07-Oct-2020 12:00 AM
3291
प्रदेश की औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर में भ्रष्टाचारी काकस ने सवा अरब कीमत की औद्योगिक जमीन के भू-खंड काटकर लोगों को बेच डाले। खास बात यह है कि इस जमीन को बेचने के पहले भू माफिया ने वाकायदा फर्जी दस्तावेजों के सहारे जिम्मेदार अफसरों से सांठगांठ कर सारी अनुमतियां भी हासिल कर लीं। फिलहाल भू माफिया के कारनामों में यह नया तरह का कारनामा भी जुड़़ गया है। अब तक सरकारी, सीलिंग, नजूल से लेकर गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनों के ही वारे-न्यारे करने के मामले सामने आते रहे हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब इस तरह का मामला सामने आया है। यह पूरा मामला इंदौर की चर्चित मालवा वनस्पति एवं कैमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की जमीन से जुड़ा हुआ है। इस मामले की शिकायत मिलने के बाद जब जिला प्रशासन द्वारा कमेटी बनाकर जांच कराई गई तो इस पूरे खेले की सच्चाई सामने आ गई। जांच में पाया गया कि रसूखदार माफिया ने इसके लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग और नगर निगम से भी अनुमति हासिल कर ली थी। इस खुलासे के बाद अब आरोपियों पर एफआईआर दर्ज कराने के साथ ही दी गईं अनुमतियां निरस्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। इस पूरे मामले में कई विभागों के अफसरों की मिलीभगत की बात पूरी तरह से सामने आ रही है। इसकी वजह है आम आदमी को पूरे सही दस्तावेज होने के बाद भी यह अनुमतियां लेने में उसकी चप्पलें तक घिस जाती हैं, लेकिन इन माफियाओं को न केवल आसानी से यह सभी अनुमतियां मिल गई, बल्कि उनकी लगातार बिक्री होती रही और जिम्मेदार पूरी तरह से आखें बंद किए रहे। जिला प्रशासन द्वारा मालवा वनस्पति की भूमि पर स्वीकृत कराए गए औद्योगिक प्लॉट के नक्शों की जांच के चलते प्रारंभिक तौर पर अनियमितता सामने आने के बाद जिला पंजीयक कार्यालय ने उक्त संपत्ति की खरीदी-बिक्री के पंजीयन पर रोक लगा दी है।
पिछले दिनों जिला प्रशासन ने मालवा वनस्पति की औद्योगिक जमीन पर मंजूर कराए गए नक्शे में नियमों के उल्लंघन की शिकायत मिलने के बाद उसकी जांच कराए जाने के निर्देश दिए थे। जांच के दौरान पता चला कि उक्त भूमि के एफएआर में जहां वृद्धि कराकर भारी मुनाफा कमाया गया है, वहीं इंडस्ट्रीयल बेल्ट के रूप में मंजूर कराए गए नक्शे में रोड की चौड़ाई और बगीचे की भूमि का भी ख्याल नहीं रखा गया। इन अनियमितताओं की प्रारंभिक जांच के बाद प्रशासन द्वारा पूरे मामले की जांच कर प्लॉट विक्रेताओं को जहां नोटिस दिए जाने और नक्शा निरस्त करने की कार्रवाई की जा रही है, वहीं निवेशकों और उद्यमियों को नुकसान से बचाने के लिए उक्त भूमि के प्लॉटों के पंजीयन पर भी रजिस्ट्रार कार्यालय ने फिलहाल रोक लगा दी है।
कंपनी की तरफ से डायरेक्टर पांडूरंग ने भागीरथपुरा की जमीन सर्वे नं. 81, 82 (पार्ट), 83, 84/2, 85 (पार्ट), 86/1/1 (पार्ट), 86/2, 86/3 (पार्ट) एवं 87/1/1 (पार्ट) की कुल रकबा 11.484 हैक्टेयर में से 9.584 यानी लगभग 25 एकड़ जमीन पर फ्लोटेड फैक्ट्री उपयोग हेतु 7 दिसंबर 2018 को जगह का अनुमोदन करवाया था। जिसके लिए नगर तथा ग्राम निवेश के अभिन्यास मंजूरी के बाद नगर निगम ने 13 मई 2019 को लेटेड औद्योगिक उपयोग की भवन अनुज्ञा जारी कर दी थी। इसके बाद उक्त जमीन पर डेवलपर्स फर्म ने प्लींथ तक का निर्माण किया। इसके चलते एमओएस, सडकों की चौड़ाई से लेकर अन्य अधिकतम क्षेत्र हासिल कर लिया गया, जो कि स्वीकृत एफएआर से लगभग दोगुना है। जबकि विकासकर्ता को फ्लोटेड फैक्ट्री की अनुमति के मुताबिक अलग-अलग मंजिलों पर प्रकोष्ठों का पंजीयन करवाकर विक्रय करना था, लेकिन इसकी बजाय भूखंडों की रजिस्ट्री कर बेच दिया गया।
अधिकारियों की कमेटी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में यह घोटाला 125 करोड़ से ज्यादा का है। हालांकि इसकी कीमत की गणना कलेक्टर गाइडलाइन के आधार पर की गई है, बाजार दर तो इससे अधिक है। खास बात यह है कि इस जमीन को एक बार शासकीय भी घोषित किया जा चुका था। मालवा वनस्पति एवं कैमिकल्स प्रा.लि. की भागीरथपुरा स्थित यह जमीन शुरू से विवादित रही है। इसी के चलते पूर्व में प्रशासन इसे सरकारी घोषित कर चुका था। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया जिसमें प्रशासन द्वारा मजबूत तरीके से अपना पक्ष नहीं रखने से इस संबंध में लिया गया प्रशासनिक फैसला खारिज हो गया। इस मामले की प्रकाश माहेश्वरी द्वारा की गई शिकायत की जांच में अपर कलेक्टर अजयदेव शर्मा, मुख्य नगर निवेशक निगम विष्णु खरे और संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश एसके मुदगल को शामिल किया गया था। इन अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की रजिस्ट्री पहले कभी नहीं देखी गई है। इसके लिए कागजों को बड़ी होशियारी से तैयार किया गया और गोलमोल तरीके से कहीं भूखंड, तो कहीं फ्लेटेड एरिया बेचने की बात कही गई। रजिस्ट्री में प्रत्येक भूखंड के दो क्षेत्रफल लिखे गए। फिलहाल प्रशासन ने यहां रजिस्ट्रियों पर भी रोक लगा रखी है।
400 से ज्यादा नामांतरण भी हो गए
एक तरफ ये जमीनें बिकती गईं, दूसरी तरफ बिल्डरों-रसूखदारों ने राजस्व अमले के साथ ही मिलकर नामांतरण-डायवर्जन से लेकर अनुमतियां भी हासिल कर लीं। प्रशासन ने अपनी जांच में 400 से ज्यादा इन जमीनों पर हुए नामांतरणों को भी पकड़ा, जिनमें से सर्वाधिक नामांतरण तत्कालीन नायब तहसीलदार आलोक पारे और अपर तहसीलदार अजीत श्रीवास्तव द्वारा करना पाए गए। 431 से अधिक पट्टों की जांच में तत्कालीन तहसीलदारों व अन्य अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई। शिकायत होने पर नामांतरण करने वाले ही कुछ तहसीलदारों ने स्वमोटो में धारा 32 में कुछ प्रकरणों को निरस्त करने की प्रक्रिया भी शुरू की। ज्यादातर नामांतरण 2007-08 और उसके बाद ही किए गए और फिर यह मुद्दा विधानसभा के बाद जिला योजना समिति की स्थानीय बैठक में भी जोर-शोर से उठा, जिसके चलते तत्कालीन कलेक्टर ने दोनों तहसीलदारों पारे और श्रीवास्तव को निलंबित भी कर दिया। इन दोनों ने ही 600 से अधिक पट्टों में से 400 से ज्यादा का नामांतरण किया और बताया जाता है कि पौने 200 से ज्यादा पट्टों के रिकॉर्ड भी गायब हो गए।
- लोकेंद्र शर्मा