2013-14 में भाजपा ने जिस सोशल मीडिया को आधार बनाकर कांग्रेस की 10 साल पुरानी सरकार को उखाड़ फेंका था आज उसी सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी की जमकर फजीहत हो रही है। हर तरह के जोड़-तोड़ के लिए मशहूर भाजपा की आईटी सेल इस समय वहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही बचाव नहीं कर पा रही है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा का आईटी सेल कमजोर हो गया है। अगर ऐसा है तो यह भाजपा के लिए चिंता का विषय है।
साल 2014 में आकाशवाणी पर शुरू हुआ 'मन की बातÓ एक लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम है जिसे खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होस्ट करते हैं। हर महीने के आखिरी इतवार को प्रसारित किए जाने वाले इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी, राजनीति और सरकार से जुड़े मुद्दों से इतर बातचीत करते हैं। इसे न सिर्फ उनके समर्थक और आलोचक काफी ध्यान से सुनते रहे हैं बल्कि इसमें कही गई बातें कई दिनों तक मीडिया और सोशल मीडिया पर सुर्खियों का हिस्सा बनी रहती हैं। इसका ताजा (68वां) एपिसोड बीते अगस्त की 30 तारीख को प्रसारित हुआ था। लेकिन इस बार मन की बात कार्यक्रम अपने विषय या प्रधानमंत्री के विचारों-सुझावों के चलते नहीं बल्कि किसी और ही वजह से चर्चा का विषय बना। वह वजह थी, यूट्यूब पर मन की बात कार्यक्रम के वीडियो को लाखों की संख्या में डिसलाइक किया जाना।
भाजपा के यूट्यूब चैनल से लाइव स्ट्रीम किए गए इस वीडियो पर महज 24 घंटों में सवा पांच लाख से अधिक डिसलाइक आ चुके थे। जबकि तब तक इस पर आए लाइक्स की गिनती महज 79 हजार ही थी। यहां पर चौंकाने वाली बात यह रही कि डिसलाइक्स कैंपेन से अचकचाकर भाजपा ने अपने इस वीडियो पर लाइक और कॉमेन्ट का ऑप्शन ही कई दिनों के लिए बंद कर दिया। भाजपा के अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूट्यूब चैनल पर भी इसे अपलोड किया गया था। इस पर भी महज 13 घंटों में 40 हजार से ज्यादा डिसलाइक्स किए जा चुके थे। इन वीडियोज से जुड़ी ध्यान खींचने वाली बात यह रही कि बीच में डिसलाइक्स की गिनती हजारों की संख्या में कम भी हो गई। ऐसा क्यों और कैसे हुआ, इसका पता अभी तक नहीं चल पाया है। फिलहाल, भाजपा के चैनल पर प्रतिक्रियाओं के सभी विकल्प खोल दिए गए हैं और वहां मन की बात के वीडियो पर लगभग 12 लाख और नरेंद्र मोदी के चैनल पर दो लाख 86 हजार डिसलाइक्स देखे जा सकते हैं।
मन की बात कार्यक्रम का वीडियो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐसा इकलौता वीडियो नहीं था जिस पर डिसलाइक्स की भरमार रही। हाल ही में वे हैदराबाद में आयोजित राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के दीक्षांत परेड समारोह में भी वर्चुअली शामिल हुए थे। इस आयोजन के उनके वीडियो पर भी कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया देखी गई। भाजपा के यूट्यूब चैनल पर इस वीडियो को एक दिन पहले ही प्रीमियर कर दिया गया था। यानी जो लाइव वीडियो कुछ घंटे बाद आने वाला था, उसे लोग पहले ही शेयर कर सकते थे या उस पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते थे। यहां पर देखने वाली बात यह रही कि स्ट्रीमिंग के 13 घंटे पहले ही वीडियो पर एक हजार लाइक्स के मुकाबले 11 हजार डिसलाइक्स आ चुके थे। नतीजतन, इस वीडियो पर भी प्रतिक्रियाओं और टिप्पणियों का विकल्प बंद कर दिया गया। वीडियो जारी होने के बाद जब इसे फिर शुरू किया गया तो कुछ ही घंटों में 88 हजार डिसलाइक्स दर्ज हो चुके थे। इसके बाद से रिपोर्ट लिखे जाने तक इस वीडियो पर ये विकल्प डिसेबल ही रखे गए हैं। प्रतिक्रियाओं का यही क्रम प्रधानमंत्री के उस वीडियो पर भी रहा जिसमें वे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और राज्यों के राज्यपालों के साथ नई शिक्षा नीति पर चर्चा करते दिखाई दे रहे थे।
नरेंद्र मोदी के वीडियोज पर एकतरफा प्रतिक्रियाओं की भरमार होना कोई नई बात नहीं है लेकिन इस बार इनका पलड़ा उनके पक्ष में न होना जरूर नई और अनोखी बात है। अनोखी इसलिए कि इससे पहले सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के लिए इस तरह की आलोचनात्मक टिप्पणियां या ट्रेंड्स पहले तो सामने आते नहीं थे और अगर ऐसा होता भी था तो भाजपा की आईटी सेल समय रहते इनमें से ज्यादातर से निपट लेती थी। लेकिन अब वह इस मामले में उतनी प्रभावी नजर नहीं आ रही है। बीते कुछ हफ्तों से चल रहे छात्रों और युवाओं के सोशल मीडिया अभियान से जुड़ी कई बाते हैं जो इसकी तरफ इशारा करती हैं। इसे चलाने वालों में मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा (नीट और जेईई) को आगे बढ़ाने की मांग कर रहे छात्र और तमाम बेरोजगार युवा शामिल हैं। इनमें ऐसे लोग भी हैं जो किसी प्रतियोगी परीक्षा की तिथि, किसी के नतीजे या ये सब हो जाने के बाद अपने जॉइनिंग लेटर का इंतजार कर रहे हैं।
अगर युवाओं के इस कैंपेन को ध्यान से देखें तो यह भाजपा की आईटी सेल को उसी की भाषा में जवाब देता दिखाई देता है। उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री मोदी के वीडियो पर आई डिसलाइक्स की यह भरमार पिछले दिनों सड़क-2 के ट्रेलर पर आए रिकॉर्ड डिसलाइक्स से प्रेरित थी। सोशल मीडिया पर सक्रिय और निष्पक्ष मौजूदगी रखने वाले कई लोगों का मानना है कि सड़क-2 के खिलाफ चला यह अभियान भाजपा आईटी सेल का भी कारनामा था। इन लोगों का मानना था कि असली मुद्दों से ध्यान भटकाने, बिहार और महाराष्ट्र में अपने राजनीतिक हितों को साधने और ऐसा करने में कथित तौर पर भाजपा की मदद करने वालीं कंगना रनौत को मदद करने के उद्देश्य से आईटी सेल इस अभियान में शामिल थी। कैंपेन चला रहे युवा आईटी सेल से उसी के तरीके से निपटने की तैयारी में थे, इसका अंदाजा इस बात से भी लग जाता है कि जब मन की बात वाले वीडियो पर आने वाले डिसलाइक्स को भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने तुर्की से आने वाले बॉट्स बताए तो अगले वीडियो में छात्रों ने अपने शहर-कस्बों के नाम भी लिख दिए। कई छात्रों ने व्यंग्य करते हुए अपने शहरों को तुर्की या कनाडा बता डाला।
छात्रों के विरोध प्रदर्शन का अगला चरण भाजपा आईटी सेल से आगे बढ़कर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुटकी लेता हुआ भी दिखाई दिया और यहां पर भी आईटी सेल कुछ भी करने में अक्षम ही दिखी। 5 सितंबर को युवाओं ने जहां छात्र कर्फ्यू आयोजित कर 5 बजे 5 मिनट तक थाली बजाई वहीं 9 सितंबर को वे रात 9 बजे 9 मिनट के लिए दिए जलाकर रोजगार की मांग करते दिखाई दिए। युवाओं ने सितंबर के तीसरे हफ्ते को बेरोजगार सप्ताह की तरह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन यानी 17 सितंबर को राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस की तरह मनाया। इस दिन सोशल मीडिया पर हैशटैग बेरोजगार सप्ताह और राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस के साथ लाखों की संख्या में ट्वीट किए गए। इसके जवाब में अगले दिन आईटी सेल हैशटैग राष्ट्रीय बार डांसर दिवस ट्रेंड करवाती दिखाई तो दी लेकिन तमाम लोगों ने इसे न सिर्फ गैरजरूरी बल्कि आईटी सेल की खिसियाहट भी कहा।
यह बात भी ध्यान देने लायक है कि रोजगार की मांग कर रहे इन युवाओं में एक बड़ी संख्या उनकी भी होगी जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिया था या अब तक उनका समर्थन करते रहे थे। आमतौर पर सोशल मीडिया पर आईटी सेल द्वारा चलाए जाने वाले किसी प्रोपगैंडा कैंपेन को युवा वर्ग का समर्थन भी हासिल रहा करता था जिसके चलते उनके ट्वीट या ट्रेंड्स बड़े-बड़े आंकड़े हासिल करते दिखाई पड़ते थे। लेकिन न केवल युवा इस समय आईटी सेल के प्रोपगैंडा को कम समर्थन दे रहे हैं बल्कि अन्य लोगों द्वारा उसे मिलने वाला समर्थन भी इन दिनों कम हो गया लगता है।
आम दिनों में, आम यूजर अपनी आंखों पर धर्म-संस्कृति की पट्टी लगाए बैठा रहता था लेकिन कोरोना त्रासदी ने उनकी आंखें कुछ हद तक खोल दी हैं। कुछ हद तक शब्द का इस्तेमाल कोई अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए नहीं कर रहा बल्कि लोगों में आई जागरूकता की मात्रा को देखकर किया जा रहा है। दरअसल, कई लोग इस बात से प्रभावित हुए कि उनके किसी करीबी की नौकरी गई, कई इससे कि उनका कोई जानने वाला जब कोरोना संक्रमण का शिकार हुआ तो अस्पतालों ने खून के आंसू रुला दिए, वहीं कई अपने आसपास मची बाकी अफरा-तफरी को देखकर मीडिया और सोशल मीडिया दोनों से विरक्त हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय आशीष मिश्रा कहते हैं, 'इसका फायदा ये हुआ है कि अब वे व्हाट्सएप फॉरवर्ड को क्रॉसचेक करने लगे हैं या घर के बच्चों से पूछते हैं कि यह सच है क्या। इन सब ने मिलाकर आईटी सेल की रफ्तार कम की है।
अब युवाओं ने संभाला विरोध का मोर्चा
आईटी सेल के बेअसर दिखने की वजहों पर गौर करें तो पहला कारण यही समझ में आता है कि इस बार उसकी भिड़ंत ऐसे युवाओं से हुई है, जो न सिर्फ सोशल मीडिया का हर तरह से इस्तेमाल करना जानते हैं बल्कि इस पर चलने वाले दांव-पेचों से भी भलीभांति वाकिफ हैं। वे इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी से ही प्रेरित होकर सृजनात्मक तरीकों का सहारा लेते हैं और बिना ज्यादा गाली-गलौज या भद्दी भाषा का प्रयोग किए आईटी सेल के हमलों का मुंहतोड़ जवाब भी देते हैं। वे अपने अभियान को राजनीतिक रंग देने की कोशिश करने वालों से भी बचते दिखते हैं। इसके अलावा, प्रधानमंत्री तक अपनी अलग-अलग मांगें पहुंचाने की कोशिश कर रहे इन युवाओं की संख्या भी लाखों में है। आईटी सेल और उसके सहयोगी समूहों को मिलाकर भी इसके सदस्यों की संख्या अधिकतम कुछ हजार ही बैठेगी। ऐसे में सेल के लिए इन युवाओं की आवाज को किसी जवाबी हैशटैग या ट्रोल्स के जरिए दबा पाना मुश्किल हो रहा है।
संसद में भी घिरी भाजपा
कोरोनाकाल में केंद्र सरकार ने कृषि सहित कई बिल पारित करवाए हैं, जिसका संसद में जमकर विरोध हुआ। आलम यह हुआ कि सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पर भाजपा की जमकर किरकिरी हुई। आजादी के बाद के दशकों के कानूनों या सरकारी फैसलों को लें तो जिस तरह से भाजपा की सरकार उनमें से ज्यादातर को बदल रही है, वह इस बात का सबूत है कि देश का नया बहुमत उन कानूनों के साथ जुड़ाव महसूस नहीं करता। इसलिए लोकतंत्र में विपक्ष को साथ लेना जरूरी है। राज्यसभा में उप सभापति के साथ जो बर्ताव हुआ अच्छा नहीं हुआ। लेकिन विपक्ष के 8 सांसदों को जिस तरह निलंबित कर दिया गया है वह भी ठीक नहीं है। एक लोकतांत्रिक व्यवहार एक-दूसरे को सजा देने में नहीं हो सकता। लोकतंत्र के रक्षकों को व्यवहार में भी लोकतांत्रिक मिजाज दिखाना चाहिए। क्या एक परिपक्व परिवार में पिता हमेशा बेटे-बेटियों की पिटाई करता रहेगा, क्योंकि वे छोटे हैं। या फिर क्या ताकतवर हमेशा कमजोर को दबाता रहेगा। इन्हीं कमियों से निपटने के लिए लोकतंत्र की स्थापना हुई थी। और भारत में तो बिहार के वैशाली में लोकतंत्र की लंबी परंपरा रही है। सरकार भी देश की रक्षा के लिए बनी संस्थाओं से ताकत लेती है। उसे इस ताकत का इस्तेमाल विपक्ष या विरोधी आवाजों को दबाने के लिए नहीं बल्कि उनकी आवाज को शामिल करने के लिए करना चाहिए। लोकतंत्र की यही पहचान है। अगर संसद के पास अपने सदस्यों को सजा देने के अधिकार है तो वे आज के जमाने से मेल नहीं खाते। संसद में विरोध करने वाले सदस्य अपराधी नहीं, उन्हें सजा देकर उन्हें अपराधी का दर्जा भी नहीं दिया जाना चाहिए। आज की संसद किसी अंग्रेजी सरकार की संसद नहीं वह सार्वभौम भारत के नागरिकों द्वारा चुनी और सरकार बनाने और उस पर कंट्रोल करने वाली संसद है। उसे नई परंपराएं गढ़ने का हक है।
- इन्द्र कुमार