जीवन के लिए पानी के क्या मायने होते हैं, सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड की महिलाओं से बेहतर यह कौन जान सकता है। होश संभालते ही बेटियां हैंडपंपों पर तड़के से ही कतार लगाकर खड़ी हो जाती हैं। सिर पर सूरज आने तक यही पानी ढोने का क्रम चलता है। कई बच्चियों का स्कूल पानी भरने की जिम्मेदारी की भेंट चढ़ जाता है। पानी लेने के लिए नंबर लगाने को लेकर विवाद भी इसी जद्दोजहद का हिस्सा है। मप्र में छतरपुर जिले के अंगरोठा गांव की महिलाओं ने गर्मियों में पैदा होने वाले भीषण संकट को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करने का संकल्प लिया। इस लक्ष्य को एक पहाड़ काटकर हकीकत में बदला। महिलाओं का नेतृत्व करने वाली 19 साल की बबीता आजकल सुर्खियों की सरताज है। उसके प्रयासों से भावी पीढ़ियों का जल संकट खत्म हुआ है।
सही मायनो में सूखे बुंदेलखंड में पानी के स्थायी समाधान के लिए महिलाओं ने अथक प्रयास किए हैं। प्रत्येक गांव में पच्चीस-पच्चीस महिलाओं की पानी पंचायत बनाई गई है, महिला सदस्य जल संरचनाओं के निर्माण व रखरखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्हें सम्मान से जल सहेलियां कहकर बुलाया जाता है। सही मायनो में ये जल सहेलियां बुंदेलखंड के लिए भगीरथ बन गई हैं। छतरपुर के अंगरोठा गांव में आसपास की पंचायतों की 400 से अधिक महिलाओं ने पहाड़ को काटने के संकल्प को हकीकत में बदला। पहाड़ के करीब 350 फीट हिस्से को काटकर एक ऐसी नहर बनाई गई, जिससे पहाड़ों का बरसाती पानी गांव के बड़े तालाब में भरने लगा। इसके साथ ही बरसाती बछेड़ी नदी को भी नया जीवन मिला। दरअसल, बुंदेलखंड में जल संरचनाओं को गढ़ने के जो भगीरथ प्रयास हुए हैं, अंगरोठा भी उसी कड़ी का हिस्सा है। निसंदेह जल संकट की त्रासदी महिलाएं ही झेलती हैं, इसीलिए उन्होंने नई जल संरचना के निर्माण का बीड़ा उठाया।
दरअसल, गंभीर संकट से जूझते बुंदेलखंड को यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में जो साढ़े तीन हजार करोड़ का पैकेज दिया गया था, उसका लक्ष्य सूखे को खत्म करके क्षेत्र से पलायन रोकना भी था। इस योजना के तहत अंगरोठा में चालीस एकड़ का तालाब बनाया गया था जो जंगल से तो जुड़ा था मगर यहां पानी आने का रास्ता बीच में एक पहाड़ आने से अवरुद्ध था। बड़े इलाके का पानी बछेड़ी नदी से होकर निकल जाता था। स्थायी जल स्रोत न होने से यह तालाब बरसात के बाद सूख जाता था। शेष महीनों में गांव में जलसंकट बना रहता था। गांव की महिलाओं ने क्षेत्र में सक्रिय समाजसेवी संस्था व जल जोड़ो अभियान के सहयोग से इस भगीरथ प्रयास को अमलीजामा पहनाने का संकल्प लिया। पहाड़ को काटकर नहर को तालाब से जोड़ दिया गया। इस अभियान को नेतृत्व देने वाली बबीता राजपूत कहना है कि केवल अंगरोठा की ही नहीं, निकटवर्ती कई गांवों की महिलाएं कई किलोमीटर पैदल चलकर श्रमदान के लिए आती थीं। पहले मनरेगा के तहत कार्य करवाने का विचार आया लेकिन महिलाओं ने खुद ही संकल्प को पूरा किया। करीब डेढ़ साल की अथक मेहनत से जीवनधारा गांव तक पहुंची। पहाड़ में विद्यमान ग्रेनाइट के पत्थरों को हटाना एक बड़ी बाधा थी, जिन्हें काटने के लिए मशीनों की भी मदद ली गई। इतना ही नहीं, इस काम में जितने पेड़ काटे गए, उसी संख्या में महिलाओं ने नए पौधे भी लगाए ताकि पर्यावरण संतुलन बना रहे। बबीता बताती है कि इस प्रयास से जहां गांव का तालाब लबालब भर गया, वहीं गांव में भूजल का स्तर भी समृद्ध हुआ है। साथ ही मरणासन्न बरसाती बछेड़ी नदी को नया जीवन मिल गया, जो सदानीर बनी रहेगी।
दरअसल, बबीता के नेतृत्व में महिलाओं ने वर्षा जल सहेजकर गांव की दशा सुधारकर समृद्धि की दिशा बदल दी है। जल जोड़ो अभियान के अनुसार तालाब में सत्तर एकड़ तक पानी भर रहा है। भूजल स्तर में वृद्धि से सूखे कुएं भी जीवंत हुए हैं और हैंडपंप भी कम गहराई में पानी दे रहे हैं। पशु धन के लिए भी अब पानी का संकट नहीं रहा। अब खेती में समृद्धि की संभावनाएं हकीकत बन गई हैं।
बबीता इस बात को स्वीकारती हैं कि यह लक्ष्य हासिल करना सरल कार्य नहीं था। लेकिन क्षेत्र की महिलाएं तन-मन से साथ जुटीं और लक्ष्य हकीकत में बदल गया। इसमें उन प्रवासी श्रमिकों की भी भूमिका रही जो कई दिन पैदल चलने के बाद गांव पहुंचते थे। इस काम में जल जोड़ो अभियान के संयोजक मानवेंद्र का मार्गदर्शन लगातार मिलता रहा। इस अभियान को लॉकडाउन के दौरान अंजाम दिया गया। जिससे इस पठारी क्षेत्र के सूखे खेत अब सोना उगलने को तैयार हो गए हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि अब पानी के कारण गांव-घर छोड़ने की प्रवृत्ति पर रोक लग सकेगी।
40 एकड़ के तालाब में भर गया 70 एकड़ तक पानी
जल जोड़ो अभियान के राज्य संयोजक मानवेंद्र सिंह बताते हैं कि ग्राम भेलदा में पहाड़ों के जरिए बरसात का पानी बहकर निकल जाता था। इस पानी को सहेजकर महिलाओं ने गांव की दशा और दिशा बदलकर रख दी है। अब इस 40 एकड़ के तालाब में लगभग 70 एकड़ तक पानी भर रहा है। सूखे कुओं में पानी आ चुका है, हैंडपंप भी दोबारा पानी देने लगे हैं। किसान अब कृषि के सुनहरे भविष्य की कल्पना कर रहे हैं।
- सिद्धार्थ पांडे