कमजोर हुआ चीन
04-May-2020 12:00 AM 513

 

दुनिया में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दुनिया की एक तिहाई आबादी लॉकडाउन में है। लेकिन जहां से ये महामारी शुरू हुई वो देश रिकवरी मोड में है, कामधंधा शुरू हो गया है और वायरस का केंद्र रहे वुहान और इसका जंगली जानवरों और जीव-जंतुओं वाला हन्नान सी-फूड मार्केट भी खुल गया। ऐसे में बहुत सारे सवाल हैं, जैसे कि कोरोना ने चीन का मैन्युफैक्चरिंग किंग वाला तमगा छीन लिया और अब लोग चीनी सामान से किनारा करने लगेंगे? क्या चीन ने कोरोना तैयार किया है? क्या यूरोप और अमेरिका की इकोनामी को ढहाने के लिए चीन ने कोरोना को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है? भारत के लोगों के पास कैसे कोरोना से लड़ने के लिए है यूनिक ताकत इसकी भी बात करेंगे। साथ ही हम देश-दुनिया में चीन के मेक ओवर वाली खबरों और मीडिया में चलाए जा रहे एजेंडे को भी एक्सपोज करेंगे।

एक देश की नासमझी कैसे इस वक्त पूरी दुनिया भुगत रही है, ये कोरोना वायरस के संकट ने बता दिया है। आपने मेड इन चाइना प्रोडक्ट्स के बारे में बहुत सुना होगा और इसका इस्तेमाल भी किया होगा। मेड इन चाइना वायरस के बारे में अब पहली बार आपको पता चल रहा है। कोरोना वायरस को मेड इन चाइना वायरस या चीनी वायरस कहने पर चीन को बुरा जरूर लग जाता है। लेकिन सच्चाई यही है कि दुनिया में जो ये संकट बना है वो मेड इन चाइना वायरस की वजह से ही है। चीन पूरी दुनिया में अपने खतरनाक वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए जाना जाता है और इसलिए कोरोना वायरस को जैविक हथियार के तौर पर लैब में निर्मित करने की आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। इजराइल के एक जैविक हथियार विश्लेषक डैनी सोहम से बातचीत के आधार पर वॉशिंगटन पोस्ट ने एक हैरान करने वाला दावा किया था। वॉशिंगटन पोस्ट में दावा किया, 'वुहान शहर में जैविक हथियार तैयार करने की गोपनीय परियोजना है। जहां इजराइली सेना के पूर्व खुफिया अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल डैनी सोहम ने चीन के जैविक हथियार को लेकर काफी काम किया है। दावा है कि चीन के जैविक हथियार का केंद्र है वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी। जहां मारक विषाणुओं पर काफी काम होता है। ये तमाम प्रयोगशाला जनसंहार के हथियार विकसित करने का काम करती है।  यह लैब नवंबर 2018 में शुरू हुई थी और इसे बेहद गोपनीय श्रेणी में रखा गया था।

इस वक्त दुनिया के साथ-साथ भारत भी कोरोना से लड़ने में लगा है। लेकिन विश्व और मानवता के लिए सबसे बड़े संकट काल के महाभारत में भारत के लोगों के पास युद्ध की काबिलियत बेहद ज्यादा है। यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि राहत पहुंचाने वाला यह तथ्य वैज्ञानिकों के ताजा शोध में उजागर हुआ है। शोधकर्ताओं का दावा है कि भारतीयों में एक विशिष्ट और विरला माइक्रो आरएनए मौजूद है। यह वंशानुगत आरएनए (राइबो न्यूक्लिक एसिड) अन्य देशों के लोगों में नहीं पाया जाता है। इसमें कोरोना वायरस की तीव्रता को मंद करने की ताकत है। दिलचस्प बात यह कि मौजूदा कोरोना वायरस भी आरएनए वायरस है।

अब चूंकि इस खोज ने सारी दुनिया को हैरत में डाल दिया तो आखिर इसकी खोज किसने की ये सवाल उठना मौजूं है। दरअसल, इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियिरंग एंड बायो टेक्नोलॉजी दिल्ली की टीम की ओर से कोरोना सार्स-टू पर यह शोध किया गया। इसमें डॉ. दिनेश गुप्ता के नेतृत्व में चार एक्सपर्ट ने पांच देशों के कोरोना मरीजों पर स्टडी की। 21 मार्च को ऑनलाइन जनरल में प्रकाशित रिसर्च पेपर संकट की इस घड़ी में भारतीयों के लिए उम्मीद जगा रहा है। केजीएमयू की डॉ. शीतल वर्मा के अनुसार इटली, चीन, भारत, अमेरिका और नेपाल के लोगों पर ये रिसर्च किया। एचएसए-एमआईआर-27-बी नामक यह माइक्रो आरएनए अन्य देशों के मरीजों में नहीं मिला। शोध में पता चला कि भारतीयों में मौजूद ये विशेष माइक्रो आरएनए उस वायरस को म्यूटेंट कर देता है जिससे वायरस की क्षमता दूसरे देशों के लोगों की अपेक्षा कम हो जाती है। दुनिया के तमाम देशों में कोरोना वायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि सात औद्योगिक शक्तियों के समूह के विदेश मंत्रियों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि चीन कोरोना वायरस महामारी के बारे में एक 'गलत सूचना’ अभियान चला रहा है। जी-7 में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके, यूएस जैसे सात देश और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं। कोरोना से लड़ने के लिए इन्होंने जो प्रण लिए हैं, उसमें चीन का कहीं जिक्र तक नहीं है और चीन को पूरी तरह नकार दिया गया है। इसके उत्तर में चीन ने भी जी-7 के इन कदमों को निराशाजनक बताया है।

बर्बाद हुई चीन की अर्थव्यवस्था

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड एनिशिएटिव प्रोजेक्ट को दुनिया के बड़े हिस्से में वर्चस्व के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन कोरोना वायरस ने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को जमीन पर ला दिया है। इस खर्चीले प्रोजेक्ट के मंद पड़ने से चीन के अरबों डॉलर डूबने को जोखिम पैदा हो गया है। कोरोना वायरस के संक्रमण से चीन की अर्थव्यवस्था अब पस्त नजर आने लगी है। इस बात की पुष्टि चीन के मैन्युफैक्चरिंग आंकड़े करते हैं। दरअसल, फरवरी में चीन में मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियां रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गईं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चीन का खरीद प्रबंध सूचकांक (पीएमआई) फरवरी में गिरकर 35.7 पर आ गया। इस सूचकांक का 50 से नीचे रहना यह बताता है कि कारखाना उत्पादन घट रहा है। कोरोना वायरस और इसको लेकर बोले गए झूठ की वजह से संदेहास्पद चीन से दुनिया की  दूरी की ओर बढ़ते कदमों के बीच भारत के पास मैन्युफैक्चरिंग ताकत बनने का मौका है। जापान और चीन पहले यह करिश्मा कर चुके हैं। अब इसको दोहराने की बारी एशिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी भारत की है।

- अक्स ब्यूरो

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