04-May-2020 12:00 AM
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- कोविड-19 के बाद बदल जाएगी दुनिया की सूरत
- भारत बन सकता है विश्व की अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु
- सरकार के सामने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना बड़ी चुनौती
- लॉकडाउन के वजह से हर चौथा व्यक्ति बेरोजगार
- स्वदेशी को बढ़ाने की जरूरत
- केवल वादों और नारों से नहीं बनेगी बात
- भारत को विश्वगुरु बनने का बेहतर मौका
- प्रकृति के महत्व को समझने का अवसर
- भारत को मुक्त व्यवस्था से निकलना होगा बाहर
- स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करना जरूरी
- चीन पर अत्यधिक निर्भरता को करना होगा बाय-बाय
- स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारों को बजट बढ़ाना होगा
- ईमानदारी से गरीबी को मिटाना होगा
- अगर 100 साल बाद कोई महामारी आती है तो उससे निपटने का प्लान बनाना होगा
चीन ने कोरोना महामारी का ऐसा चक्रव्यूह रचा है कि उसने लोगों की सेहत के साथ-साथ देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर डाला है। लेकिन भारत को एक अवसर भी मिला है कि वह अपनी श्रमशक्ति के बल पर विश्व की अर्थव्यवस्था का मजबूत केंद्र बन सके। साथ ही भारत को यह भी तैयारी करनी होगी कि अगर 100 साल बाद फिर से कोई ऐसी महामारी फैलती है तो उससे आसानी से निपटा जा सके। इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारों को बजट बढ़ाना होगा।
कोरोना की आड़ में चीन दुनिया का अगला सुपर पावर बनने के लिए अपनी चाल चल चुका है। अमेरिका कराह रहा है। इटली में मातमी चीख है। स्पेन रो रहा है। ब्रिटेन आईसीयू में है। जर्मनी, फ्रांस, ईरान, तुर्की, स्विजरलैंड, नीदरलैंड, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और भारत समेत लगभग दुनियाभर के 190 से ज्यादा देश की एक तिहाई आबादी घरों में कैद है। अजीब कश्मकश है। माथे का तापमान और सांसों की रफ्तार नापी जा रही है। जिन्हें सांस लेने में मुश्किल वो कोरोना के मरीज और जो अब तक कोरोना से बचे हुए हैं, उनकी सांसें फूल रही हैं। जिंदगी ऐसी दांव पर लगी है कि जिंदगी चलाने वाली हर चीज को ठप करना पड़ गया। मगर कोरोना की रफ्तार ऐसी कि दुनियाभर के अस्पतालों से धीरे-धीरे ऑक्सीजन खत्म हो रही है। वेंटीलेटर कम पड़ते जा रहे हैं। डॉक्टरों को प्रोटेक्ट करने वाले कपड़े नदारद हैं। टेस्ट किट की जबरदस्त कमी है। मास्क और सेनेटाइजर तो पहले से ही गायब हैं।
कोरोना वायरस के इस संक्रमण से विश्वभर में अब तक 2,34,245 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 33,31,040 लोग इससे संक्रमित हैं। भारत में 33,660 लोग संक्रमित हैं और 1134 लोगों की मौत हो चुकी है। यह वायरस दिन पर दिन खतरनाक रूप धारण कर रहा है। जानकारों का कहना है कि चीन ने विश्व की अर्थव्यवस्था को बदहाल करने और अपने आपको सबसे पावरफुल बनाने के लिए कोरोना वायरस का इजाद किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पियो, फ्रेंच नोबल लॉरिएट, एचआईवी के सह-आविष्कारक लॉक मॉन्टेनियर तथा नोबेल पुरस्कार विजेता साइंटिस्ट तासुकु होंजो उन कुछ लोगों में से हैं, जिनका मानना है कि चीन ने जान-बूझकर कोविड-19 का वायरस फैलाया है। तासुकु होंजो का दावा है कि चीन ने लैब में कोरोना वायरस बनाया है। उनका कहना है कि जिस लैब में इस वायरस को बनाया गया है उसमें पूर्व में मैं भी काम कर चुका हूं। जिस दौरान यह वायरस बनाया गया, उस दौरान मैंने लैब के टेक्नीशियन्स के साथ संपर्क करने की कोशिश की लेकिन किसी का मोबाइल ऑन नहीं था। लेकिन चीन है कि वह इस बात को मानने को तैयार नहीं है। हकीकत जो भी हो लेकिन यह बात तो तय है कि इस वायरस ने पूरे विश्व को तबाह कर दिया है। यहां तक कि अमेरिका की एक कंपनी ने तो चीन पर 20 ट्रिलियन डॉलर का मुकदमा भी ठोक दिया है।
अब तक कोई इलाज नहीं
कोरोना वायरस को लेकर दुनियाभर में फैली दहशत की एक बड़ी वजह यही है कि इसका अब तक कोई इलाज नहीं है। दुनियाभर के वैज्ञानिक अभी भी टीका विकसित करने में जुटे हैं। साथ ही हर्ड इम्युनिटी और एंटी बॉडी से सुरक्षा जैसे कयास भी लगाए जा रहे हैं। हर्ड इम्युनिटी का मतलब यह है कि जब बहुत बड़ी संख्या में ये संक्रमण लोगों को हो जाएगा, तब उनके शरीर में इसके प्रति प्रतिरक्षण क्षमता स्वत: विकसित हो जाएगी, जैसा कि अनेक वायरस के मामलों में हुआ है। समझ है कि एक बार पीड़ित व्यक्ति के शरीर में संबंधित वायरस से प्रतिरोधी वायरस उत्पन्न हो जाते हैं। उन्हें एंटी बॉडी कहते हैं। मगर अब विश्व स्वास्थ्य संगठन और दूसरी संस्थाओं के विशेषज्ञों ने एंटी बॉडी परीक्षणों पर भरोसा करने के मामले लेकर सावधान रहने की चेतावनी दी है। उनके मुताबिक इस वायरस के बारे में जो बातें अभी तक मालूम नहीं हुई हैं, उनमें यह भी शामिल है कि इम्युनिटी आखिर कितने समय तक रह सकती है। यानी यह संभव है कि पॉजिटिव आने वाले व्यक्तियों के मामले में एंटी बॉडी क्षमता भी ज्यादा समय तक कारगर नहीं रहेगी। प्रोफेशनल एसोसिएशन ऑफ जर्मन लेबोरेटरी डॉक्टर्स (बीडीएल) के विशेषज्ञों का कहना है कि एंटी बॉडी टेस्ट में गलत नतीजे एक बड़ी समस्या हैं। यानी किसी को कोविड-19 होने के बावजूद भी उसके टेस्ट का नतीजा निगेटिव आ सकता है।
100 से अधिक वैक्सीन पर काम
कोरोना के खिलाफ जंग में दुनियाभर में 100 से ज्यादा वैक्सीन पर काम चल रहा है। इनमें से 6 टीकों को इंसानों पर परीक्षण करने की अनुमति दी गई है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों के एक समूह ने कोरोना वायरस का एक टीका विकसित किया है। मानव पर परीक्षण किए जाने के चरण में यह टीका सबसे पहले एक सूक्ष्मजीव विज्ञानी को लगाया गया है। इस महत्वपूर्ण परीक्षण के लिए शुरुआती दौर में शामिल किए गए 800 लोगों में सूक्ष्मजीव विज्ञानी एलिसा ग्रांताओ पहली स्वयंसेवी है। भारत में अहमदाबाद में जीडुस केडिला इंटरफेरोम अल्फा-2बी के साथ मिलकर, वहीं अहमदाबाद की ही एक और कंपनी हेस्टर बायोसाइंसेज भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी के साथ मिलकर टीका विकसित कर रही है। पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट और दिल्ली की भारत बायोटेक भी वैक्सीन डेवलप कर रही है। यह कंपनियां इंटरनेशनल कलैबरेशन के तहत कोरोफ्लू नाम की वैक्सीन के डेवलपमेंट और टेस्टिंग में लगी है। भारत बायोटेक को भी केंद्र सरकार ने फंड दिया है। उधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि दुनिया में दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र से वैक्सीन का सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाले भारत, इंडोनेशिया और थाइलैंड जैसे देशों को कोविड-19 महामारी से निपटने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। वैश्विक संस्था ने एसईएआर के वैक्सीन (टीका) उत्पादकों और राष्ट्रीय नियामक अधिकरणों से कोविड-19 का टीका विकसित करने के काम में तेजी लाने का अनुरोध भी किया। भारत में एम्स भी वैक्सीन बनाने में जुटा हुआ है। अब देखना यह है कि कौन सा देश इस महामारी का टीका बनाने में सफलता प्राप्त करता है।
भारत के लिए बड़ा मौका
दुनिया को अपने सस्ते सामान का मोहताज बनाने वाले चीन की चाल से पर्दा अब उठ चुका है। जहां एक तरफ कोरोना ने पूरी दुनिया को अपने चंगुल में फंसा लिया है, वहीं कोरोना के प्रकोप से पहले चीन दुनिया के सभी बाजारों को अपनी गिरफ्त में ले चुका था। दुनिया की हर बड़ी कंपनी चीन में माल बनाती और बेचती है। मतलब अमेरिका हो या इटली सब चीन पर निर्भर हैं। एक्सपर्ट भी मानते हैं कि कोरोना संकट को भयानक बनाने में चीन पर निर्भरता का बड़ा योगदान है। कोरोना का यही वो सबसे बड़ा सबक है, जिसे भारत को भी याद रखना होगा। विश्व समुदाय का मानना है कि यह समय भारत के उदय का है। दरअसल, भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी श्रमशक्ति है। भारत में श्रमिक सस्ती दर पर उपलब्ध हैं। ऐसे में भारत अपने यहां निर्माण इकाईयां स्थापित कर उनमें सस्ते सामान का उत्पादन कर विश्व बाजार पर छा सकता है। क्योंकि चीन में अब वह ताकत नहीं रह गई है कि वह सस्ते सामान अधिक दिन तक बना सके। अब वहां मजदूरी काफी बढ़ गई है। वर्ष 1990 में चीन की सालाना मजदूरी 11,475 रुपए थी, जो 2005 में बढ़कर 1 लाख 53 हजार रुपए हो गई। 2015 में 6 लाख 80 हजार रुपए और आज ये बढ़कर तकरीबन 10 लाख 32 हजार रुपए हो चुकी है। यानी पिछले 30 साल में चीन की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों का वेतन 8900 प्रतिशत गुना बढ़ चुका है। इस तरह चीन में सामान बनाना अब उतना सस्ता नहीं रह गया है। कोरोना वायरस ने बड़ी-बड़ी कंपनियों को चीन से बाहर देखने का एक और मौका दे दिया है और वो विकल्प की तलाश में हैं। अब सवाल ये है कि चीन से उठकर ये विदेशी कंपनियां किस देश में जाएंगी। किसे इसका फायदा मिलेगा? ऐसे में तीन देशों (वियतनाम, मेक्सिको और भारत) के बीच प्रतियोगिता है। कोरोना वायरस भारत के लिए आपदा तो है ही, लेकिन अवसर भी है। क्योंकि भारत के पास चीन जितना बड़ा बाजार है। उससे कई गुना मैन पावर हैं। भारत को आज रोजगार की सख्त जरूरत है क्योंकि देश 1991 से भी बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।
300 कंपनियां दरवाजे पर
रेटिंग कंपनी नोमुरा की मानें तो कोरोना संक्रमण के बाद एक हजार से अधिक कंपनियां चीन को अलविदा करने की तैयारी कर चुकी हैं। उनमें से करीब 300 भारत में स्थापित होना चाहती हैं। खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कंपनियों से कहा है कि वे भारत का रुख करें। हालांकि आश्चर्यजनक यह है कि अभी तक जिन 56 कंपनियों ने चीन से मुंह मोड़ा है, उनमें से महज 3 कंपनियां ही भारत में अपने लिए जगह तलाश पाई हैं। 26 कंपनियां वियतनाम चली गई तो 11 कंपनियों ने ताइवान को अपना केंद्र बना लिया। 8 कंपनियों ने थाईलैंड में अपना केंद्र बनाया। रेटिंग कंपनी नोमुरा ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि एक तरफ चीन में मजदूरी की बढ़ती लागत है तो दूसरी ओर शी जिनपिंग सरकार का हस्तक्षेप बढ़ रहा है। इससे यह कंपनियां अपने लिए बेहतर विकल्प तलाश रही हैं। इसी वजह से इन्होंने चीन से बाहर जाने का फैसला किया है। इसके अलावा चीन से कोविड-19 के आउटब्रेक के कारण भी कंपनियां भारत या दक्षिण एशियाई देशों में जाने के लिए सोच रही हैं। भारत को उम्मीद थी कि और कम मजदूरी की दर से यह कंपनियां यहां आएंगी, पर ऐसा नहीं हो पाया।
भारत में कई समस्याएं
भारत में कंपनियां स्थापित करना टेढ़ी खीर होता है। भारत में यदि सरकार ने प्रोजेक्ट को क्लीयर कर भी दिया तो कंपनियों को फैक्टरी की जमीनों के लिए किसानों के साथ डील करनी पड़ती है। फिर उसे नौकरशाही के लंबे प्रावधानों से भी गुजरना होता है। इसके बाद लोकल माफिया का भी सामना करना पड़ता है। माफिया से जुड़े एनजीओ और लोकल ट्रेड यूनियन के अलावा लेबर लॉ से भी इन कंपनीज को दो चार होना पड़ता है। हालांकि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार लेबल लॉ और अन्य मुद्दों को सुलझाने में लगी है, लेकिन अदालतों में इसके खिलाफ लंबे केस भी हैं। इससे इसमें बाधा आ रही है। अगर मोदी सरकार इस गोल्डन अवसर को छोड़ना नहीं चाहती है तो इन मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझाना होगा।
नीति बदलनी होगी
भारत अपनी जिस श्रमशक्ति के बलबूते चीन को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है उस श्रमशक्ति को यहां की सरकारों और राजनीतिक दलों ने मुफ्त की रोटी तोड़ने का आदी बना दिया है। कोरोना वायरस के इस संक्रमणकाल में ही यह देखने को मिल रहा है कि लोग मुफ्त का भोजन और राशन लेने के लिए लंबी-लंबी कतार लगाए रहते हैं। जब कि यह मुफ्तखोरी की आदत नहीं छूटेगी या छुड़ाई जाएगी तब तक भारत चीन को टक्कर देने लायक नहीं बनेगा। इसलिए सरकार को सबसे पहले नीति बदलनी होगी कि किसी को भी मुफ्त में कोई चीज नहीं दी जाएगी।
कब खत्म होगी महामारी?
कोरोना की महामारी कब खत्म होगी कुछ पता नहीं। अमेरिका की एक खोजी संस्था की राय है कि अभी दुनिया में एक अरब लोगों के संक्रमित होने की संभावना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामिनाथन का कहना है कि किसी भी महामारी का मुकाबले करने के लिए टीका (वैक्सीन) तैयार करने में प्राय: 10 साल लगते हैं। इबोला का टीका पांच साल में बना था। कोरोना का टीका तैयार करने में दर्जनों वैज्ञानिक लगे हुए हैं, फिर भी उसमें सालभर लग सकता है। यदि यह तथ्य है तो कोरोना का मुकाबला तब तक कैसे किया जाए ? यह भी तथ्य है कि कोरोना के रोगी अच्छी-खासी संख्या में ठीक हो रहे हैं। वे कैसे ठीक हो रहे हैं? उन्हें ठीक करने वाली कोई एक सुनिश्चित दवाई नहीं है। जैसा भी मरीज हो, वैसी ही दवाइयों का संयोग बिठाने की कोशिश की जाती है। लग जाए तो तीर नहीं तो तुक्का! अब अमेरिका के रोग-नियंत्रक विभाग ने कोरोना के नए लक्षणों का बखान कर दिया है। पहले खांसी, बुखार, छींक आदि लक्षण थे, अब इनमें हाथ-पांव कांपना, सिरदर्द, मांसपेशियों में अकड़न, गला रुंधना और स्वाद खत्म होना भी जुड़ गया है। दूसरे शब्दों में अब संक्रमित रोगियों की इतनी भरमार हो सकती है कि भारत और पाकिस्तान जैसे देश भी संकट में फंस सकते हैं, जहां कोरोना का हमला उतना तेज नहीं हुआ है, जितना अमेरिका और यूरोप में हुआ है। हमारे यहां इसकी संख्या शायद इसलिए भी कम दिखाई पड़ती है कि इन देशों की तरह हमारे यहां खुला खाता नहीं है। कई बातें छिपाई जाती हैं और हमारे यहां कोरोना की जांच भी बहुत कम हुई हैं। ऐसी हालत में बड़े पैमाने पर क्या किया जा सकता है। सरकार ने शारीरिक दूरी, मुखपट्टी, घर बंदी आदि का जमकर प्रचार करके ठीक ही किया है लेकिन करोड़ों लोग कोरोना से कैसे लड़ें, अपनी रोकथाम-शक्ति कैसे बढ़ाएं, इस बारे में हमारे नेतागण नौकरशाहों के नौकर बने हुए हैं। उनकी जुबान लड़खड़ाती रहती है। वे करोड़ों लोगों को घरेलू नुस्खे (काढ़ा वगैरह) लेने के लिए क्यों नहीं कहते? हवन-सामग्री के धुएं से संक्रमण को नष्ट क्यों नहीं करवाते?
देशी कंपनियों के रैपिड टेस्टिंग किट का इस्तेमाल क्यों नहीं?
एक तरफ देश स्वदेशी की बात करता है, दूसरी तरफ हर मामले में विदेशों पर भरोसा करता है। ताजा मामला कोराना संक्रमण के इस दौर में देखने को मिला। कोरोना वायरस के टेस्टिंग के लिए सरकार ने चीन से रैपिड टेस्टिंग किट मंगवाया, लेकिन चीन ने अपनी फितरत के अनुसार घटिया किट भारत भेज दिया। हालांकि भारत सरकार ने चीन से आए रैपिड टेस्टिंग किट का ऑर्डर कैंसिल कर उन्हें वापस लेने का निर्देश दे दिया है। साथ ही उनकी दो कंपनियों का लाइसेंस रद्द कर दिया है। जानकारों का कहना है कि भारत में कई ऐसी कंपनियां हैं जो रैपिड टेस्टिंग किट बनाती हैं। सरकार ने इन कंपनियों से यह किट क्यों नहीं लिया। जानकार यह भी बताते हैं कि चीन से जो रैपिड टेस्टिंग किट और पीपीई मंगाया गया है उससे आधी से भी अधिक कीमत में भारत में किट उपलब्ध है। अब जब चीन से आया सामान घटिया निकला है तब जाकर भारत सरकार को अपने देश में निर्मित किट की याद आई है। कई प्रदेशों में स्वदेशी किट का इस्तेमाल हो रहा है।
कहां हैं प्राइवेट अस्पतालों की वकालत करने वाले लोग?
नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी ने भारतीय चिकित्सा सेवाओं की कमजोरियां उजागर की हैं। खासकर, सरकारी और प्राइवेट हेल्थ सिस्टम के बीच के विरोधाभास की तो इसने अच्छे से कलई खोली है। पहले से स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी का सामना कर रहे सरकारी हेल्थकेयर सिस्टम के समक्ष जैसे ही कोरोना संकट से लड़ने की चुनौती आई, वैसे ही प्राइवेट हेल्थकेयर सेवाओं की वकालत करने वाले मूकदर्शक बन गए या फिर एक बैलआउट पैकेज की मांग में जुट गए। ऐसे समय जब अस्पतालों द्वारा मरीजों को या तो भर्ती करने से इंकार किया जा रहा है, या फिर उनसे कोविड-19 से मुक्त होने का सर्टिफिकेट मांगा जा रहा है, फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री का दावा है कि प्राइवेट हेल्थकेयर सेक्टर को सरकार से तरलता यानी पैसे चाहिए। इसके अलावा, उसे अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष करों से राहत के साथ ही कॉस्ट सब्सिडी भी चाहिए। कॉस्ट सब्सिडी का मतलब यह है कि हेल्थकेयर से जुड़ी चीजों की उत्पादन लागत का एक हिस्सा सरकार वहन करे। यह विडंबना ही है कि संगठन ने यह भी कहा है कि इस महामारी के कारण प्राइवेट हेल्थकेयर सिस्टम की सेहत पर बुरा असर हुआ है।
आपदा को अवसर में बदलने का निर्देश
उधर, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस आपदा से लोगों को राहत दिलाने के लिए कमर कस ली है। साथ ही उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इस आपदा को अवसर में बदलने का मौका है। इसलिए इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश की जाए। मुख्यमंत्री ने कहा है कि चीन में मौजूद विदेशी कंपनियां अपना कारोबार समेट रही हैं। ऐसे में हम प्रयास करेंगे कि कंपनियां बड़ी संख्या में मध्यप्रदेश आएं। यहां निवेश के लिए अनुकूल माहौल हैं और हमने नीतियां भी निवेश आधार की बनाई हैं। गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में कहा था कि देश के युवाओं को नौकरी के लिए तैयार रहना होगा। कोरोना संक्रमण से निपटने के बाद चीन से कारोबार समेटकर कई बड़ी कंपनियां भारत आएंगी, क्योंकि चीन के बाद भारत ही बड़ा बाजार है और इससे लाखों युवाओं को रोजगार का अवसर भी मिलेगा।
सबसे ज्यादा प्रभावित 10 देश
देश कितने संक्रमित कितनी मौतें कितने ठीक हुए
अमेरिका 10,64,194 61,656 1,47,411
स्पेन 2,36,899 24,275 1,32,929
इटली 2,03,591 27,682 71,252
फ्रांस 1,66,420 24,087 48,228
ब्रिटेन 165,221 26,097 उपलब्ध नहीं
जर्मनी 1,61,539 6,467 1,20,400
तुर्की 1,17,589 3,081 44,022
रूस 99,399 972 10,286
ईरान 93,657 5,957 73,791
चीन 82,862 4,633 77,610
प्रभावित 10 शहर
शहर कितने संक्रमित
मुंबई 5776
दिल्ली 3314
अहमदाबाद 2542
इंदौर 1372
पुणे 1099
जयपुर 859
थाणे 752
चेन्नई 678
सूरत 570
हैदराबाद 548
लेख लिखे जाने (30 अप्रैल) तक
- राजेंद्र आगाल