बुंदेलखंड की खनिज संपदा पत्थर और बालू की बयार डेढ़ दशक से परवान चढ़ी है। दोनों खनिज फर्श (धरती) से अर्श (आसमान) पहुंच गए। इसमें राष्ट्रीय कंपनियां भी कूद पड़ीं। कुदरत से मिली मुफ्त संपत्ति को करोड़ों का कारोबार बना दिया। खादी और खाकी से लेकर बाहुबली और माफिया की एंट्री हो गई। इन सबके खजाने खनिज से भर रहे हैं। लेकिन इस अवैध खनन का असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। खदान में काम करने वाले मजदूरों से लेकर इलाकाई लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। किसी को अस्थमा तो किसी को टीबी जैसी गंभीर बीमारी है। वहीं, स्टोन की धूल से सिलकोसिस बीमारी का प्रकोप काफी है। इसमें शरीर में एलर्जी होती है। हर घर में बीमारी की दस्तक है। लेकिन इनकी परवाह करने वाला कोई नहीं है।
गौरतलब है कि बुंदेलखंड आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का क्षेत्र है। इस कारण यहां देशभर के बड़े-बड़े कारोबारी खनन का कारोबार करने आते हैं। इसका असर यह देखने को मिल रहा है कि बुंदेलखंड क्षेत्र के सभी 13 जिलों में हर जगह क्रेशर मशीन चलती दिख जाएगी। पर्यावरण के निर्देशों को दरकिनार कर चल रहे क्रेशर बुंदेलखंड को बीमार कर रहे हैं। महोबा का कबरई क्षेत्र अवैध खनन का गढ़ रहा है। न सिर्फ बुंदेलखंड बल्कि पूरे एशिया में कबरई सबसे बड़ी पत्थर मंडी मानी जाती है। इसकी 1979 में दो क्रेशरों से शुरुआत हुई थी। 1982 के बाद क्रेशर लगाने की होड़ लग गई। आज तीन सौ से भी ज्यादा क्रेशर यहां चल रहे हैं। रात-दिन चल रहे क्रेशर आसपास के पहाड़ों को खत्म कर रहे हैं। कबरई के मोचीपुरा और विशाल नगर के पास पहाड़ की चोटी से शुरू हुई खुदाई अब पहाड़ के कई सौ फीट नीचे गहराई तक पहुंच गई है। पानी निकल आया है। इसे पाताल तोड़ खुदाई कहते हैं।
महोबा जिले में खनन और स्टोन क्रेशर ने बुंदलेखंड को बीमारियों ने जकड़ लिया। खदान में काम करने वाले मजदूरों से लेकर इलाकाई लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं। किसी को अस्थमा तो किसी को टीबी जैसी गंभीर बीमारी है। वहीं, स्टोन की धूल से सिलकोसिस बीमारी का प्रकोप काफी है। इसमें शरीर में एलर्जी होती है। हर घर में बीमारी की दस्तक है। इसके बावजूद मजबूरी में उसी धूल में ग्रामीणों को रहना पड़ रहा है। कबरई से सटा हुआ एक डहर्रा गांव है। यहां पर पत्थर मंडी है। गांव से चंद कदम दूर हर दिन पहाड़ों में ब्लास्ट होते हैं। दिन रात डंपर पत्थरों को ढोते हैं और पास में लगे क्रेशरों में पत्थरों की कटाई होती है। ये गांव खनन और क्रेशर से बेइंतहा प्रभावित है। गांव निवासी भरत सिंह परिहार बताते हैं कि यहां हर घर में तीन चार लोग बीमार मिलेंगे। किसी को टीबी तो किसी को अस्थमा व सिलकोसिस है। भरत ने बताया कि पूरे गांव की बात करें तो तकरीबन 70 फीसदी लोग बीमार हैं। जिसकी वजह ये खनन और क्रेशर से निकलने वाली डस्ट है।
बुंदलेखंड पर खनन और क्रेशर के प्रभाव को लेकर कुछ खास शोध नहीं हुए हैं। मगर सन् 2011 में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के एसवीएस राणा, अमित पाल और शेख असदुल्ला का एक अध्ययन जर्नल ऑफ ईकोफिजियोलॉजी एंड ऑक्युपेशनल हेल्थ में प्रकाशित हुआ, जिससे यहां पर स्टोन डस्ट से होने वाली बीमारियों के बारे में अहम जानकारी मिलती है। अध्ययन के मुताबिक, खदानों और स्टोन क्रेशर में काम करने वाले 45.11 फीसदी मजदूर सांस की बीमारी से ग्रसित हैं। 43.33 फीसदी लोग त्वचा रोग, 21.53 फीसदी लोगों की सुनने की क्षमता कम हो जाती है। 14.66 फीसदी लोग दमा और 17.8 फीसदी लोग आंखों की बीमारी से ग्रसित हैं। इसी तरह इलाकाई लोगों पर भी प्रभाव पड़ा है। वो भी इन्हीं बीमारियों से जूझ रहे हैं। ये अध्ययन तीन सौ लोगों पर किया गया था। जो क्रेशर चलने वाले इलाकों व वहां काम करने वाले थे।
महात्मा गांधी ग्रामोदय विवि के महेंद्र कुमार उपाध्याय और सूर्यकांत चतुर्वेदी का एक रिसर्च पेपर इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंस एंड रिसर्च में 2016 में प्रकाशित हुआ था। अध्ययन में बुंदेलखंड के बांदा, भरतकूप और महोबा के कबरई क्षेत्र को शामिल किया गया था। इसके मुताबिक स्टोन क्रेशर से निकलने वाली डस्ट को नियंत्रित करने का कोई भी उपाय नहीं किया गया। ये डस्ट सीधे हवा में उड़ती है। जिससे दमा, अस्थमा, टीबी और त्वचा रोग हो रहा है। रिसर्च के मुताबिक कबरई के 40 फीसदी लोगों की रेडियोलॉजी रिपोर्ट असामान्य आई थी। इससे यहां के लोगों के स्वास्थ्य कितना स्वस्थ है। इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
157 स्टोन के्रशर कारखाने सील
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बुंदेलखंड क्षेत्र में बड़ी कार्रवाई की है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बुंदेलखंड के चार जिलों बांदा, चित्रकूट, महोबा और हमीरपुर में संचालित स्टोन क्रेशर कारखानों में से 157 को सील कर दिया है और उन पर 13 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बांदा स्थित कार्यालय के क्षेत्रीय अधिकारी घनश्याम दत्त ने बताया कि क्रेशर नियमों का उल्लंघन करने पर दो माह के अंदर चित्रकूट धाम मंडल बांदा के चार जिलों बांदा, चित्रकूट, महोबा और हमीरपुर में संचालित 393 में से 157 स्टोन क्रेशर कारखाने सील कर उन पर 13 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है। साथ ही नियमों का उल्लंघन करने पर 71 क्रेशर मालिकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। दत्त ने कहा कि बांदा जिले में संचालित कुल 30 क्रेशर कारखानों में से 13 को सील कर दो करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है। चित्रकूट में 75 में से 58 क्रेशर सीलकर पांच करोड़ रुपए, महोबा में 283 में से 81 क्रेशर सीलकर 5 करोड़ रुपए और हमीरपुर जिले की सभी पांच क्रेशर कारखाने सीलकर उन पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है। घनश्याम दत्त ने बताया कि कोई भी क्रेशर कारखाना बस्ती से करीब एक किलोमीटर और राष्ट्रीय राजमार्ग से 500 मीटर दूर होना चाहिए। साथ ही कारखाने में प्रतिदिन फव्वारे से पानी का छिड़काव किया जाना जरूरी है। क्रेशर कारखाने में पौधरोपण करना प्रमुख शर्त है, जबकि क्रेशर मालिकों ने इन नियमों का उल्लंघन किया है।
- सिद्धार्थ पांडे