2020का ग्लोबल हंगर इंडेक्स भारतीयों के लिए आंखें खोलने वाला है। यह बात हैरान नहीं करती कि भारत 107 देशों में 94 नंबर पर है क्योंकि 2019 में भारत की रैंकिंग 119 देशों के बीच 103 और 2018 में 117 देशों के बीच 102 रही थी। हैरानी की बात यह है कि अफगानिस्तान को छोड़कर भारत अपने सभी पड़ोसियों से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में पीछे हैं। तेज रफ्तार विकास दर से लेकर 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनोमी बनने का सपना दिखाते हुए दुनिया में भारत को विश्वगुरू बना रहे नेतृत्व पर ताजा आंकड़ा करारा तमाचा है। जरा सोचिए कि दुनिया का भावी विश्वगुरू भारत आज किस हाल में है कि भूख से बिलबिलाते देशों के बीच इससे बदतर हाल सिर्फ नॉर्थ कोरिया, रवांडा, नाइजीरिया, अफगानिस्तान, लेसोथो और सिएरा लियोन का है। सूडान और भारत के अंक बराबर हैं। पड़ोसी देशों की चर्चा कर लें। श्रीलंका का ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी जीएचआई 16.3 है और यह 64वें नंबर पर है जबकि नेपाल 19.5 जीएचआई के साथ 73वें नंबर पर है। बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान क्रमश: 75, 78 और 88वें नंबर पर हैं।
ताजा आंकड़े में अभी कोरोना की एंट्री नहीं हुई है। यह आंकड़ा तो 2021 में आएगा। तब कैसी भयावह तस्वीर रहने वाली है इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। विश्व बैंक ने आशंका जताई है कि 'बेहद गरीबÓ लोगों की तादाद बीते दो दशकों में सबसे ज्यादा रहने वाली है। विश्व बैंक के पैमाने पर 'बेहद गरीबÓ वे लोग हैं जिनकी प्रतिदिन की आमदनी 1.9 अमेरिकी डॉलर है। भारतीय रुपए में यह रकम 139.53 रुपए होती है। विश्व बैंक के मुताबिक अभी 115 करोड़ लोग 'बेहद गरीबÓ की श्रेणी में आने वाले हैं और 2021 तक इनकी संख्या बढ़कर 150 करोड़ हो जाएगी। भारत में कोरोना से पहले 2017 में गरीबों की संख्या 36 करोड़ थी। यही संख्या 2005-06 में 64 करोड़ थी। स्मरण रहे कि 2006 से 2016 के बीच 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे थे। सीएमआईई के आंकड़े कहते हैं कि कोरोनाकाल में अप्रैल से जुलाई के बीच भारत में 1 करोड़ 89 लाख लोगों की नौकरियां छिन गईं। नौकरी से लेकर कारोबार तक पर बुरे असर को पहली तिमाही में 23.9 फीसदी नकारात्मक विकास दर से आंका जा सकता है।
कोरोना की महामारी ने विश्व बैंक के उस प्रयास पर पानी फेर दिया है जो 2013 में इस मकसद के साथ शुरू किया गया था कि 2030 तक 'बेहद गरीबÓ की श्रेणी में 3 प्रतिशत से अधिक लोग नहीं रहें। कोरोना महामारी से पहले उम्मीद की जा रही थी कि 2020 तक 'बेहद गरीबÓ वाली श्रेणी में वैश्विक आबादी का 7.9 प्रतिशत तक की आबादी होगी। आज दुनिया की आबादी 7.8 अरब है। इस हिसाब से 'बेहद गरीबÓ लोगों की तादाद 61.62 करोड़ रहने वाली थी। मगर, कोरोना की महामारी के बाद अब यह तादाद बढ़कर 9.1 प्रतिशत से लेकर 9.4 प्रतिशत के बीच यानी 70.98 करोड़ से लेकर 73.32 करोड़ तक होगी।
यह वही आबादी है जो दुनिया में भुखमरी की शिकार है। नोबल पुरस्कार प्राप्त संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के मुताबिक पिछले साल भुखमरी की शिकार आबादी 69 करोड़ थी। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के प्रमुख डेविड बीएस्ले ने दुनिया के 200 से ज्यादा अरबपतियों से अपील की है कि वे उदारतापूर्वक अपने पर्स खाली करें और भूखे लोगों को की मदद करें। यह अपील इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि दुनियाभर के अमीर जरूरत के वक्त मानवता दिखाने को आगे नहीं आ रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट में जून में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के 50 अमीर लोग कोरोना से लड़ाई में योगदान के तौर पर अपनी दौलत का 0.1 प्रतिशत हिस्सा ही निकाल पाए थे।
दुनिया में अरबपतियों की तादाद 2017 में 2,158 थी जो अब 2,189 हो चुकी है। कोरोना काल में भी इन अरबपतियों की दौलत में 27.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह 10.2 ट्रिलियन डॉलर है। दूसरे शब्दों में यह रकम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस सपने वाली रकम 5 ट्रिलियन डॉलर के दुगुने से ज्यादा है जहां वे भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को पहुंचाना चाहते हैं। स्विट्जरलैंड में यूबीएस की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से जुलाई के बीच कोरोनाकाल में भारतीय अरबपतियों की दौलत में 35 फीसदी का इजाफा हुआ है और यह बढ़कर 423 बिलियन डॉलर पहुंच गया है। जाहिर है कोरोनाकाल में भारत में अमीरों की दौलत बढ़ने की गति कहीं अधिक तेज है।
कोरोनाकाल में भी नहीं दिखा दान-योगदान
भारत में 9 अरबपतियों ने कोविड-19 से लड़ने के लिए 541 मिलियन डॉलर का दान दिया है। इंडिया स्पेंड की 20 मई की रिपोर्ट के मुताबिक पीएम केयर्स फंड में 9677 करोड़ (1.27 बिलियन डॉलर) की रकम दान स्वरूप आयी थी। इसमें सरकारी उद्यमों के कर्मचारियों की सैलरी समेत हर वर्ग का योगदान शामिल हैं। प्रांतीय स्तर पर भी कोविड-19 के फंड बने हैं। फिर भी कोविड से लड़ाई के लिए दानस्वरूप अमीर वर्ग को जो उदारता दिखानी चाहिए वह दिखलाई नहीं देती। हालांकि हुरून इंडिया लिस्ट में शामिल 828 भारतीय अमीरों के पास 821 अरब डॉलर की दौलत हैं जो रुपए में 60.59 लाख करोड़ होता है। अगर इन अमीरों ने अपनी दौलत का 1 प्रतिशत भी कोविड-19 से संघर्ष में दिया होता तो यह 8.2 बिलियन डॉलर या 8210 मिलियन डॉलर होता। जाहिर है भारत में कोरोना से लड़ने की ताकत काफी अधिक होती और भुखमरी जैसी स्थिति से बेहतर तरीके से लड़ा जा सकता था। फोर्ब्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 1 प्रतिशत अमीर आबादी के पास 42.5 फीसदी दौलत है। वहीं अमीरों की दूसरी तरफ खड़ी आधी आबादी के पास बमुश्किल 2.8 फीसदी दौलत है। भारत की 10 प्रतिशत अमीर आबादी के पास 74.3 फीसदी दौलत है तो शेष 90 फीसदी के पास 25.7 फीसदी। सवाल ये है कि इन दौलतमंदों से इस वक्त उम्मीद न की जाए तो कब की जाए? ऐसा क्यों हो कि दुनिया की बड़ी आबादी भुखमरी और बदहाली की चपेट में आएं और एक तबका आपदा में भी अवसर देखे और उसकी दौलत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रहे?
- नवीन रघुवंशी