20-Oct-2020 12:00 AM
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मप्र में 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सरकार का भविष्य दांव पर है। भाजपा और कांग्रेस अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही है। लेकिन मतदाता अभी भी मौन हैं। ऐसे में दोनों पार्टियां मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के उपक्रम कर रही हैं। वर्तमान हालातों को देखते हुए यह साफ दिख रहा है कि इस उपचुनाव में दलित और किसान किंगमेकर बनेंगे।
मप्र में 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में इस बार दलित और किसान किंगमेकर बनेंगे, क्योंकि ये विधानसभा क्षेत्र किसान और दलित समुदाय बहुल हैं। इसलिए भाजपा और कांग्रेस के नेता चुनावी क्षेत्रों में दलित समुदाय और किसानों को साधने में जुट गए हैं। इसका असर यह देखने को मिल रहा है कि चुनावी क्षेत्रों में विकास का मुद्दा पूरी तरह गायब है। भाजपा और कांग्रेस के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाकर अपने आपको किसान और दलित हितैषी बताने में जुटे हुए हैं। उधर, बसपा इन दोनों पार्टियों की जीत का गणित बिगाड़ने के लिए मैदान में उतर चुकी है।
गौरतलब है कि 3 नवंबर को प्रदेश की 28 सीटों पर मतदान होने हैं और 10 नवंबर को नतीजे आएंगे। मुख्य प्रतिद्वंदी भाजपा और कांग्रेस ने अपने सभी प्रत्याशियों की घोषणा कर चुनावी मैदान में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण चुनावी माहौल बन नहीं पा रहा है। पूर्व के चुनावों की तरह जनता घरों से निकल नहीं पा रही है। इसलिए जनता का मूड कोई भांप नहीं पा रहा है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां सभी सीटें जीतने का दावा कर रही हैं।
मप्र में जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है उनमें-जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, डबरा, भांडेर, करैरा, पोहरी, बमोरी, अशोकनगर, मुंगावली, सुरखी, मलहरा, अनूपपुर, सांची, ब्यावरा, आगर, हाटपिपल्या, मांधाता, नेपानगर, बदनावर, सांवेर और सुवासरा शामिल हैं। इनमें 11 सीटें आरक्षित हैं और 17 सीटें सामान्य हैं। उपचुनाव में आरक्षित सीटों अंबाह, गोहद, डबरा, भंडेर, करैरा, अशोकनगर, अनूपपुर, सांची, आगर, नेपानगर और सांवेर का बड़ा महत्व है। क्योंकि इन सीटों पर भाजपा, कांग्रेस और बसपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। उपचुनाव की अधिकतर सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग की हैं जहां दलित समुदाय को चुनावों का किंगमेकर माना जाता है। दलित समुदाय के बहुतायत में होने और उप्र से इलाके के सटे होने से यहां पर बसपा का भी खासा प्रभाव है। बसपा बीते चुनावों में यहां अपनी मौजूदगी तो दर्शा ही चुकी है साथ ही हर चुनाव में अच्छा वोट बैंक भी उसे हासिल होता है।
इसलिए उपचुनाव में भाजपा, कांग्रेस और बसपा के बीच मुकाबला होना है। इसको देखते हुए कांग्रेस और बसपा ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा की है। वहीं 25 विधानसभा सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी पहले से तय थे, जबकि तीन अन्य प्रत्याशी की घोषणा अलग से की गई है।
मप्र की 28 विधानसभा सीटों पर 63.51 लाख मतदाता अपना वोट डालकर विधायक चुनेंगे। इसलिए यह उपचुनाव सबसे खास है क्योंकि पिछले 16 बरसों में महज 30 सीटों पर चुनाव हुए थे, लेकिन इस बार एक साथ 28 सीटों पर उपचुनाव होंगे। यह उपचुनाव सरकार और बड़े नेताओं के भविष्य तय करेंगे। दोनों ही पार्टी एड़ी-चोटी का जोर इस चुनाव में लगा रही हैं। लेकिन इस उपचुनाव में बसपा बड़ा किरदार निभा सकती हैं, इस बात को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है कि ग्वालियर-चंबल में दलित मतदाताओं को काफी निर्णायक माना जाता हैं। यह ही नहीं, यहां की दो सीटों पर बसपा 2018 विधानसभा चुनाव में प्रदेश में दूसरे नंबर पर रही थी। ग्वालियर चंबल की 16 में से 7 सीटों पर बसपा के प्रत्याशियों ने काफी निर्णायक व सम्मानजनक वोट हासिल किए थे। इसी बात से बसपा को इस उपचुनाव का गेम चेंजर माना जा रहा हैं। भले ही वह चुनाव न जीत सके लेकिन दोनों पार्टियों के वोट जरूर काट सकती हैं।
उप्र के हाथरस में दलित युवती के साथ हुई घटना के बाद दलित मतदाता एकजुट होते दिख रहे हैं। कांग्रेस और आम जनता दोनों ही हाथरस कांड को लेकर उप्र की भाजपा सरकार पर निशाना साध रही हैं। ऐसे में मप्र कांग्रेस भी हाथरस कांड को उपचुनाव में मुद्दा बनाने की तैयारी में है। जिस तरह से हाथरस की घटना के बाद मप्र में कांग्रेस ने विरोध-प्रदर्शन किए और हाल ही के दिनों में प्रदेश के अलग-अलग शहरों में महिलाओं और बेटियों के साथ दुराचार की घटनाएं हुई हैं उन्हें लेकर मप्र कांग्रेस प्रदेश की भाजपा सरकार पर खासी हमलावर रही है। प्रदेश की बेटियों और महिलाओं के साथ हुई अत्याचार की घटनाओं को हाथरस से जोड़कर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं जिससे लग रहा है कि कांग्रेस हाथरस में दलित युवती के साथ हुई घटना को मप्र में 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भी भुनाने की तैयारी में है।
ग्वालियर-चंबल अंचल की कई सीटों पर बसपा का खासा जनाधार है। साल 2018 में हुए विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो यहां बसपा ने कई सीटों पर निर्णायक वोट तो हासिल किए ही थे। कुछ सीटों पर दूसरे नंबर पर भी रही थी और कुछ सीटों पर इतने वोट हासिल किए थे जो जीत-हार को प्रभावित करने वाले थे। 2018 के चुनाव में 15 सीटों पर बसपा को निर्णायक वोट मिले थे। दो सीटों पर बसपा दूसरे नंबर की पार्टी रही थी। 13 सीटों पर बसपा प्रत्याशियों को 15 हजार से 40 हजार तक वोट मिले थे। मुरैना सीट पर भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत का मुख्य कारण बसपा थी। पोहरी, जौरा, अंबाह में बसपा के कारण भाजपा तीसरे नंबर तक पहुंच गई थी।
साल 2018 के चुनावों के परिणामों पर नजर डालें तो ये साफ नजर आता है कि ग्वालियर-चंबल अंचल की कई सीटों पर बसपा ने भाजपा का खेल बिगाड़ा था और इसका फायदा कांग्रेस को मिला था और कांग्रेस ग्वालियर-चंबल अंचल से सीटें जीतकर प्रदेश की सत्ता हासिल करने में कामयाब हो पाई थी। अगर इन सीटों का समीकरण देखें तो इनमें से अधिकतर ऐसी सीटें हैं जहां 2018 में भाजपा के राज्य स्तरीय कद्दावर नेताओं को शिकस्त देकर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे, लेकिन अब यही कांग्रेस उम्मीदवार उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ उन सभी ने पाला बदल लिया है। भाजपा नेताओं के एक वर्ग में कांग्रेस से आए नेताओं को अपने काडर के ऊपर तरजीह देने से नाराजगी भी है लेकिन फिर भी पार्टी को लगता है कि राज्य में शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र मोदी के नाम पर इस नाराजगी से पार पाया जा सकता है।
यह उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। दोनों पार्टियों के नेता एक-दूसरे के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा रहे हैं। आम चुनाव से भी अधिक नेता एक-दूसरे पर निजी हमले कर रहे हैं। शब्दों की मर्यादा टूट चुकी है। जो आमने-सामने शिष्टाचार का प्रदर्शन करते थे वे एक-दूसरे को चोर-डाकू, गद्दार जैसे विशेषणों से नवाज रहे हैं। एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए रोज मुद्दे और नारे गढ़े जा रहे हैं, लेकिन उपचुनाव में भी कर्जमाफी ही सर्वाधिक चर्चा में है। दोनों पार्टियों ने इसे सबसे बड़ा मुद्दा बना रखा है। भाजपा पर तोहमत मढ़कर कांग्रेस अपना बचाव करना चाहती है तो भाजपा उसे नए सवालों पर घेर रही है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में किसानों की कर्जमाफी बड़ा और निर्णायक मुद्दा था। दरअसल, कांग्रेस और कमलनाथ को यह भान था कि शिवराज सिंह चौहान की छवि किसान हितैषी है। किसानों के लिए भावांतर से लेकर कई योजनाएं भी शुरू हुई थीं। इसकी तोड़ के तौर पर कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में कर्जमाफी योजना को आगे रखा था। भाजपा को यह उम्मीद थी कि कांग्रेस की यह घोषणा उसके द्वारा बीते 15 वर्षों में किए गए किसान हितैषी कार्यों के आगे नहीं टिक पाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किसानों ने कमलनाथ के वचन पर भरोसा जताया और कांग्रेस का सत्ता से वनवास खत्म हो गया। अब उपचुनाव में भी दोनों पार्टियां किसानों पर डोरे डाल रही है। उनको भरोसा है कि उपचुनाव में किसान जिस ओर होगा, उसकी जीत होगी। इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी घोषणा से पहले प्रदेशभर के किसानों के लिए सौगातों की बौछार कर दी। वहीं कांग्रेस कर्जमाफी को चुनावी मुद्दा बना चुकी है। अब देखना यह है कि 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में दलित और किसान किसका साथ देते हैं। ये जिसके साथ होंगे जीत उनकी होगी।
अन्नदाता बनेंगे भाग्य विधाता
28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अन्नदाता भाग्य विधाता साबित हो सकते हैं। क्योंकि 28 सीटों में ज्यादातर सीटें कृषि बाहुल्य इलाकों से आती हैं। लिहाजा इस बार भी किसान ही तय करेगा कि सरकार का ताज किसके सर पहनाया जाए। यही वजह है कि कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे को साधने में जुटे हैं। दोनों दल किसान वोट बैंक पाने के लिए एक-दूसरे पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस जहां कर्जमाफी के मुद्दे पर आक्रामक है, तो भाजपा किसान कल्याण योजना और फसल बीमा के माध्यम से पलटवार कर रही है। दोनों पार्टियां अपने-अपने स्तर से आंकड़ों का सहारा ले रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इशारा भी कर चुके हैं कि एक पेनड्राइव में उन सभी किसानों के नाम, कर्ज की राशि सहित अन्य जानकारी है, जो साबित करेगी कि कर्जमाफी हुई है। सामूहिक विवाह और सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि बढ़ाने सहित अन्य मुद्दे प्रमुखता के साथ मतदाताओं के बीच रखे जा रहे हैं।
भाजपा के लिए फायदेमंद त्रिकोणीय मुकाबला
उपचुनाव में बसपा ने मुकाबले का त्रिकोणीय बना दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक दर्जन से अधिक विधानसभा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला भाजपा के लिए फायदे का सौदा हो सकता है। वहीं, जातीय समीकरणों को भाजपा अपने अनुकूल मान रही है। गौरतलब है कि ग्वालियर-चंबल अंचल में 16 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। भाजपा और कांग्रेस, दोनों के ही नेता जातीय समीकरणों को साधने में जुटे हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति (अजा) वर्ग के वोटर का मूड भांपने में भाजपा चूक कर गई थी। इससे अंचल में भाजपा को 13 सीटों का नुकसान हुआ था। कांग्रेस प्रदेश में सरकार बनाने में सफल हो गई। उपचुनाव में भाजपा की जातीय समीकरणों पर पूरी नजर है। भाजपा भिंड-मुरैना में सामान्य वर्ग के साथ पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं को साधने में लगी है। ग्वालियर की पूर्व विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाता उसकी चिंता का विषय बने हुए हैं। दरअसल, एट्रोसिटी एक्ट ने भाजपा के समीकरणों को गड़बड़ा दिया है। कांग्रेस से लंबे समय से नाराज चल रहा अजा वर्ग का मतदाता कोई विकल्प सामने न होने से कांग्रेस के साथ ही चला गया। इसका प्रमाण ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट के नतीजे हैं।
- सुनील सिंह