लंबे इंतजार के बाद अंतत: शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट का गठन हो गया, आम लोगों से लेकर मंत्री बनने की उम्मीद लिए बैठे नेताओं के लिए यह अधूरी ख्वाहिशें पूरी होने जैसा ही है। कोरोना संकट से जूझ रहे मध्यप्रदेश के लोगों को एक भरे-पूरे कैबिनेट की उम्मीद थी। विधायकों की एक बड़ी तादाद भी मंत्री बनने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही थी। मंत्रिमंडल में नरोत्तम मिश्रा को शामिल करने पर कोई संदेह नहीं था। कमलनाथ सरकार को गिराने में उनकी भूमिका को देखते हुए शिवराज की सरकार में उन्हें नंबर दो की हैसियत मिलने की पहले से ही संभावना जताई जा रही थी। तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत कैबिनेट में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के प्रतिनिधि हैं। सिलावट कमलनाथ की सरकार में स्वास्थ्य और राजपूत परिवहन मंत्री थे। मंत्रिमंडल में जातीय समीकरणों को साधने के लिए गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह जैसे वरिष्ठ पार्टी नेताओं की दावेदारी को फिलहाल होल्ड पर रखा गया है।
मुख्यमंत्री कार्यालय से इनके लिए गाड़ियों और दफ्तर की व्यवस्था करने का निर्देश भी जारी हो चुका था, लेकिन अब पांच लोगों को ही शपथ दिलाई गई। इसके साथ ही सवाल उठने लगे हैं कि शिवराज ने इतनी छोटी कैबिनेट का गठन क्यों किया। सवाल यह भी है कि यह शिवराज की पसंद है या मजबूरी। दरअसल, कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से सत्ता छीनने के लिए भाजपा ने जिस तरह एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, अलग-अलग गुटों को साथ लेकर चलना उसकी मजबूरी थी। सरकार बन जाने के बाद ये सभी गुट सत्ता में अपने प्रतिनिधित्व को लेकर उतावले हो रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चाहकर भी सभी गुटों को संतुष्ट नहीं कर सकते। ऐसे में पार्टी आलाकमान ने बीच का रास्ता निकाला, जिसमें सभी गुटों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें साधने की कोशिश की गई है। शिवराज ने अपने मंत्रिमंडल में प्रदेश के हर वर्ग को साधने की कोशिश की है। इसमें ब्राह्मण, ठाकुर, ओबीसी, दलित और आदिवासी वर्ग के नेताओं को मंत्री बनाया है। मंत्रिमंडल में दो सिंधिया समर्थक मंत्री हैं लेकिन उनके गढ़ ग्वालियर-चंबल संभाग से उनके किसी समर्थक को जगह नहीं मिली। उसकी जगह नरोत्तम मिश्रा इस क्षेत्र से मंत्री बनेे। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के खेमे के विधायकों को भी कैबिनेट में जगह नहीं मिली। उनके गढ़ निमाड़-मालवा से सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट मंत्री बने।
विपक्षी पार्टियां ही नहीं, भाजपा के अपने विधायक भी मंत्रिमंडल के गठन में देरी से खुश नहीं थे। विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही थीं कि सत्ता में आने की जल्दी में भाजपा ने कमलनाथ की सरकार तो गिरा दी, लेकिन अब कैबिनेट का गठन तक नहीं कर पा रही। स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक भी कोरोना संकट के दौर में प्रदेश में स्वास्थ्य और गृह जैसे महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री नहीं होने को लेकर आपत्ति जता रहे थे। राज्य में कोरोना का प्रकोप भी तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए शिवराज के लिए कैबिनेट गठन में और देरी करना मुनासिब नहीं था। बता दें कि मध्यप्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की संख्या के लिहाज से मंत्रिमंडल में अधिकतम 15 प्रतिशत यानी 35 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। शिवराज सिंह चौहान ने फिलहाल 5 लोगों को जगह दी है और उन्हें मिलाकर छह लोग ही होते हैं। मंत्रिमंडल में अभी भी 29 जगह हैं, माना जा रहा है कि बाद में भाजपा के दिग्गज नेताओं को जगह दी सकती है। मंत्रिमंडल गठन के बाद भाजपा में आक्रोश के स्वर सामने आने लगे हैं। पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने श्रमिकों की मजदूरी का मुद्दा उठाते हुए सवाल खड़ा कर दिया है कि मेरे क्षेत्र में तो किसी को एक हजार रुपए नहीं मिले हैं। वहीं कई कद्दावर नेता कोप भवन में चले गए हैं।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद अटकलें लगाई जा रहीं थी कि नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा मुख्यमंत्री बन सकते हैं, लेकिन पार्टी हाईकमान ने शिवराज सिंह चौहान के नाम पर मुहर लगाई। कहा जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की पसंद थे और पार्टी ने उनकी पसंद को सहमति दी है। वहीं, कैबिनेट गठन में भी शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पसंद के नेताओं को जगह मिली है। सिंधिया समर्थक नेताओं को कैबिनेट में शामिल करने के लिए मध्यप्रदेश के कई सीनियर नेताओं को अभी कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है। हालांकि मिनी कैबिनेट के गठन के पीछे कोरोना संकट बताया गया है। कहा जा रहा है कि 3 मई के बाद शिवराज सिंह चौहान अपनी कैबिनेट का विस्तार करेंगे और उसमें पार्टी के सीनियर नेताओं को मौका मिलेगा। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनते ही शिवराज सिंह चौहान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को बड़ा तोहफा दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद एक बार फिर से मध्यप्रदेश की सिसायत में बढ़ गया है।
बड़े नाम मंत्री क्यों नहीं बने?
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि गत दिनों तक मंत्रिमंडल में गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को शामिल किया जाना तय माना जा रहा था, लेकिन बाद में दोनों को होल्ड कर दिया गया। इसकी दो वजह भी बताई जा रहीं हैं। पहली जातिगत और दूसरी क्षेत्रीय संतुलन। अगर शिवराज अपने मंत्रिमंडल में पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव को शामिल करते तो उनके मंत्रिमंडल में दो ब्राह्मण मंत्री होते। यदि भूपेंद्र सिंह को शामिल किया जाता तो गोविंद सिंह राजपूत को मिलाकर दो ठाकुर मंत्री होते। इसके अलावा दूसरी वजह जो बताई जा रही है, उसके अनुसार अकेले सागर संभाग से ही तीन मंत्री बनने से भी पद की आस लगाए विधायकों और ज्योतिरादित्य खेमे के पूर्व मंत्रियों को अच्छा संदेश नहीं जाता। सूत्रों का कहना है कि आने वाले समय में सबसे ज्यादा राजनीतिक घमासान ग्वालियर-चंबल संभाग में ही देखने को मिल सकता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के जो विधायक कमलनाथ सरकार में मंत्री थे, उनका मंत्री बनना तय है। इसमें से चार ग्वालियर-चंबल संभाग से ही आते हैं। इसके अलावा ऐंदल सिंह कंसाना और रघुराज कंसाना सिंधिया समर्थक तो नहीं हैं, लेकिन मंत्री बनाए जाने के आश्वासन पर ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए। ऐसे में यहां भाजपा नेताओं का क्या होगा और उनकी अगली रणनीति क्या होगी, इस पर भी कयास लगाए जा रहे हैं। ग्वालियर के ही कुछ वरिष्ठ नेता सिंधिया समर्थकों के पार्टी में आने और उन्हें मंत्री बनाए जाने से खुश नहीं हैं।
- अरविंद नारद