डिजिटल भारत में साड़ियों की आड़ लगाकर बने शौचालय...यह बात जानकर चौंकिए नहीं। यह हकीकत है उस बुंदेलखंड की, जहां आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी यहां के लोग सरकारी योजनाओं के तहत बने शौचालयों में साड़ियों की आड़ करने को मजबूर हैं। जाहिर है इनकी दीवारों पर भ्रष्टाचार की दीमक लग गई होगी। यही नहीं, जिस ग्राम पंचायत को प्रशासनिक अधिकारियों ने खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया वहां भी लोगों को साड़ियों की आड़ में शौच क्रिया के लिए जाना पड़ रहा है। टीकमगढ़ जिले में प्रशासन द्वारा 1,82,738 शौचालय बने होने का दावा किया जा रहा है। टीकमगढ़ जनपद पंचायत के पांच हजार की आबादी वाले सापौन गांव में कई घरों में फटी हुई साड़ियों को लकड़ियों के चारों ओर लपेटकर शौचालय बना लिए गए हैं। जिले के मोहनगढ़, खरगापुर और बड़ागांव क्षेत्र में भी स्वच्छ भारत अभियान का हाल कुछ ऐसा ही है। यहां पर न तो शौचालय बने हैं और न ही जागरूकता के लिए किसी कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। खरगापुर के सौरयां गांव में भी ऐसे ही शौचालय देखे जा सकते हैं। यह हाल तब है जब जिला पंचायत में स्वच्छ भारत मिशन की टीम भी अलग से तैनात है, लेकिन उसने भी ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर हकीकत देखने से मुंह फेर रखा है।
प्रशासन ने टीकमगढ़ जनपद पंचायत को ओडीएफ घोषित करते हुए हजारों शौचालय निर्माण कराने का दावा किया है। शौचालय निर्माण के लिए हितग्राही को 12 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जाने के दस्तावेज भी पूरे हैं। हालांकि यह रकम एक शौचालय बनाने के लिए कम पड़ती है लेकिन गांवों में किसी तरह दीवारें खड़ी कर शौचालय बना लिया जाता है। इलाके में साड़ियों की आड़ वाले शौचालय स्वच्छ भारत मिशन की पोल खोल रहे हैं। गौरतलब है कि गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) सूची में शामिल लोगों को इस योजना का लाभ मिलता है।
ऐसी स्थिति यह भी बताती है कि लक्ष्य को पूरा करने के लिए अधिकारियों ने दफ्तरों में बैठकर ही ग्राम पंचायतों को ओडीएफ घोषित कर दिया। खुले में शौच से मुक्त गांवों को पुरस्कार सहित प्रमाण-पत्र भी दे दिए गए लेकिन हितग्राही आज भी परेशान दिखते हैं। इसकी एक वजह पंचायत को निर्माण एजेंसी बनाकर शौचालय निर्माण करवाना भी रहा। जिले में ऐसे करीब 20 हजार शौचालय हैं जिनका निर्माण इस एजेंसी के जिम्मे था लेकिन वे भी पूरी तरह बन नहीं पाए हैं। इसके लिए भी ग्रामीण सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते देखे जा सकते हैं। मैदानी हकीकत यही है कि जिले का एक भी गांव ऐसा नहीं है, जहां शौचालय पूरे बने हों और उनका उपयोग हो रहा हो। फर्जी ओडीएफ पर अदम गोंडवी की पंक्ति याद आती है कि तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे, दावा किताबी है।
ऐसा ही एक मामला फिर सामने आया छतरपुर जिले के ब्लॉक छतरपुर, ग्राम चंद्रपुरा आदिवासी मोहल्ला में, जहां शौचालय ना होने से महिलाएं झाड़ियों का पर्दा कर के शौच के लिए जाती हैं। क्योंकि उनके पास शौचालय नहीं बने हैं 500 की आबादी वाली इस बस्ती के लोग खुले में शौच जाने से काफी परेशान हैं, लेकिन शौचालय निर्माण को लेकर यहां न कोई अधिकारी आया और न ही कोई जनप्रतिनिधि, जबकि इस बस्ती में सभी गरीब असहाय और मजदूर लोग रहते हैं उनको दो वक्त का खाना जुटाना मुश्किल पड़ता है, तो खुद से शौचालय कैसे बना सकते हैं।
क्षेत्र की महिलाओं का कहना है- 'इस समय बारिश का मौसम चल रहा है और हम सभी महिलाएं पर्दा कर के शौच के लिए निकलते है तो डर बना रहता है कि कहीं से कोई कीड़ा ना निकल आए जैसे बिच्छू, सांप न काट ले। इस समय वैसे ही कोरोना जैसी बीमारी चल रही है और बाहर जाना शौच के लिए खतरा ही है जब बाहर जाते हैं, तो कुछ लोग हम लोगों को डंडे मारकर भगा देते हैं, पर शौचालय की मांग सरपंच से कई बार की है लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई और हम लोगों से कमीशन की मांग की जा रही है।
बुंदेलखंड में सरकारी अनुदान से बनाए गए शौचालयों के हाल, बेहाल हैं। इनमें किया गया भ्रष्टाचार अपने आप में इनके पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। आप बुंदेलखंड के किसी भी नेशनल हाइवे से जुड़े गांव की सड़क पर सफर में सुबह निकलें तो सहज ही 'मेरा भारत महान’ की बदबूदार तस्वीर से रूबरू हो जाएंगे। घरों में देहरी के अंदर लम्बा सा घूंघट निकालने को बेबस महिला यहां आम सड़क के किनारे सवेरे-सवेरे और संध्या में एक अदद आड़ के लिए भी तरसती नजर आती है।
लड़कियों वाले गांव में शौचालय नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता अभियान पर जोर दे रहे हैं। राज्य सरकार भी खुले में शौच से मुक्ति के लिए अभियान चला रही है, मगर जमीनी हकीकत अलग ही कहानी बयां करती है। ऐसा गांव, जहां लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा है, वहां शौचालय नहीं है, तब बाकी गांवों का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के हरपुरा मड़िया गांव की पहचान लड़कियों वाले गांव के तौर पर है, मगर यहां शौचालयों का अभाव है और महिलाओं से लेकर लड़कियों तक को मजबूरी में खुले में शौच को जाना पड़ रहा है। जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित है हरपुरा मड़िया गांव। इस गांव की आबादी लगभग डेढ़ हजार है। यह लड़कियों का गांव इसलिए कहलाता है, क्योंकि हर घर में बेटों से ज्यादा बेटियां हैं। यही कारण है कि इस गांव की पहचान बेटियों के गांव के तौर पर बन गई है। मगर यहां की बेटियों को हर रोज समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आलम यह है कि महिलाओं से लेकर बेटियों को सुबह 4 बजे से हाथ में लोटा लेकर शौच के लिए निकलना पड़ता है।
- सिद्धार्थ पांडे