विश्वभर में कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही है, ऐसी परिस्थितियों में स्कूली छात्रों के अभिभावकों की चिंताओं ने भी विश्वव्यापी मुद्दे का रूप ले लिया है। यूनेस्को का अनुमान है कि कोरोना के कारण विश्व के करीब 190 देशों में किए गए लाकडॉउन के चलते शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने का करीब 154 करोड़ छात्रों पर गंभीर असर हुआ है। इतने बड़े पैमाने पर शैक्षणिक संस्थाओं के बंद होने से छात्रों की शिक्षा व कुशलता पर अभूतपूर्व असर देखा जा रहा है, विशेषतौर पर हाशिए पर रहने वाले तबकों के बच्चों पर जो कि अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, सुरक्षा संबंधी जरूरतों के लिए मुख्यत: स्कूलों पर ही आश्रित हैं। इस समय सरकारों, शिक्षण संस्थान व अभिभावकों के बीच यह बहस जोरों पर है कि जब कोरोना का कोई कारगर उपचार नहीं है, तो ऐसे समय में बच्चों की पढ़ाई शुरू करने के लिए स्कूल कॉलेज कब खोले जाएं?
भारत में स्कूल कब खुलेंगे? इसे लेकर बराबर कयास लगाए जा रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी इस मुद्दे पर राज्य के मंत्रियों व शिक्षा अधिकारियों के साथ कई बैठकें कर चुका है। एक कयास यह भी लगाया गया कि भारत में जुलाई से स्कूल खुल सकते हैं और अभिभावकों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। अभिभावकों ने किसी राज्य में मामले शून्य होने या टीका आने तक बच्चों को स्कूल नहीं भेजने की मुहिम छेड़ दी है। पैरेंट्स एसोसिएशन के चेंज डॉट आर्ग पर शुरू ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान को कई लाख अभिभावकों का समर्थन मिला है। गौरतलब है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए उठाए गए उपायों के तहत देशभर में 16 मार्च से 1.5 लाख स्कूल बंद हैं और करीब 25 करोड़ बच्चे स्कूल बंद होने से प्रभावित हैं। देश में स्कूल कब खुलेंगे? इसे लेकर बेशक अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन देश में जिस तरह से कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा रोज बढ़ रहा है। इसके चलते यह फैसला लेना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।
कोरोना संक्रमण के कारण इस सत्र में अब तक स्कूल नहीं खुल पाए। सितंबर से स्कूल खुलने की संभावना है। ऐसे में विभाग प्रारूप को अंतिम रूप देने में लगा है। अभी ऑनलाइन कक्षा लगाकर पढ़ाई कराई जा रही है। अब स्कूल खोलने को लेकर गाइडलाइन तैयार की जा रही है। छह चरणों के प्रारूप के तहत इस साल स्कूल खुलने पर न तो प्रार्थना सभा होगी और ना ही वार्षिकोत्सव का आयोजन होगा। स्कूल शिक्षा विभाग ने प्रदेश के स्कूलों को खोलने को लेकर गाइडलाइन तैयार कर शासन से अनुमति लेने के लिए प्रारूप तैयार कर भेज दिया है। कोरोना संक्रमण के बीच स्कूलों को दोबारा खोलने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। विभाग ने अपनी गाइडलाइन का ड्राफ्ट शासन को सौंप दिया है। इसके तहत बताया गया है कि स्कूल खुलने पर पढ़ाई का सिलसिला किस तरह शुरू होगा और विद्यार्थियों, अभिभावक व शिक्षकों के लिए किन बातों का ध्यान रखना जरूरी होगा। सम व विषम संख्या में विद्यार्थियों को बांटकर एक दिन छोड़कर बुलाया जाएगा।
विभाग ने प्रारूप में यह तय किया है कि कक्षा में विद्यार्थियों के बीच 6 फीट की दूरी जरूरी होगी। एक कमरे में 15 या 20 विद्यार्थी होंगे। विद्यार्थियों को सम-विषम के आधार पर बुलाया जाएगा, लेकिन गृह कार्य प्रतिदिन देना होगा। कोई भी विद्यार्थी अपनी सीट न बदले, इसके लिए डेस्क पर नाम लिखा होगा। कक्षा को रोजाना सैनिटाइज करना होगा, यह सुनिश्चित करना प्रबंधन का काम होगा। स्कूल में प्रवेश से पहले विद्यार्थियों और स्टाफ की स्क्रीनिंग होगी। स्कूल के बाहर खाने-पीने के स्टॉल नहीं लगाए जाएंगे। विद्यार्थियों के लिए कॉपी, पेन, पेंसिल या खाना शेयर करने की मनाही होगी। सभी को अपना पानी साथ लाना होगा। सभी के लिए मास्क पहनना जरूरी होगा। स्कूल में सुरक्षित शारीरिक दूरी का ख्याल रखा जाएगा।
देश में सरकारी स्कूलों में एक ही सेक्शन में इतने बच्चे होते हैं कि सामाजिक दूरी वाले नियम का पालन कैसे कराया जाएगा? यह बहुत अहम सवाल है। दरअसल सरकार भी इस मुद्दे पर पसोपेश में है। पैरेंट सर्कल के एक सर्वे में खुलासा किया गया कि अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं हैं। राधिका के दो बच्चे एक निजी स्कूल में पढ़ते हैं। उनका मानना है कि इसमें कोई दो राय नहीं कि स्कूल में जाकर पढ़ने से बच्चे का विकास कई तरह से होता है; लेकिन अगर हालात इस पक्ष में नहीं है। ऐसे में बच्चों के हित में हमें कदम उठाने की जरूरत है। क्योंकि बच्चों की उम्र यह सब सोचने-समझने और निर्णय लेने की नहीं है। 'नो वैक्सीन, नो स्कूल’ मुहिम के बीच ही अमेरिका में शीर्ष वैज्ञानिकों की इस मुद्दे पर राय जानी गई, तो 70 फीसदी वैज्ञानिक सिंतबर-अक्टूबर से पहले स्कूल खोलने के पक्ष में नहीं हैं। उनकी राय में इससे पहले स्कूल-कॉलेज खोलना बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। सार्वजनिक संस्थानों को तो खोला जा सकता है; लेकिन बच्चों को खतरे में नहीं डाला जा सकता।
सीबीएसई बोर्ड कम कर रहा 30 प्रतिशत सिलेबस
कोरोना संक्रमण के चलते स्कूली बच्चों पर पढ़ाई का अतिरिक्त दबाव न रहे इसको लेकर शिक्षा सत्र 2020-21 में सीबीएसई ने 30 फीसदी सिलेबस कम करने का निर्णय लिया है। इधर, प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग ने इस संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया। उल्टे मिडिल स्कूल यानी कक्षा 6वीं के सिलेबस में तीन नए टाइटल जोड़ दिए हैं। इसके चलते विद्यार्थियों को चालू शिक्षा सत्र में 6 की जगह पर 8 विषय की पढ़ाई करनी होगी। कक्षा 6वीं में पहले 6 विषय की पढ़ाई कराई जाती थी। अब विद्यार्थियों को 8 विषय पढ़ना होंगे। कोरोना वायरस संक्रमण काल के बीच अचानक 6वीं कक्षा के बढ़े विषय को लेकर शिक्षक भी अचंभित हैं।
- जितेन्द्र तिवारी