देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने बचत खाते पर मिलने वाले ब्याज को घटाकर तीन फीसदी कर दिया। ब्याज दरों में यह कटौती उन जमाकर्ताओं के लिए बुरी खबर है जिनके बचत खाते एसबीआई में हैं और उनमें रिटायरमेंट या बच्चों की शादी के लिए इकट्ठा किया गया फंड है। देश के सबसे बड़े बैंक की ओर से ब्याज दरों में कटौती यानी बचतों पर कैंची अन्य बैंकों पर भी चलेगी। बैंकों में आपकी जमा पर मिलने वाला रिटर्न दरअसल बैंकों के लिए कॉस्ट ऑफ फंड (पूंजी की लागत) है। यदि बैंक आपको जमा पर ऊंची ब्याज दर का भुगतान करेगी तो निश्चित तौर पर घर या कार के लिए मिलने वाला कर्ज भी महंगा होगा। अर्थव्यवस्था के मौजूदा परिदृश्य में जब बैंकों के ऊपर ज्यादा से ज्यादा कर्ज देने का दबाव है तब जमा पर ऊंचा रिटर्न दे पाना बैंकों के लिए मुश्किल है। इसके अलावा सरकारी बैंकों में जमा की आमद और कर्ज बांटने की रफ्तार में बड़ा अंतर है। अप्रैल 2019 से दिसंबर 2019 के दौरान एसबीआई ने कुल दो लाख करोड़ से ज्यादा (2,03,739 करोड़) की जमा पूंजी जुटाई, जबकि इस अवधि में बैंक ने कुल 21,862 करोड़ रुपए के कर्ज बांटे। यह कुल जमा का सिर्फ 10.7 फीसदी ही है।
अब बैंक के नजरिए से समझिए तो कर्ज की मांग न होने पर बैंक को इन जमाओं पर तो ब्याज देना ही है। पहले से अर्थव्यवस्था में सुस्ती और उसके बाद कोरोना का असर कर्ज की मांग को और कमजोर कर सकता है। यस बैंक के दिक्कत में फंसने के बाद निजी बैंकों पर लोगों का डोलता भरोसा सरकारी बैंकों में जमाओं को पहाड़ और ऊंचा कर सकता है। सुस्त मांग और बढ़ती जमा के दबाव में बैंकों के पास जमा पर रिटर्न घटाना ही अंतिम विकल्प बचता है क्योंकि बैंकों में जमा लेने से तो मना किया नहीं जा सकता है। कर्ज की मांग सुस्त होने का असर न केवल एसबीआई बल्कि सभी सरकारी बैंकों में देखने को मिल रहा है। अप्रैल 2019 से दिसंबर 2019 के दौरान सभी सरकारी बैंकों ने कुल 25,530 करोड़ रुपए का कर्ज दिया, जबकि सरकारी बैंकों में कुल जमा 4,08,733 करोड़ रुपए की रही। आने वाले दिनों में कोरोना का असर बढ़ा तो कर्ज की मांग को और चोट पहुंच सकती है ऐसे में हमारी जमा पर और कैंची न चले इसकी दुआ कीजिए।
उधर, आयकर की नई व्यवस्था में कर छूट का लाभ पाने के लिए आपको सभी रियायतें छोड़नी होंगी। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने यह भी समझाया कि नई व्यवस्था के तहत 15 लाख रुपए की आय वाले लोगों को 78,000 रुपए कम टैक्स चुकाना होगा। नई व्यवस्था लाई गई है और वित्त मंत्री उसमें कर बचत का लाभ बता रही हैं यानी सरकार चाहती है कि करदाता नई व्यवस्था को अपनाएं। सरकार की मंशा इसके पीछे केवल कर बचाने के लिए की जाने वाली बचत को हतोत्साहित करना है, जिससे ज्यादा से ज्यादा पैसा करदाता के हाथ में हो और वे इसे खर्च करके टूटी खपत की मरहम पट्टी कर सकें। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में खपत की सबसे ज्यादा करीब 60 फीसदी हिस्सेदारी है। सुस्त अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए खपत के पहिए का चलना जरूरी है। क्योंकि निजी निवेश (जो जीडीपी में दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखता है) भी खपत बढ़ने की ही राह तक रहा है।
नई व्यवस्था और इसके पीछे सरकार की मंशा तो समझ ली, लेकिन करदाताओं के लिए नई व्यवस्था कितने काम की है यह बड़ा सवाल है। देश में 92 फीसदी लोग कर बचत के लिए
2 लाख रुपए से कम बचाते हैं। केवल आयकर बचाया जा सके इसके लिए यूलिप, एलआईसी जैसे उत्पादों में निवेश करते हैं। इसकी कितनी जरूरत है और यह निवेश कितना फायदेमंद है इस पर विचार किए बिना। ये करदाता निश्चित तौर पर अपनी सालाना आय का एक हिस्सा टैक्स के रूप में देकर बचे हुए को अपने मन मुताबिक खर्चना चाहेंगे। लेकिन नई व्यवस्था नौकरीपेशा लोगों के लिए खास आकर्षक नहीं है। क्योंकि उनके बस में सैलरी से कटने वाला पीएफ, कंपनी की ओर से दी गई हेल्थ पॉलिसी का प्रीमियम आदि नहीं होता। वहीं एचआरए आदि का फायदा नियोक्ता बेसिक सैलरी के आधार पर देता है। ये चीजें सैलरी से कटना अनिवार्य हैं। ऐसे में नौकरीपेशा लोगों के लिए नई व्यवस्था फायदेमंद है या नहीं यह उनके वेतन से होने वाली अनिवार्य कटौती के बाद ही तय किया जा सकता है। जिन लोगों ने होमलोन ले रखा है या जिनके बच्चों की स्कूल फीस 80-सी में बचत का बड़ा हिस्सा लेती है वे भी नई व्यवस्था को अपनाने से कतराएंगे। क्योंकि वे पहले से इसका लाभ ले रहे हैं और रातोंरात कुछ नहीं बदल सकते। नई व्यवस्था निश्चित तौर पर बचत (एलआईसी, यूलिप, ईएलएसएस, बचत योजनाएं) और रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेश को हतोत्साहित करेगी। क्योंकि बीते कुछ वर्षों में न तो रियल एस्टेट और न छोटी बचत योजनाएं रिटर्न देने के मामले में कोई खास आकर्षित कर पाई हैं।
कितने करदाता की कसरत?
जिन व्यक्तिगत करदाताओं के लिए यह पूरी कसरत की जा रही है वे देश में हैं कितने यह जानना भी जरूरी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एसेसमेंट ईयर 2018-19 में कुल 8.46 करोड़ करदाता थे, यहां यह समझना जरूरी है कि सरकार करदाता मानती किसको है? सरकार उन सभी लोगों को करदाता मानती है जो आयकर रिटर्न फाइल करते हैं या जिनकी आय पर टीडीएस कटा हो। लेकिन यह सही नहीं है क्योंकि जरूरी नहीं कि जिस व्यक्ति ने रिटर्न भरा हो उसकी कर देनदारी भी बनती हो। इसी तरह जिस व्यक्ति का टीडीएस कटा हो उसने आयकर रिटर्न फाइल किया हो इसकी भी कोई गारंटी नहीं। एसेसमेंट ईयर 2018-19 में कुल 5.53 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया लेकिन उनमें से 2.24 करोड़ लोगों ने कोई टैक्स जमा नहीं किया। यानी कुल 3.29 करोड़ लोग ऐसे हैं जो देश में कर भी देते हैं और आयकर रिटर्न भी फाइल करते हैं। इसी तरह देश में 2.93 करोड़ लोग (8.46 करोड़-5.53 करोड़) ऐसे हैं जिनका टीडीएस कटा लेकिन उन्होंने कोई रिटर्न दाखिल नहीं किया। यानी व्यक्तिगत करदाताओं की कुल संख्या 2.93+3.29 = 6.22 करोड़ है। 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले देश में महज 6.22 करोड़ व्यक्तिगत करदाता हैं, जो खपत को बढ़ाने और कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
- नवीन रघुवंशी