कंपनियां मालामाल
20-Oct-2020 12:00 AM 327

 

किसानों की भलाई के नाम पर शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बीमा कंपनियों के लिए कितनी लाभदायक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि किसानों की लाखों रुपए की फसल बर्बाद होने पर जहां उन्हें मुआवजे के रूप में 1 रुपए, 4 रुपए, 10 रुपए, 12 रुपए, 50 रुपए मुआवजे के रूप में मिले हैं, वहीं कंपनियों ने 3 साल में 16,098.69 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कंपनियों की चालबाजी साफ दिखने लगी है, इसलिए मप्र सहित कई राज्य इससे बाहर निकलने को बेताब हैं। कृषि मंत्रालय की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ राज्यों ने इस योजना से बाहर होने को चुना है। बिहार, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश में (रबी 2019-20) योजना का कार्यान्वयन नहीं किया गया। इसकी बड़ी वजह ये है कि कंपनियों से फसल बीमा करवाना घाटे का सौदा बनता जा रहा है। राज्यों का कहना है कि वो क्यों न खुद ही मुआवजा बांटें। पंजाब ने तो इस योजना को पहले ही रिजेक्ट कर दिया था। अब मप्र सरकार ने भी अपनी बीमा कंपनी बनाने की घोषणा की है।

इस बार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को उनकी खराब फसल के एवज में कंपनियों द्वारा जो राशि किसानों का दी गई है उससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी आहत हैं। वह कहते हैं कि बीमा कंपनी खेल खेलती रहती है। खुद सोचिए कि क्या कोई कंपनी घाटे में बीमा करेगी? अगर वो प्रीमियम लेंगे 4000 करोड़ तो देंगे 3000 करोड़। इसलिए अब हम खुद मुआवजा देंगे। दो लेगेंगे तो दो और 10 लगेंगे तो 10 देंगे। काहे की कंपनी। आधी रकम नुकसान पर तुरंत दे देंगे और आधी नुकसान का आंकलन करने के बाद। प्रधानमंत्री से मिलकर इसकी अनुमति लूंगा।

वहीं पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव कहते हैं कि एक तरफ कोरोना महामारी ने किसानों को बर्बाद किया, उसके बाद अतिवृष्टि से फसलें तबाह हुईं और अब फसल बीमा के नाम पर भी मजाक किया जा रहा है। 27 लाख 64 हजार किसानों की फसलों का खरीफ 2019 के लिए 15 हजार 221 करोड़ से अधिक का बीमा करवाया गया, जिसमें से किसानों से 352 करोड़ रुपए से अधिक वसूल किए गए और राज्य शासन की ओर से 509 करोड़ रुपए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जमा करवाए थे, लेकिन इतनी बड़ी राशि जमा करने के बावजूद किसानों के हाथ में प्रीमियम की तुलना में 100 गुना तक कम राशि आई है।

गौरतलब है कि मप्र कृषि प्रधान राज्य है। प्रदेश में पिछले 15 साल के दौरान कृषि पर सबसे अधिक जोर दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रदेश को फसल उत्पादन में 5 बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुका है। लेकिन विसंगति यह है कि आज भी प्रदेश का किसान खुशहाल नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है प्राकृतिक आपदा से फसलों का नुकसान होना। फसलों के नुकसान की भरपाई के लिए किसान फसल बीमा कराते हैं, लेकिन उसका फायदा उन्हें नहीं मिल पाता है। आलम यह है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का प्रीमियम जमा करने के बाद भी किसानों को प्राकृतिक आपदा से खराब हुई फसल के मुआवजे के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। अव्वल तो कई बीमा कंपनियां मुआवजा पूरा नहीं देतीं लेकिन वो भी जब समय पर नहीं मिलता तो किसान कर्ज लेकर खेती करने के लिए मजबूर होते हैं। इसकी बड़ी वजह राज्यों की कार्यप्रणाली भी है। दरअसल, देश के 7 बड़े राज्यों ने 2018 से लेकर अब तक कई सीजन में अपने हिस्से का प्रीमियम जमा नहीं किया है। जिसकी वजह से किसान संकट में हैं। केंद्र के पैसे का नुकसान हो रहा है जबकि बीमा कंपनियों को डबल फायदा मिल रहा। ऐसा कारनामा करने वाले कांग्रेस और भाजपा दोनों के शासन वाले राज्य शामिल हैं, जो इन दिनों अपने आपको सबसे बड़ा किसान हितैषी बताने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

मप्र कृषि विभाग के एक अधिकारी कहते हैं कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सार्वजनिक क्षेत्र की 5 और निजी क्षेत्र की 13 कंपनियां पैनल पर हैं। लेकिन सभी कंपनियां हर राज्य और हर मौसम के लिए बोली प्रक्रिया में भाग नहीं लेतीं। वो पहले अपना फायदा देखती हैं। जो ज्यादा जोखिम वाला क्षेत्र है उनमें बीमा नहीं करतीं। स्कीम के कार्यान्वयन के लिए बीमा कंपनियों का चयन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा बोली प्रक्रिया के जरिए किया जाता है। राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य बिनोद आनंद का कहना है कि जितना पैसा सरकार इन्हें प्रीमियम के रूप में देती है उतना आपदा आने पर किसानों को खुद ही दे दे तो बेहतर होगा।

हजारों करोड़ के दावे बाकी

किसान नेताओं का कहना है कि बीमा कंपनियां किसानों को मुआवजे के लिए भटकाती रहती हैं इसलिए ज्यादातर किसान उनके दुष्चक्र में फंसने से अब बच रहे हैं। आपदा के वक्त किसानों को रक्षा कवच देने के लिए बीमा कंपनियों को हर साल प्रीमियम दिया जाता है। साल 2016-17 में 74 लाख से ज्यादा किसानों को बीमित किया गया जिसकी एवज में 3804 करोड़ रुपए प्रीमियम जमा हुआ, लेकिन क्लेम का दावा सिर्फ 2039 करोड़ हुआ। इसी तरह साल 2018-19 में 73 लाख से ज्यादा किसानों को बीमा कवर दिया गया, जिसकी एवज में 5588 करोड़ प्रीमियम जमा हुआ लेकिन क्लेम का दावा सिर्फ 812 करोड़ रुपए ही हुआ। साल 2019-20 में 35 लाख से ज्यादा किसान बीमित हुए और प्रीमियम की राशि 2345 करोड़ रुपए जमा की गई लेकिन क्लेम का दावा अभी भी बाकी है। राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा (कक्काजी) कहते हैं कि कहने को तो यह योजना प्राकृतिक आपदा और बीमारी से फसलों की बर्बादी की भरपाई के लिए है, मगर इसमें इतने झोल और पेंच हैं कि इसका लाभ लेने में किसानों के जूते घिस जाते हैं। इसीलिए इस पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं।  

- विकास दुबे

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