मप्र देश का सबसे अधिक वन वाला राज्य तो है ही यहां सबसे अधिक बाघ भी हैं। प्रदेश में बाघों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इसका असर वनक्षेत्रों में रहने वाले अन्य प्राणियों के साथ ही बाघों पर भी पड़ रहा है। क्षेत्रफल कम होने के कारण बाघों के बीच टेरेटरी को लेकर जानलेवा लड़ाई हो रही है। इस कारण लगभग हर माह कोई न कोई बाघ मौत के मुंह में समा रहा है। यही नहीं बाघ वन क्षेत्र से निकलकर रहवासी क्षेत्र में भी पहुंच रहे हैं। इससे कई दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं। इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रदेश में नए अभयारण्य बनाने की तैयारी की जा रही थी, लेकिन यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया है।
गौरतलब है कि टाइगर स्टेट का तमगा मिलने के बाद प्रदेश में शुरू हुई 11 नए अभयारण्यों के गठन की प्रक्रिया पर पूर्ण विराम लग गया है। राज्य सरकार ने नए अभयारण्यों की जरूरत को सिरे से खारिज करते हुए इस प्रक्रिया को रोक दिया है। इनमें से पांच अभयारण्यों के प्रस्ताव कैबिनेट की मंजूरी के लिए जा चुके थे तो शेष छह अभयारण्यों के प्रस्ताव भी लगभग तैयार थे। पिछले दिनों वनमंत्री विजय शाह ने साफ कहा है कि प्रदेश में कोई नया अभयारण्य नहीं खोला जाएगा। 8 साल के अथक प्रयास के बाद प्रदेश दोबारा टाइगर स्टेट बना है। वर्ष 2018 के बाघ आंकलन (टाइगर एस्टीमेशन) में प्रदेश 526 संख्या के साथ देश में पहले स्थान पर रहा है। इसके साथ ही सरकार की जिम्मेदारी भी बढ़ी है।
विशेषज्ञों ने साफ कहा था कि बाघों की संख्या बढ़ने का मतलब है, ज्यादा निगरानी और बाघों के लिए नए क्षेत्रों का विकास। इसी सलाह पर पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार ने 11 नए अभयारण्यों के गठन का प्रस्ताव तैयार किया था। नाथ सरकार अभयारण्यों के गठन पर आखिरी फैसला ले पाती, इससे पहले ही सरकार गिर गई। हालांकि शिवराज सरकार ने पहले दिन से ही इसे प्राथमिकता में नहीं रखा। बाघ आंकलन की रिपोर्ट 2019 में आई थी, तभी विशेषज्ञों ने कहा था कि प्रदेश के नेशनल पार्क और अभयारण्यों में बाघ क्षमता से अधिक हो गए हैं। ऐसे में नए क्षेत्र तैयार करने होंगे। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बीते 9 महीने में घटी घटनाओं ने विशेषज्ञों की आशंका को सही साबित किया है।
ऐसी घटनाएं दूसरे इलाकों में भी घटी हैं। पार्क के बफर क्षेत्र में बाघों ने आधा दर्जन ग्रामीणों को मौत के घाट उतार डाला है। यदि बांधवगढ़ की ही बात करें तो वहां क्षमता 70 बाघों की है और वर्तमान में 124 हैं। इस कारण बाघ बफर क्षेत्र से बाहर निकलकर नजदीक के गांव तक पहुंच रहे हैं। नए अभयारण्यों का गठन सिर्फ बाघों की सुरक्षा के लिए ही नहीं था, बल्कि सरकार को पर्यटन बढ़ाकर आमदनी भी बढ़ानी थी। वर्तमान में प्रदेश में 11 नेशनल पार्क और 24 अभयारण्य हैं, जिनसे हर साल औसतन 27 करोड़ रुपए राजस्व मिलता है। तत्कालीन सरकार ने इसे 200 करोड़ रुपए तक ले जाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन अभी यह प्रस्ताव मझधार में है। उधर, प्रदेश के वन क्षेत्रों में बाघों की आपसी लड़ाई आम बात हो गई है। इससे बाघों के संरक्षण पर सवाल उठने लगा है।
गौरतलब है कि मप्र के वनक्षेत्र पहले से ही असुरक्षित रहे हैं। यहां वनक्षेत्रों में वन्य जीवों की तस्करी निरंतर होती रहती है। प्रदेश के 10 नेशनल पार्क तथा 25 अभयारण्यों के आसपास स्थित ऐसे फार्म हाउस और रिसोर्ट तस्करों का अड्डा बने हुए हैं। वन विभाग-नेशनल पार्क के अफसरों, सफेदपोश लोगों, स्थानीय प्रशासन और तस्करों के गठजोड़ से मप्र में हर साल वन्य जीव तस्करी का अवैध कारोबार सैकड़ों करोड़ रुपए का है।
मप्र में होने वाले वन्यजीव तस्करी की बात करें तो पिछले डेढ़ दशक में यहां यह अवैध कारोबार तेजी से पनपा है। आज विश्व में वन्य जीव तस्करी का अवैध कारोबार 30,000 करोड़ डॉलर से अधिक है, जो अब मादक पदार्थों के कारोबार से कुछ ही कम और हथियारों के कारोबार के तो करीब ही पहुंच चुका है। सौंदर्य प्रसाधनों, औषधि निर्माण, तो कहीं घरों की सजावट के लिए वन्य जीव के अंगों की बेतहाशा मांग और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मिलता मुंह मांगा दाम इसके प्रमुख कारण हैं। यही कारण है कि पिछले डेढ़ दशक में मप्र में वन्य जीवों की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है। यह वन्य जीवों के लिए बड़े खतरे का संकेत है।
मप्र में सबसे बड़ा वनक्षेत्र
मप्र में वन्य-जीव संरक्षित क्षेत्र 10989.247 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जो देश के दर्जन भर राज्य और केंद्र शासित राज्यों के वन क्षेत्रों से भी बड़ा है। मप्र में 94 हजार 689 वर्ग किलोमीटर में वन क्षेत्र हैं। यहां 10 राष्ट्रीय उद्यान और 25 वन्य-प्राणी अभयारण्य हैं, जो विविधता से भरपूर है। कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना, पेंच, सतपुड़ा एवं संजय राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व का दर्जा प्राप्त है। वहीं करेरा (गुना) और घाटीगांव (ग्वालियर) विलुप्तप्राय दुर्लभ पक्षी सोनचिड़िया के संरक्षण के लिए, सैलाना (रतलाम) और सरदारपुर (धार) एक अन्य विलुप्तप्राय दुर्लभ पक्षी खरमोर के संरक्षण के लिए और 3 अभयारण्य-चंबल, केन एवं सोन घड़ियाल और अन्य जलीय प्राणियों के संरक्षण के लिए स्थापित किए गए हैं। अपनी स्थापना के समय से ही ये नेशनल पार्क और अभयारण्य रसूखदारों और तस्करों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए है। यही कारण है कि इनके भीतर स्थित गांवों को जहां बाहर किया जा रहा है, वहीं इनके आसपास फार्म हाउस और रिसार्ट बड़ी तेजी से बने हैं। जानकार बताते हैं कि जब नेशनल पार्क तथा अभयारण्यों के आसपास फार्म हाउस और रिसोर्ट बढ़ने लग तबसे प्रदेश में वन्य प्राणियों के शिकार के मामले भी बढ़ गए। इस कारण वर्ष 2006 में मप्र से टाइगर स्टेट का दर्जा छिन गया था। हालांकि प्रदेश को एक बार फिर टाइगर स्टेट का दर्जा मिल गया है, लेकिन बाघों के संरक्षण के लिए कोई बड़ी तैयारी नहीं की गई है।
- श्याम सिंह सिकरवार