कैसे खुशहाल होगा किसान
19-Sep-2020 12:00 AM 1332

 

केंद्र और राज्य सरकारें 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित कर काम कर रही हंै। मप्र में तो खेती-किसानी को बढ़ावा देने के लिए किसान पुत्र शिवराज सिंह चौहान ने खजाना खोल रखा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रदेश अभी तक 5 बार कृषि कर्मण अवार्ड पा चुका है। इस बार सबसे अधिक गेहूं खरीदी कर मप्र देश का सिरमौर बना हुआ है, लेकिन प्रदेश में जिस तरह किसानों के साथ धोखाधड़ी की जा रही है, उससे सवाल उठता है कि किसान कैसे खुशहाल हो पाएगा?

मप्र वाकई अजब है, गजब है। एक तरफ प्रदेश अनाज उत्पादन में साल दर साल रिकार्ड दर्ज कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ यहां के किसान धोखाधड़ी, ठगी, कालाबाजारी, शोषण और भेदभाव के शिकार हो रहे हैं। रबी सीजन में यूरिया घोटाले से किसान परेशान थे कि इसी दौरान घटिया चावल के वितरण ने उन्हें हैरान कर दिया। अभी यह मामला चल ही रहा है कि करीब 100 करोड़ का पावर टिलर घोटाला सामने आया है। उद्यानिकी विभाग के अफसरों ने कंपनियों के साथ मिलकर यह घोटाला किया है, जिसमें किसानों को बड़ी चपत लगी है। दरअसल, इस पूरे घोटाले की नींव 1996 बैच के एक आईएफएस अफसर एम काली दुर्रई ने रखी है। दरअसल, दुर्रई उद्यानिकी विभाग में 1 अगस्त 2019 से लेकर 14 मई 2020 तक आयुक्त के पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों को दरकिनार कर किसानों के लिए ऑफलाइन पावर टिलर खरीदने का ऑर्डर देकर घोटाले को अंजाम दिया है।

विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार करीब 100 करोड़ रुपए का यह घोटाला केंद्र और प्रदेश शासन द्वारा उद्यानिकी से जुड़े किसानों के लिए यंत्र खरीदने की योजना से संबंधित है। इसके तहत किसानों को कृषि यंत्र खरीदी पर अनुदान दिया जाना था मगर कुछ अधिकारियों ने धांधली कर अनुदान की राशि निजी कंपनियों के बैंक खातों में जमा करवा दी। मंदसौर के एक किसान की शिकायत पर उज्जैन लोकायुक्त पुलिस ने इसकी जांच शुरू की तो इस धांधली की परतें खुलने लगीं। जब इस मामले में उद्यानिकी विभाग भोपाल से जानकारी ली गई तो प्रदेश में बड़ा घोटाला सामने आया। जानकारी के अनुसार प्रदेश के 28 जिलों में यह घपला हुआ है।

पावर टिलर की जगह पावर विडर

प्रदेश में अफसर मौका मिलते ही किसानों के नाम पर फर्जीवाड़ा करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। इसके लिए वे फर्जी कंपनियों का सहारा लेने से भी पीछे नहीं रहते हैं। वर्ष 2019-20 में उद्यानिकी विभाग के तत्कालीन आयुक्त एम काली दुर्रई सहित कुछ अधिकारियों ने किसानों को पावर टिलर के स्थान पर पावर विडर व पावर स्प्रेयर वितरित कर दिए। पावर टिलर की कीमत लगभग 1.50 लाख रुपए होती है। जबकि पावर विडर और पावर स्प्रेयर 21 हजार से 52 हजार रुपए तक के आते हैं। प्रदेश में इस योजना में कुल 1618 पॉवर टिलर किसानों को कथित रूप से प्रदाय किए गए। इस घोटाले की शुरूआत मंदसौर में किसान की शिकायत पर लोकायुक्त जांच से प्रारंभ हुई। लोकायुक्त जांच में स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि मुख्यालय से प्राप्त निर्देशानुसार अनुदान की राशि कंपनी के खाते में जमा की गई है। जबकि नियमानुसार अनुदान की राशि सीधे किसानों के खाते में जाना चाहिए। जब इस घोटाले की गंूज राजधानी तक पहुंची तो आनन-फानन में एक कमेटी बनाकर जांच कराई गई।

शासन ने इस घोटाले की जांच के लिए एमपी एग्रो कॉर्पोरेशन लि. के प्रबंध संचालक श्रीकांत बनोठ की अध्यक्षता में जांच समिति बनाई थी। जिसमें 4 तकनीकी अधिकारी सदस्य थे। समिति ने सभी जिलों से योजना के अंतर्गत वितरित यंत्रों को भोपाल बुलवाया था। सभी जिलों से 2-2 यंत्र अवलोकन हेतु बुलवाए गए थे। जांच के पश्चात समिति ने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है। सूत्रों के अनुसार आईएएस अधिकारी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने घोटाले के तार पूरे प्रदेश से जुड़े होने का हवाला देते हुए इसकी जांच अर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो या लोकायुक्त से कराने की अनुशंसा की है।

5 कंपनियों ने किया घोटाला

उद्यानिकी विभाग की यंत्रीकरण योजना में करोड़ों के घोटाले में प्रथम दृष्टया 5 कंपनियां दुर्ग इंटरप्राइजेज रायपुर, गणेश इंटरप्राइजेज जबलपुर, किसान एग्रीटेक गुजरात, छत्तीसगढ़ इंटरप्राइजेज दुर्ग और जेएम इंटरप्राइजेज दुर्ग के नाम आ रहे हैं। इन सभी कंपनियों का संचालक एक ही व्यक्ति जिग्नेश पटेल बताया जाता है। सूत्रों के अनुसार योजना में प्रदाय किए गए कुल 1618 पावर टिलर में से 1291 पावर टिलर इन्हीं 5 कंपनियों ने सप्लाई किए थे। लोकायुक्त पुलिस ने मंदसौर जिले के गरोठ, सीतामऊ, मल्हारगढ़ आदि क्षेत्र के किसानों से बयान लिए हैं। जिन कंपनियों के खाते में अनुदान की राशि जमा हुई है, उन्हें नोटिस जारी कर बयान देने के लिए बुलाया गया है। खास बात यह है कि ये कंपनियां शासन द्वारा प्रमाणित भी नहीं हैं। तीन कंपनियों किसान एग्रो लिमिटेड, जेएम इंटरप्राइजेज और गणेश ट्रेडिंग से कृषि उपकरणों की खरीदी हुई है। इनमें जेएम इंटरप्राइजेस को छतीसगढ़ में गड़बड़ी के कारण ब्लैक लिस्ट किया जा चुका है। इन तीनों कंपनियों का रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज या फर्म्स एवं सोसायटी में पंजीयन भी नहीं था। एमपी एग्रो से एमओयू के बिना ही तीनों कंपनियों ने यंत्रों की आपूर्ति कर दी। तीनों कंपनियों का कर्ताधर्ता गुजरात के आणंद का रहने वाला जिग्नेश पटेल बताया जा रहा है।

जांच में ये पाया गया है कि पॉवर टिलर छत्तीसगढ़ की कंपनी कृषि क्राफ्ट के माध्यम से खरीदे गए हैं। ये सारी खरीदी तीन एजेंसियों छत्तीसगढ़ इंटरप्राइजेस, गणेश ट्रेडिंग कंपनी और जेएम इंटरप्राइजेस से हुई है। इनका कर्ताधर्ता जिग्नेश पटेल है। इन तीनों कंपनियों का रजिस्ट्रेशन कंपनी एक्ट में नहीं मिला है। इनका जीएसटी भी नहीं है। इन्हें सहकारिता संस्था बताया गया है। लोकायुक्त ने पटेल को 10 सितंबर को दस्तावेजों के साथ तलब किया है।

उपकरण अमानक स्तर के

जांच में यह बात भी सामने आई है कि कंपनी ने जो उपकरण एमपी एग्रो के माध्यम से किसानों को दिए थे वो अमानक स्तर के थे। प्रथम दृष्टया कुछ अधिकारियों द्वारा पद के दुरुपयोग का मामला सामने आया है। फिलहाल इस मामले में कोई केस दर्ज नहीं हुआ है। जांच पूरी होने के बाद वैधानिक कार्रवाई की जाएगी। उज्जैन लोकायुक्त पुलिस ने उद्यानिकी विभाग, भोपाल को इस शिकायत के संबंध में पत्र लिखकर योजना संबंधित जानकारी मांगी थी।

उद्यानिकी विभाग ने यंत्रीकरण योजना के नाम पर वर्ष 2017-18 से 2019-20 की अवधि में आदिवासी किसानों को करीब 100 करोड़ रुपए के चाइना मेड घटिया कृषि यंत्र थमा दिए। 5 एचपी का बिल लगाकर 2 से 3 एचपी की चाइना मेड मशीनें खपाई गई हैं। जिस फर्म के माध्यम से कृषि यंत्रों की सप्लाई करवाई गई, उस फर्म का प्रदेश में रजिस्टर्ड ऑफिस, सर्विस सेंटर एवं जीएसटी नंबर नहीं है। घोटाला पकड़ में आने पर डायरेक्ट सप्लाई ऑर्डर की बजाय एमपी एग्रो से कार्य करवाने के निर्देश दिए गए। यंत्रीकरण योजना का कार्य जैसे ही एमपी एग्रो को सौंपा गया, तो उसकी रफ्तार धीमी हो गई। यही नहीं आदिवासी कृषकों से बिल सत्यापित कराकर फर्जी कृषक अंक की रसीदें लगाकर अनुदान राशि सीधे डीलर ने अपने खाते में शिफ्ट करवा ली। शिकायत में विशेष रूप से कृषि क्राफ्ट कंपनी पर धोखाधड़ी आदि का आरोप भी है। यह भी बताया गया है कि उनके द्वारा अन्य डीलरों के माध्यम से चाइना में घटिया माल जिनके पार्ट आदि भी उपलब्ध नहीं हैं, वह प्रदाय किया गया है।

नियमानुसार प्रदायकों द्वारा प्रस्तुत देयकों में यंत्र का पूर्ण विवरण लिखा जाना आवश्यक होता है। जिसमें निर्माता कंपनी का नाम, मॉडल, सीरियल नंबर, इंजन चेचिस नंबर महत्वपूर्ण है। लेकिन जांच में यह बात सामने आई है कि अधिकांश देयकों में पूर्ण जानकारी अंकित नहीं की गई है। इसके अतिरिक्त कई स्थानों पर पावर टिलर के स्थान पर रोटरी टिलर या पावर विडर लिखा गया है। वहीं कुछ बिलों में कुछ भी नहीं लिखा गया है, मात्र मॉडल का कोड अंकित है।

अधिकांश प्रकरणों में किसानों से कृषक अंश का भुगतान नगद प्राप्त किया हुआ पाया गया है। जबकि किसानों के बैंक खाते उपलब्ध हैं।  शिकायत में प्राप्त प्रकरणों का एमपी एग्रो द्वारा क्षेत्रीय प्रबंधकों एवं जिला प्रबंधकों के माध्यम से रेंडम आधार पर पुन: भौतिक सत्यापन करवाया गया। बुरहानपुर, शाजापुर, आगर-मालवा, भिंड, सीधी, सिंगरौली, उमरिया आदि जिलों में सत्यापन के बाद कई तरह की खामियां सामने आईं। बुरहानपुर में उद्यानिकी विभाग ने किसानों को 1.50 लाख का पावर टिलर बताकर रोटरी टिलर थमा दिया है। शाजापुर में पावर टिलर के इंजन के आकार को देखकर प्रतीत होता है कि 10 एचपी के गुणवत्ता के इंजन नहीं हैं। आगर-मालवा में यह तथ्य सामने आया कि वहां किसानों से कृषक अंश काफी कम लिया गया है, जबकि प्रदायक ने रसीद 75 हजार की दी है। भिंड में किसान सियाराम के पावर टिलर के स्थान पर रिपर पाया गया, जिससे किसान संतुष्ट नहीं हैं। किसान दिनेश सिंह को 7.5 एचपी का मॉडल दिया गया, जबकि दरें 9 एचपी के बराबर पाई गईं। इसी तरह सीधी, सिंगरौली, उमरिया में भी किसानों को दूसरी मशीनें देकर पावर टिलर की राशि वसूली गई है।

बिना सामान खरीदे भुगतान

आरोप ये भी है कि नेताओं-अफसरों की मिलीभगत से घोटाला करने के लिए अफसरों ने न सिर्फ नियम बदले, बल्कि किसानों को घटिया उपकरण मुहैया कराए। किसानों की सब्सिडी का हिस्सा भी सीधा निजी कंपनी को भुगतान कर दिया गया है। यंत्रीकरण योजना में पावर टिलर खरीदने में प्रारंभिक जांच में आर्थिक अनियमितता की पुष्टि हो चुकी है। किसानों को केंद्र से अनुदान देने के नाम पर इस मशीन की जगह सस्ते और घटिया चीन के बने उपकरण किसानों को बांटकर फर्जी कागज पर बनी कंपनियों ने करोड़ों कमाए और इसमें मदद की किसानों का हक छीनने वाले उद्यानिकी विभाग के अफसरों ने। मंदसौर के किसान मुकेश पाटीदार ने बताया, भारत सरकार का नियम है कि सिर्फ और सिर्फ डीबीटी (सब्सिडी सीधा खाते में ट्रांसफर) होना चाहिए। कोई भी अनुदान हो किसान के खाते में ही आना चाहिए। इनके द्वारा ऐसा नहीं किया गया। वेंडर पेमेंट कर रहे हैं। इसमें तो एक ही व्यक्ति को ठेका दे दिया।

दोगुने दाम में खरीदे गए उपकरण

आरोप है कि उपकरणों को दोगुने से ज्यादा दामों में खरीदा गया, किसानों के खाते की जगह सीधे कंपनियों को भुगतान किया गया, पहले योजना में ट्रैक्टर विथ रोटावेटर दिए जाते थे, जिनका आरटीओ में रजिस्ट्रेशन होता है, लेकिन 2019-2020 में पावर टिलर और पावर विडर दिए गए जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं होता है। ये जानकर आप अपना माथा पीट लेंगे कि एमपी एग्रो ने जिन कंपनियों से पावर टिलर खरीदे हैं, उनका रजिस्ट्रेशन नहीं मिला है। सूत्रों के मुताबिक साल 2019-20 में अफसरों ने किसानों को डेढ़ लाख रुपए कीमत के पावर टिलर की जगह 21 से 52 हजार रुपए के सस्ते पावर विडर और पावर स्प्रेयर बांटे। ये सारे कृषि यंत्र मेड इन चाइना हैं। डीबीटी खत्म करके, एमपी एग्रो से खरीदी शुरू हुई, आरोप लगे कि सप्लायर एमपी एग्रो में रजिस्टर्ड नहीं थे, उन्हें फायदा पहुंचाने ऐसे आदेश निकाले गए कि कंपनी के खाते में अनुदान की राशि जा सकती है, काम को भी ऑफलाइन करने के आदेश दे दिए गए ताकि घटिया काम, भ्रष्टाचार नजर से बचे रहें।

जाहिर सी बात है, घटिया मशीन है सो किसानों के किसी काम की नही हैं। छतरपुर के किसान गंगाराम कुशवाहा की मानें तो मोटी जमीन है वो काम नहीं करती, ट्रैक्टर भर दिया कल्टीवेटर दिया। वहीं खुद उद्यानिकी विभाग के अफसर कह रहे हैं, जो सामग्री दी गई वो टिलर का विकल्प नही हैं। कृषि इंजीनियर एसपी अहिरवार के मुताबिक 85 हजार किसानों को सब्सिडी देने का है मॉडल वाइज, विडर अलग चीज है जो निंदाई, गुड़ाई के लिए काम आता है, पावर टिलर छोटा ट्रैक्टर है कृषि कार्य के लिए उपयोग होता है। जांच समिति ने जब टीकमगढ़, बुरहानपुर, होशंगाबाद और देवास जिलों में बांटे गए यंत्रों का देखा तो पता चला कि वो पावर टिलर थे ही नहीं, सभी मशीनों में इंजन नंबर एक ही लिखा है। इन पर जिस कंपनी ने बनाया उनका नाम नहीं लिखा था। सभी मशीनों में एक ही इंजन नंबर मिला। मशीन से संबंधित मापदंड खुदे हुए नहीं बल्कि स्टीकर से चिपकाए हुए थे। 5 हार्स पावर की मशीन की जगह दो और तीन हार्स पावर की मशीन लगी हुई थी।

आरक्षित वर्ग के नाम पर घोटाला

मामले की जांच लोकायुक्त उज्जैन पुलिस भी कर रही है। इसमें पता चला है कि यह योजना पहले आओ पहले पाओ की थी। सामान्य वर्ग के किसानों को इसमें 60 हजार रुपए की अनुदान राशि दी जानी थी। जबकि, आरक्षित वर्ग के किसानों को 75 हजार रुपए तक की अनुदान राशि दी जानी थी। विभागीय अफसरों का कारनामा यहां भी कम नहीं रहा। उन्होंने आरक्षित वर्ग को ज्यादा अनुदान होने पर मंदसौर जैसे जिले में कागजों में सिर्फ इसी वर्ग के किसानों को यंत्र देना दर्शा दिया। जबकि किसानों को यंत्र दिए ही नहीं, इस तरह अफसरों और कंपनी ने मिलकर आरक्षित वर्ग के नाम पर ज्यादा अनुदान हासिल कर लिया। जिस डीलर ने ये यंत्र दिए वो कनाडा का नागरिक है, गुजरात से कारोबार किया, फिर छत्तीसगढ़ आ गया लेकिन वहां भी ना रजिस्टर्ड दफ्तर था ना जीएसटी नंबर, इसी एक मालिक की 3 कंपनियों को सांठगांठ करके पूरी योजना का लगभग 95 फीसदी काम दिया गया। भारत सरकार के कृषि कल्याण मंत्रालय ने जिस कंपनी, मॉडल और मापदंडों की बात कही उसकी भी धज्जियां उड़ाई गईं। कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि  नियम है भारत सरकार की सूची में होना चाहिए, फिर टेस्टिंग होती है कमेटी होती है किसान को छूट देना चाहिए उसमें सब्सिडी भारत सरकार देगी। भारत सरकार की सूची में नहीं। जांच चल रही है।

वैसे देखा जाए तो जब भी किसानों के साथ ठगी होती है तब सरकार उन्हें न्याय देने के लिए बड़े-बड़े दावे करती है। लेकिन कुछ ही मामलों में ऐसा देखने को मिला है कि दोषियों के खिलाफ कार्यवाही हो पाई है। प्रदेश सरकार ने उद्यानिकी विभाग में हुए घोटाले की जांच तो जोरशोर से शुरू की है, लेकिन क्या दोषी सलाखों के पीछे जाएंगे।

निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए बदल दिए थे नियम

शुरुआती पड़ताल में पता चला है कि निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए उद्यानिकी विभाग के तत्कालीन आयुक्त एम काली दुर्रई और उपसंचालक राजेंद्र कुमार राजौरिया ने केंद्र सरकार के नियम भी बदल डाले थे। केंद्र द्वारा भेजी गई राशि कृषि उपकरण खरीदी लिए किसानों के खाते में भेजी जानी थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। दरअसल केंद्र की इस योजना में नियमों के मुताबिक हितग्राही के खाते में सीधे 50 फीसदी रकम जाती है, यानी डीबीटी। नियम था किसान का पंजीयन, सत्यापन, स्वीकृति आदेश के बाद किसान बाजार से यंत्र खरीदे, अधिकारी जाकर सत्यापन करें फिर बिल जेनरेट होकर किसान को अनुदान का पैसा जाता था, लेकिन आरोप है कि किसानों के खातों में राशि भेजने की जगह कंपनियों को भुगतान करवा दिया गया। जानकारी के अनुसार नियम यह है कि उद्यानिकी विभाग किसानों के लिए यंत्रों की खरीदी एमपी स्टेट एग्रो के माध्यम से कराएगा। पावर टिलर खरीदने के लिए एमपी एग्रो ने 4 संस्थाओं से टेंडर भी बुला लिया था, पर उद्यानिकी विभाग के अफसरों ने पूरी प्रक्रिया को बदलकर अपने स्तर पर निजी कंपनियों से खरीदी कर ली। किसानों को जो 50 फीसदी अनुदान मिलता था। यह अनुदान किसानों के खाते में जाना था। लेकिन उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने कंपनियों के साथ मिलीभगत कर उसे डायरेक्ट कंपनियों को दे दिया और किसानों को सप्लाई की गई घटिया मशीनों का 50 प्रतिशत भुगतान कंपनियों ने जाकर उनसे वसूल लिया। यही नहीं किसानों के साथ ठगी भी की गई। उन्हें कम कीमत की मशीन पकड़ाकर लाखों के पावर टिलर का दाम लिया गया। अब मामला सामने आने के बाद हड़कंप मचा हुआ है। उधर, किसान अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।

घोटाले को लेकर राजनीति शुरू

मप्र उद्यानिकी विभाग के भोपाल दफ्तर में मौजूद छोटे से पावर टिलर ने मप्र में करोड़ों को उद्यानिकी घोटाले की परतें खोली हैं। उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने कंपनियों के साथ मिलकर किस तरह किसानों को पावर टिलर की जगह पावर विडर सौंप दिया है। किसानों की सब्सिडी में घालमेल करने का यह खेल बड़े स्तर पर खेला गया है। मॉडल वाइज, विडर अलग चीज है जो निंदाई, गुड़ाई के लिए काम आता है। वहीं पावर टिलर छोटा ट्रैक्टर है जो कृषि कार्य के लिए उपयोग होता है। छोटे से पावर टिलर जो राज्य में कुल 1647 किसानों को बांटे गए उसने मप्र में पावर गैलरी को हिला दिया है। अब इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस 2017 से शिवराज सरकार के वक्त की भी जांच कराने की मांग कर रही है। उधर, शिवराज सरकार के मंत्री पूर्व की कमलनाथ सरकार पर उंगली उठा रहे हैं। लेकिन पूर्व उद्यानिकी मंत्री सचिन यादव वो नोटशीट लेकर बैठे हैं जिसमें पिछले साल 23 अक्टूबर को ही मामले की जांच के आदेश दे दिए गए थे। सचिन यादव कहते हैं कि ये घोटाला पूर्व भाजपा सरकार के वक्त से चल रहा है। जब मैं मंत्री था तो मंदसौर से शिकायत मिली जिसके आधार पर 23 अक्टूबर 2019 को नीटशीट पर मामले की जांच करने को कहा, लेकिन हमारी सरकार चली गई।

प्रदायकर्ता फर्म

फर्म          संख्या

मे. गणेश टेडिंग कंपनी, जबलपुर            460

मे. जेएम इंटरप्राइजेस, भिलाई 171

मे. श्रीराम ट्रेडर्स, अनूपपुर        1

मे. ग्रीन एग्रो, बैतूल 34

मे. छत्तीसगढ़ इंटरप्राइजेस, दुर्ग               244

मे. पाटीदार एग्रो इंडस्ट्रीज, सुसनेर         1

मे. हरिओम एग्रो एजेंसी, कारखेड़ा         17

मे. किसान एग्रोटेक, दुर्ग        417

मे. श्री सिद्ध विनायक एग्रो, बुरहानपुर    16

मे. जयकिसान टे्रडर्स, बुरहानपुर           1

मे. श्रीजी कृषि पंप, रावेर         1

मे. शांति एग्रो हाईटेक, छिंदवाड़ा             1

मे. विन स्पायर प्रालि, अहमदाबाद          9

मे. विनायक टे्रडर्स, भोपाल   43

मे. मां नर्मदा कृषि सेवा, खरगोन           25

मे. आरएस एग्रो       91

मे. ओम सांईराम सेल्स, खरगोन            3

मे. स्वास्तिक इंटरप्राइजेस कंपनी           2

मे. हार्टिका वन स्टॉप, भोपाल 2

मे. किसान कुंज कृषि केंद्र, ग्वालियर    26

मे. जैन ट्रेक्टर्स, बालाघाट        1

मे. नंदिनी ट्रेक्टर्स, बालाघाट   1

मे. सिद्धी एग्रो इंडस्ट्री, भोपाल 50

मे. राजा इंटरप्राइजेस, संगरूर 1

 

मंत्री ने ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त से जांच के सुझाव को ठुकराया

केंद्र की यंत्रीकरण योजना के तहत प्रदेश के उद्यानिकी विभाग को मिले 100 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच को लेकर नया पेंच मंत्री ने लगा दिया है। घोटाले की प्राथमिक जांच में आईएएस अफसर के नेतृत्व वाली चार सदस्यीय टीम ने विभागीय अफसरों को दोषी पाया था और मामले की विस्तृत जांच ईओडब्ल्यू या लोकायुक्त से करवाने की अनुशंसा की थी। उद्यानिकी विभाग के मंत्री भारत सिंह कुशवाह इस अनुशंसा से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है जांच किसी अन्य एजेंसी से करवाने के बजाय विभाग स्तर से ही करवाना चाहिए। हालांकि, वे अभी जांच रिपोर्ट का गहन अध्ययन करने और एक सप्ताह बाद इस मामले में कोई निर्णय लेने की बात कह रहे हैं। प्रदेश में कांग्रेस सरकार के रहते वर्ष 2019 में  योजना के तहत 100 करोड़ रुपए से कृषि यंत्र खरीदे जाने थे। यह राशि सीधे किसानों के खाते में जानी थी, लेकिन अफसरों ने नियमों में फेरबदल कर राशि को कंपनी के खाते में डलवा दिया। इस मामले की शिकायत हुई तो जांच का जिम्मा एमपी एग्रो के एमडी श्रीकांत बनोठ को दिया गया। चार सदस्यीय टीम ने शुरुआती जांच में पाया कि योजना में प्रदेश स्तर पर फर्जीवाड़ा हुआ है। टीम ने शुरुआती जांच रिपोर्ट अधिकारियों को सौंप दी थी। यह रिपोर्ट अधिकारियों ने मंत्री के सामने रखते हुए ईओडब्ल्यू या लोकायुक्त से जांच कराने की सिफारिश की। इस पर मंत्री कुशवाह ने स्पष्ट इनकार कर दिया है।

 

घटिया चावल की जांच में चौंकाने वाले खुलासे

बालाघाट तथा मंडला जिलों में अमानक (पोल्ट्री ग्रेड) चावल पीडीएस दुकानों से वितरित करने के मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ईओडब्ल्यू को जांच सौंपने के साथ ही तीखे तेवर दिखाए जिसके बाद नागरिक आपूर्ति निगम के कुछ अधिकारियों पर गाज गिरी थी। इस मामले में परत-दर-परत जो खुलासे हो रहे हैं वह काफी चौंकाने वाले हैं। यह बात सामने आई है कि माफिया और अधिकारियों की मिलीभगत से यह घोटाला 250 करोड़ रुपए तक पहुंचा है। जांच में इस बात का खुलासा हो चुका है कि राजनेताओं के संरक्षण में इस गठजोड़ ने घटिया चावल गोदामों तक पहुंचाया है। इस प्रकार के घपले-घोटाले उस स्थिति में ही अंजाम दिए जा सकते हैं जबकि राजनेताओं का संरक्षण हो। इसलिए जरूरी है कि संरक्षण देने वाले राजनेता किसी भी दल के हों उन्हें न केवल बेनकाब किया जाना चाहिए बल्कि कार्रवाई भी की जाना चाहिए ताकि भविष्य में इस प्रकार लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले घोटालों पर रोक लग सके। प्रदेश कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि राशन माफिया हर साल 1000 करोड़ का घोटाला करता है।

घटिया चावल की जांच प्रदेश के सभी जिलों में शुरू हो गई है तथा गोदामों से सैंपल एकत्रित किए जा रहे हैं। जांच में पता चला है कि मिलर्स ने अच्छे चावल को बाजार में बेचा और खराब चावल को जिला प्रबंधकों से मिलकर गोदामों में रखवाया और इस प्रकार घोटाला किया गया। इस मामले में जिला प्रबंधकों की बड़ी संलिप्तता सामने आ रही है क्योंकि उन्होंने खराब चावल को अच्छा बताकर गोदामों में रखवा लिया था। अभी तक 1550 सैंपल लिए गए इनमें से 535 की रिपोर्ट आ गई है और उसमें से 70 सैंपल अमानक पाए गए हैं। अब उन सभी गोदामों से सैंपल लिए जा रहे हैं जहां चावल रखे हुए हैं।

चावल घोटाला माफिया और अधिकारियों की मिलीभगत से 250 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। राजनेताओं के संरक्षण में इस गठजोड़ ने घटिया चावल सरकारी गोदामों तक पहुंचाया। जांच में यह उजागर हो चुका है। अब जिम्मेदारों पर कार्रवाई करने की जगह चावल को वापस मिलरों को लौटाया जा रहा है। यही वजह है कि ईओडब्ल्यू ने अब तक जांच में कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की। सर्वाधिक 47 करोड़ रुपए मूल्य का घटिया चावल बालाघाट में पाया गया है।

जांच का पुख्ता तंत्र नहीं

दरअसल, चावल की गुणवत्ता जांच का कोई पुख्ता तंत्र मप्र में नहीं है। प्रदेश में अनाज की खरीदी और भंडारण की जिम्मेदारी 4 संस्थाओं- नागरिक आपूर्ति निगम, एमपी एग्रो, खाद्य विभाग और वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन की होती है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि कोई भी अमानक खरीदी या भंडारण की जांच नहीं कर पाता है। इनके रहते केंद्र की टीम आती है और 52 हजार टन चावल की सैंपलिंग करती है, जिसमें से 3 हजार टन खराब निकलता है। दरअसल, प्रदेश में एक आउटसोर्स कंपनी गुणवत्ता देखती है। लेकिन मिलर्स और विभाग की मिलीभगत से अमानक चावल गोदामों में रखा जाता है। इसके लिए जिम्मेदार कोई भी विभाग इसकी जांच-पड़ताल नहीं करता है कि जो अनाज गोदाम में रखा गया है वह कैसा है?

राज्य का नागरिक आपूर्ति निगम अपने और भारतीय खाद्य निगम के सेवानिवृत्त अधिकारियों की सेवाएं लेकर काम चला रहा है, जो माफिया के गठजोड़ का आसानी से हिस्सा बन जाते हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार की जांच का हल्ला मचने के बाद 73 हजार 540 टन चावल मिलर्स को वापस लौटाया जा रहा है।

खरीदी प्रक्रिया भी गलत

मप्र में धान सहित अन्य अनाजों की खरीदी की प्रक्रिया भी गलत है। दूसरे राज्यों में आढ़तियों के माध्यम से अनाजों की खरीदी होती है, जबकि मप्र में सरकार खुद खरीदती है। ऐसे में किसान कूड़ा-करकट भरा अनाज बेच देते हैं। यही नहीं धान की मिलिंग अन्य राज्यों में मार्च में ही हो जाती है, जबकि मप्र में बरसात में होती है। बरसात में मिलिंग होने के कारण चावल में नमी पकड़ लेती है। नमी रहित चावल बोरों में भरकर गोदामों में रख दिया जाता है, जो धीरे-धीरे खराब होने लगता है। उच्च स्तरीय जांच में सामने आया है कि चावल की गुणवत्ता को लेकर चलने वाला खेल बिना अधिकारी, मिलर और गोदाम के कर्मचारियों की मिलीभगत के संभव नहीं है। दरअसल, नियमों में चार स्तर पर जांच का प्रविधान है पर इसकी अनदेखी जानबूझकर की जाती है। धान खरीद के समय, मिलर को मिलिंग के लिए देते समय मिलिंग के बाद अधिकारियों से नमूना जांच और सबसे अंत में गोदाम में चावल जमा कराते समय गुणवत्ता की जांच होती है। इस व्यवस्था के बाद भी प्रदेश के 22 जिलों में 73 हजार 540 टन निम्न गुणवत्ता का चावल गोदामों में पहुंच गया, जो 250 करोड़ रुपए से ज्यादा का है। सरकार को एक क्विंटल चावल पर करीब 3100 रुपए का खर्च आता है। इस हिसाब से देखें तो यह खेल बड़ा है।

 

विधायक के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं?

चावल घोटाले में यह तथ्य निकलकर आया है कि जबलपुर संभाग के एक विधायक के संरक्षण में यह सारा खेल खेला गया है। उक्त विधायक संभाग के बड़े ट्रांसपोर्टर हैं। सूत्रों का कहना है कि संभाग के साथ ही आसपास के जिलों के गोदामों में रखे अमानक चावल का संबंध उनसे है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि विधायक के खिलाफ अभी तक कोई भी कार्यवाही नहीं की गई है। सूत्र बताते हैं कि केंद्रीय दल द्वारा घोटाला पकड़ने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आनन-फानन में सुबह 10 बजे बैठक बुलाकर सबको फटकार लगाई। उन्होंने अफसरों से कहा कि यह कितनी शर्मनाक बात है कि केंद्र की टीम आकर सर्वे कर रही थी और आप लोगों को भनक तक नहीं लगी। अगर समय रहते आप लोग देख लेते तो मैं केंद्र को मैनेज कर लेता।

  • राजेंद्र आगाल
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