काले जहर की तस्करी
20-Oct-2020 12:00 AM 562

 

मप्र के मालवा की मिट्टी अपनी उर्वरा शक्ति के लिए जानी जाती है। इस क्षेत्र में जहां सोयाबीन की खेती से किसान मालामाल होते हैं, वहीं नीमच व मंदसौर में अफीम की खेती तस्करी को जन्म देती है। नीमच व मंदसौर मादक पदार्थ तस्करी का देश में सबसे बड़ा सेंटर है। यहां से अफीम पैदावार के बाद देशभर के अन्य क्षेत्र में अफीम और उससे बनने वाले अन्य मादक पदार्थ की तस्करी होती है। ध्यान दे तो सुशांत सुसाइड मिस्ट्री में भी ड्रग्स पार्टी का उजागर हुआ है और मुंबई नारकोटिक्स विभाग सतर्क होकर कार्रवाई कर रहा है। लेकिन इसी विभाग की कमजोरी है कि मप्र से मादक पदार्थ की तस्करी मुंबई तक होती है।

अफीम के फूल सफेद होते हैं, लेकिन उसे काला जहर कहा जाता है। मप्र में अफीम के साथ-साथ खेतों में तस्करों की जड़ें भी पनपती हैं। तस्करों की नजरें खेतों में अफीम के बीज पड़ते ही वहां जम जाती हैं। यूं तो अफीम की खेती सरकारी एजेंसी सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स की देखरेख में होती है, लेकिन डोडे में चीरा लगते ही तस्कर और भी ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। कुछ चुनिंदा गांवों में ही डोडे (अफीम के फूल के नीचे उगने वाला हिस्सा) निकालने का काम होता है। तहकीकात में सामने आया कि तस्करी का नेटवर्क इन्हीं के खेतों के इर्द-गिर्द घूमता है। खेत में तैयार अफीम पर सबसे पहले सरकार का हक होता है, लेकिन सरकार को तय स्टॉक देने के बाद कई किसान बची हुई अफीम तस्करों के हवाले कर देतेे हैं। तस्करों को बेचने के लिए अफीम को सीक्रेट रूप से जमीन में दबाकर रखा जाता है।

हाल ही में इंदौर नारकोटिक्स विंग ने मुखबिर सूचना पर इंदौर गांधी हॉल एवं फायर ब्रिगेड के ऑफिस के बीच पत्थर गोदाम समीप एक काले रंग की स्कूटी एमपी 09 यूवी 5326 की तलाशी कर उसकी डिक्की में रखी करीब दो किलोग्राम ब्राउन शुगर जब्त की है। वहीं तस्करी में आरोपी इंदौर भंवरकुआ निवासी अजय पिता शिवकुमार जैन उम्र 51 वर्ष और इंदौर तेजाजी नगर निवासी सुशांत तिपा दुलाल मंडल उम्र 49 वर्ष को दो करोड़ की ब्राउन शुगर के साथ एनडीपीएस एक्ट में गिरफ्तार किया है। पुलिस की पूछताछ में तस्करों ने बताया कि मंदसौर नई आबादी निवासी लालसिंह पिता कालू सिंह चौहान उम्र 53 वर्ष के पास से ब्राउन शुगर खरीदी है। वह नीमच और मंदसौर से माल खरीदकर ट्रेन के रास्ते कोलकाता तक माल सप्लाई करते हैं। फिलहाल पुलिस ने मंदसौर निवासी लालसिंह को भी गिरफ्तार कर लिया है और अंतर्राज्यीय तस्करों की चेन खोलने में पुलिस जुट गई है। उज्जैन रेंज के आईजी राकेश गुप्ता कहते हैं कि नीमच, मंदसौर और रतलाम के कुछ भाग में अफीम का उत्पादन होने से यहां से अन्य राज्यों में तस्करी भी होती है। खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, मुंबई और कोलकाता तक भी तस्कर सक्रिय हैं। लेकिन पुलिस लगातार सतर्क होकर इनके प्रति कार्रवाई करती है। वहीं नारकोटिक्स विभाग भी पूरा इन्हीं पर कार्रवाई करता है।

अफीम की हरी-भरी लहलहाती फसल, प्याज की तरह लगे फल और खिले हुए फूल किसी का भी मन मोह लेंगे। मगर यह फसल देखकर अफीम तस्करों की बांछें खिल जाती हैं। नीमच व मंदसौर पोस्ता की वैध और अवैध खेती के गढ़ बन गए हैं, जिससे अफीम निकलता है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, हर साल अफीम की अवैध खेती नष्ट की जाती है। यह सब माफिया, तस्करों, सफेदपोश और अफसरों की मिलीभगत से होता है। दरअसल अफीम की प्रोसेसिंग करके ही ब्राउन शुगर और हेरोइन बनाई जाती है। जानकार बताते हैं कि कम कीमत और बेहतर गुणवत्ता की वजह से यहां के अफीम की मांग काफी है। इसीलिए देशभर के तस्करों की नजर मप्र के अफीम की खेती पर रहती है। जैसे ही अफीम की फसल तैयार होती है, तस्कर नीमच और मंदसौर में सक्रिय हो जाते हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नीमच जिले में मादक पदार्थ तस्करी के मामले 2019 में सर्वाधिक सामने आए हैं। इनमें प्रभावी कार्रवाई करते हुए पुलिस ने आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने का काम किया है। पुलिस की इस कार्रवाई में अफीम, गांजा और डोडाचूरा की जब्त की गई मात्रा में भी इजाफा हुआ है। जब्त मादक पदार्थ की कीमत करीब 2 करोड़ रुपए से अधिक आंकी गई है। पुलिस की इस कार्रवाई से मादक पदार्थ तस्करों में खौफ है। मप्र के नीमच, मंदसौर और रतलाम जिले के जावरा में अफीम की खेती होती है। केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो की मॉनीटरिंग में अफीम की खेती के कार्य में करीब 30 हजार से अधिक लाइसेंसी किसान जुटे रहते हैं। किसान, उनके परिजन और श्रमिक दिन-रात एक कर अफीम और उससे जुड़ी पैदावार लेते हैं। यह खेती सरकारी नियंत्रण में होती है। इसके बावजूद अफीम, डोडाचूरा और अन्य तरह के मादक पदार्थ की तस्करी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। जिले में 2015 से 2019 तक के मादक पदार्थ तस्करी के मामलों में कार्रवाई का आंकड़ा देखें तो पूर्व की तुलना में साल 2019 में मादक पदार्थ तस्करी के मामलों में अधिक कार्रवाई हुई है।

मिलावटी अफीम भी थमा देते हैं

नशे की इस मंडी में ग्राहक देखकर माल तय होता है। जानकार लोगों को असली अफीम की खेप दी जाती है जबकि अनजान और नए लोगों को मिलावटी पकड़ा दी जाती है। इनमें बच्चों के दूध के साथ पिए जाने वाले बॉर्नविटा, बूस्ट, कॉम्प्लान और कॉफी पाउडर जैसी चीजें मिला दी जाती हैं। साथ ही नशीली दवाएं मिलाकर आधा किलो अफीम को दो से ढाई किलो तक बना दिया जाता है। मादक पदार्थ तस्करी के मामले में पुलिस के सामने दिक्कत आती है कि इसमें पकड़े जाने वाले अधिकांश आरोपी कोरियर या डिलेवरी बॉय होते हैं। मुख्य आरोपी पर्दे के पीछे से काम करते हैं। जांच के बावजूद भी पुलिस वास्तविक आरोपियों तक नहीं पहुंच पाती। इसका कारण है कि कोरियर या डिलेवरी बॉय को माल की खेप लाने और ले जाने के नाम पर मोटी रकम मिलती है। पकड़े जाने पर कानूनी मदद भी मुहैया कराई जाती है। यहीं कारण है कि वे मुख्य आरोपियों के नामों का खुलासा नहीं करते हैं।

- जितेन्द्र तिवारी

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