चुनावी मुद्दा बनेंगे अन्ना पशु
20-Nov-2021 12:00 AM 587

 

बुंदेलखंड में खेती घाटे का सौदा मानी जाती है। यहां सिंचाई जितनी बड़ी समस्या है, उससे भी विकट समस्या यहां के अन्ना (आवारा) पशु हैं, जो खेतों में खड़ी किसान की फसल को चट कर जाते हैं। योगी सरकार ने बुंदेलखंड में गोशालाएं तो खुलवाईं, लेकिन इसके बावजूद अन्ना पशुओं पर प्रभावी नियंत्रण नहीं किया जा सका है। अन्ना पशुओं से किसान आज भी हलकान हैं। बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में अन्ना पशु एक बार फिर चुनावी मुद्दा बन सकते हैं। महोबा जिले के जैतपुर विकासखंड के महेवा समेत दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां के किसानों की पूरी रात अन्ना पशुओं को डंडा लेकर हांकने में निकल जाती है। किसान अगर रातभर जागकर चौकीदारी न करें तो अन्ना पशु उनकी सारी फसल चट कर जाएं। ऐसे किसान पशुओं से फसल को चट होने से बचाने के लिए शिफ्टों में खेतों पर चौकीदारी करने को मजबूर हैं।

बुंदेलखंड के सात जिलों महोबा, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, झांसी, ललितपुर और जालौन में सरकारी गणना के मुताबिक, 23 लाख 50 हजार पशु हैं। जिनमें सबसे ज्यादा बदहाल स्थिति गायों की है। गाय जब तक दूध देती है, तब तक पशुपालक उसे अपने घर में रखता है। उसके बाद उसे घर के खूंटे या गोशाला में बांधने के बजाय छुट्टा छोड़ देता है। पशुपालक को दूध न देने वाली गाय को घर पर रखना और उसके लिए चारे का इंतजाम करना भारी पड़ता है। ऐसे आवारा पशु खेतों में खड़ी फसल को उजाड़ देते हैं। अन्ना पशुओं की समस्या लंबे अरसे से बुंदेलखंड में अभिशाप बनी हुई है। चित्रकूट मंडल में सरकारी स्तर पर 1,29,385 गोशालाओं में पशु संरक्षित हैं, जबकि दो लाख 16 हजार से ज्यादा पशुओं को गोशाला में रखने का लक्ष्य था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 90 हजार पशु अभी भी छुट्टा घूम रहे हैं।

भले गाय को लोग माता कहते न थकते हों, लेकिन बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा बेकदरी गाय की है, जबकि भैंस, बकरी, गधा, खच्चर और सुअर को लेकर इतने बुरे हाल नहीं हैं। ये आज भी इनको पालने वालों की कैश प्रापर्टी कहलाते हैं। रातभर जागकर अन्ना पशुओं से फसल बचाने के लिए खेतों में रखवाली कर रहे किसान इन आवारा पशुओं से आजिज आ चुके हैं। महेवा के किसान उत्तम सिंह के अनुसार, अन्ना पशुओं पर सरकार प्रभावी अंकुश नहीं लगा पाई है। इस बार के चुनावों में किसान इस मुद्दे को ध्यान में रखकर वोट डालेगा। बुधौरा के किसान हरीसिंह के अनुसार, प्राकृतिक आपदाओं से किसान को जूझना पड़ता है। अन्ना पशु मानव जनित आपदा है। जिस पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकता है। सरकार के चलताऊ रवैए से इस समस्या से निजात नहीं मिल सकता है। उनके अनुसार बुंदेलखंड में अन्ना पशु बड़ा चुनावी मुद्दा बनेगा, क्योंकि किसान अन्ना पशुओं से बुरी तरह हलकान है। बम्हौरी के किसान देवपाल के अनुसार, अब किसानों को वादों का लॉलीपॉप देकर नहीं बहलाया जा सकता है। बुंदेलखंड का किसान मेहनतकश है। यहां की मिट्टी भी उपजाऊ है। यदि अन्ना पशुओं पर लगाम लग जाए तो किसान को बहुत सारी समस्याओं से निजात मिल सकती है। साथ ही खेती भी लाभकारी सौदा साबित हो सकती है। इस बार के चुनावों में अन्ना पशुओं को लेकर मुद्दा फिर गर्म रहने की संभावना है।

गोवंश से चार गुना ज्यादा आबादी वाले बुंदेलखंडी गो माता के प्रति लापरवाह हैं। चार बुंदेलियों पर एक गोवंश का औसत है। इसके बाद भी पूरे बुंदेलखंड में अन्ना प्रथा चरम पर है। जिसे मां के नाम से पुकारा जाता है उस गोमाता को अन्ना से जाना जा रहा है। प्रदेश की तुलना में बुंदेलखंड में मात्र 12 फीसदी ही गोवंश हैं। पिछली पशु गणना के मुताबिक, उप्र में गोवंशीय पशुओं की संख्या 1,95,57,067 है, जबकि बुंदेलखंड के सातों जिलों बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, जालौन, झांसी और ललितपुर में 23,50,882 गोवंश हैं। यह 12.2 फीसदी हैं। सबसे ज्यादा 4,83,033 गोवंश ललितपुर जिले में हैं। धर्मनगरी चित्रकूट जनपद में गोवंशों की संख्या 4,21,332 है। दूसरी तरफ बुंदेलखंड की जनसंख्या 96,81,552 (वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक) है। मौजूदा समय में आबादी का आंकड़ा एक करोड़ से भी ज्यादा हो गया है। बुंदेलखंड में प्राचीन समय से ही गोवंश पालने की प्रथा रही है। खासकर ग्रामीण इलाकों में शायद ही कोई घर ऐसा हो जहां गाय-भैंस न हों, लेकिन पिछले कुछ दशकों से इस परंपरा में बड़ा बदलाव आया है। बुंदेलखंडी गोवंश को घाटे का सौदा मान बैठे हैं। हालांकि, इसके पीछे खेती की दुर्दशा और अक्सर आ रहीं दैवी आपदाएं भी कारण हैं। इन परिस्थितियों का सबसे ज्यादा खामियाजा गायों को भुगतना पड़ रहा है। भैंस और बैल की स्थिति ठीक है।

सड़कों पर गाय, गोशालाओं में करोड़ों खिलाए

अन्ना पशु की सड़कों पर भरमार है। दूसरी तरफ पशुपालन विभाग इन्हें गोशालाओं में संरक्षित बताकर करोड़ों रुपए का चारा-भूसा खिलाने का खेल खेल रहा है। बीते 28 माह में चित्रकूटधाम मंडल के चारों जिलों बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और महोबा में गोशालाओं में पशुओं के भरण-पोषण पर 58 करोड़ 92 लाख 37 हजार रुपए खर्च हुए हैं। बांदा जिले में 26 करोड़ 7 लाख, चित्रकूट जिले में 8 करोड़ 94 लाख, महोबा जिले में 12 करोड़ 70 लाख और हमीरपुर जिले 11 करोड़ 13 लाख रुपए खर्च बताया गया है। चित्रकूटधाम मंडल में पशुपालन विभाग के कागजी आंकड़ों के मुताबिक, 1,29,385 पशु गोशालाओं में संरक्षित हैं। इनके अलावा चारों जनपदों में 8615 अन्ना पशुओं को किसानों-ग्रामीणों की सुपुर्दगी में सौंपा गया है। इसमें हमीरपुर जिले 3477, महोबा जिले में 2447, बांदा जिले में 561 और चित्रकूट जिले में 2130 अन्ना गायें शामिल हैं।

- सिद्धार्थ पांडे

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