से अनावश्यक खर्चों पर रोक लगाने के लिए कहा गया है। मुख्यमंत्री कोरोना के कारण राज्य की बिगड़ी अर्थव्यवस्था से चिंतित आर्थिक विशेषज्ञों से मशविरा भी कर रहे हैं कि कैसे प्रदेश को कर्ज से बचाया और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि राज्य के हालात कोई अचानक बिगड़ना शुरू हुए, प्रदेश की आर्थिक स्थिति दो-तीन साल पहले से ही नाजुक हालातों में पहुंचना शुरू हो गई थी। राज्य में जब 2018 में चुनाव होने वाले थे, उससे पहले ही सियासी चौसर पर लोकलुभावन वादों और योजनाओं की घोषणाओं के पांसे फेंके जाने लगे थे। अधूरी योजनाओं को पूरा करने के नाम पर राज्य सरकार केंद्र से ताबड़तोड़ कर्ज लेने लगी। कर्ज का पैसा स्कूल, शिक्षा, सड़क, पानी, बिजली, पुल, सिंचाई, रोजगार और तमाम अधोसंरचना के विकास के नाम पर लिया गया, लेकिन न अधूरी योजनाएं पूरी हो पा रही हैं, न नई योजनाओं की शुरुआत।
महामारी से बढ़ा संकट
राज्य वित्त विभाग के सूत्रों के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण बीते 6 महीनों में राज्य सरकार को जीएसटी से होने वाली आय में 44 से 50 फीसदी तक की गिरावट आई है। जीएसटी कलेक्शन के अलावा कोरोना महामारी से पेट्रोल-डीजल, आबकारी और खनिज विभाग की कर वसूली भी प्रभावित हुई। कोरोना संक्रमण की वजह से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। न तो निर्माण कार्य गति पकड़ पा रहे हैं और न ही औद्योगिक गतिविधियां पटरी पर आ पाई हैं। इसी के कारण राज्य सरकार को अपना बजट आकार भी 28 हजार करोड़ घटाकर 2 लाख 5 हजार करोड़ से कुछ अधिक का करना पड़ा। कोरोना संकट की वजह से राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्य को लगभग साढ़े 14 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त कर्ज लेने की सशर्त अनुमति दी है। इसे मिलाकर राज्य सरकार वर्ष 2020-21 में 40 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज ले सकती है। आर्थिक मामलों के जानकारों का अनुमान है कि कोरोना के बाद प्रदेश के कुल राजस्व में 30 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है, जो कुल राजस्व की करीब 26 हजार करोड़ रुपए होगी।
- सुनील सिंह