जेपी नड्डा के भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अब मप्र में भी नए अध्यक्ष को लेकर दावेदारी तेज हो गई है। हालांकि पार्टी की ओर से नए अध्यक्ष को लेकर कोई संकेत नहीं मिला है, फिर भी नेता सक्रिय हो गए हैं। गौरतलब है कि नए प्रदेश अध्यक्ष की आस में भाजपा का संगठन भगवान भरोसे चल रहा है। आलम यह है कि अभी तक 19 जिला अध्यक्षों का नाम भी तय नहीं हो पाया है। संगठनात्मक तौर पर मजबूत माने जाने वाले मप्र भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के लिए दिग्गज नेताओं में महीनों से प्रतिस्पर्धा चल रही है। लेकिन दिग्गजों में एक राय नहीं बन पाने के कारण अभी तक नए प्रदेश अध्यक्ष का मामला अधर में लटका हुआ है। हालांकि जेपी नड्डा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद एक बार फिर से नए प्रदेश अध्यक्ष की संभावना बढ़ गई है। भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के कई दावेदार हैं और वे अपने समीकरण भी बैठा रहे हैं। सागर संभाग से पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह भी प्रदेशाध्यक्ष के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। वहीं संभावना जताई जा रही है कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह फिर से रिपीट किए जा सकते हैं। इनके अलावा कई और नेता हैं जो प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए सक्रिय हैं। भूपेंद्र सिंह को चौहान और तोमर दोनों का ही करीबी माना जाता है। संघ की पसंद के चलते खजुराहो से सांसद वीडी शर्मा का नाम भी दौड़ में शामिल है। पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी मजबूत दावेदार माना जा रहा है। इधर, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा पहले भी अध्यक्ष रह चुके हैं, इसलिए वे भी दावा ठोक रहे हैं। लेकिन अभी तक दिग्गज नेता मप्र अध्यक्ष के नाम पर मुहर नहीं लगा पाए हैं। संगठनात्मक तौर पर मजबूत माना जाने वाला भाजपा का संगठन क्या एमपी में कमजोर पड़ गया है? ये सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि मध्य प्रदेश में भाजपा अब तक संगठन चुनाव की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाई है। न ही पार्टी अब तक प्रदेश अध्यक्ष को चुन पाई है। न ही सभी जिलों में नए जिलाध्यक्ष नियुक्त कर पाई है। भाजपा जिलाध्यक्षों की पहली सूची करीब दो महीने पहले जारी कर चुकी है और दूसरे राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी निर्वाचन हो चुका है। लेकिन मप्र में फैसला अटका हुआ है। दरअसल भाजपा में 57 में से 52 संगठनात्मक जिलों में जिलाध्यक्षों की रायशुमारी की गई थी। उसके बाद 5 दिसंबर 2019 को जिलाध्यक्षों की पहली सूची जारी की गई। पहली सूची में पार्टी ने केवल 33 जिलाध्यक्षों के नामों का ही ऐलान किया। 19 संगठनात्मक जिलों में नामों का ऐलान बाद में करने की बात कही गई। इसके पीछे वजह ये बताई गई कि भोपाल, इंदौर सहित 19 जिलों में बड़े नेता किसी एक नाम पर एकमत नहीं हो पाए। पार्टी विधान के मुताबिक, कुल संगठनात्मक जिलों में से 50 फीसदी में जिलाध्यक्षों का चुनाव होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है। मध्य प्रदेश में 50 फीसदी जिलाध्यक्ष चुने जा चुके हैं। इसके बावजूद नया प्रदेश अध्यक्ष नहीं चुना जा रहा। भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के साथ 19 जिलों में जिलाध्यक्ष चुने जाने हैं। ऐलान ना होने के पीछे एक ही वजह है कि नेताओं में सहमति नहीं बन पा रही। पार्टी के सामने सरकार जाने के बाद संगठन को एकजुट बनाए रखने की बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि किसी भी एक नेता की राय पर मुहर नहीं लग पा रही है। प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मुहर लगाने में भी यही परेशानी सामने आ रही है। उधर, भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल होने के लिए भी प्रदेश के नेताओं ने कवायद शुरू कर दी है। अब तक भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की टीम में मध्य प्रदेश से पांच केंद्रीय पदाधिकारी थे। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती सहित राज्यसभा सदस्य प्रभात झा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद और ज्योति धुर्वे सचिव पद पर काम कर रहे थे। वहीं पूर्व मंत्री कैलाश विजयवर्गीय राष्ट्रीय महासचिव के रूप में बंगाल का प्रभार संभाल रहे थे। अब राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर जेपी नड्डा की ताजपोशी के बाद अब केंद्रीय पदाधिकारियों को नई टीम बनेगी, जिसमें स्थान बनाने के लिए ज्यादातर नेता दिल्ली में सक्रिय हो गए हैं। चारों केंद्रीय पदाधिकारी पिछले कुछ समय से प्रदेश में अति सक्रियता दिखा रहे थे, जिसकी वजह साफ थी कि आने वाली टीम में अपना स्थान बना सकें। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव भले ही संगठन नहीं करवा पाया हो, लेकिन अब राष्ट्रीय टीम में स्थान पाने की सियासत शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा अब जल्द ही अपनी नई टीम बनाएंगे। इस टीम में मप्र से कौन-कौन से चेहरे होंगे, फिलहाल कहा नहीं जा सकता है पर स्थानीय नेताओं ने दिल्ली में सक्रियता बढ़ा दी है। नड्डा की ससुराल जबलपुर की है, इसलिए वे प्रदेश के ज्यादातर नेताओं को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। अपनी ही उलझन में गुम हो गई है भाजपा आपसी मतभेद से स्तब्ध, कांग्रेस को जवाब देने के तरीके को तलाशने में परेशान और उचित प्रतिक्रिया के लिए अनुपयुक्त मार्ग का इस्तेमाल करने के साथ मप्र की भाजपा इकाई दबाव का सामना कर रही है। जैसे-जैसे कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करती जा रही है वैसे-वैसे भाजपा अपने खुद की तैयार की गई उलझनों को समाप्त करने के लिए परेशान दिख रही है। कांग्रेस मुख्यमंत्री कमलनाथ की अगुवाई में आश्वस्त और उत्साही नजर आ रही है। कमलनाथ अपनी सरकार की योजनाओं के व्यापक संपर्क और लोकप्रियता के साथ काफी आगे हैं। यह भाजपा के लिए अपने आप में हतोत्साहित करने वाली बात है। लेकिन भाजपा एक सुसंगत प्रतिक्रिया तैयार करने में असमर्थ है। यह आलोचना करना चाहती है, लेकिन किस आधार पर? - राजेश बोरकर