अटकी अफ्रीकी चीतों को लाने की कवायद
01-Jul-2022 12:00 AM 804

 

मप्र के कूनो पालपुर नेशनल पार्क में अफ्रीकी चीता लाने की जारी रुकावटें दूर होने के बाद अब उसमें आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। इसकी वजह से अब एक बार फिर इसमें देरी होना तय है। दरअसल इसकी वजह है दो विभागों के बीच आपसी सहमति न बन पाने की वजह से फंड का इंतजाम नहीं हो पाना। इसकी वजह से परियोजना के लिए किए जाने वाले काम में देरी होना तय है। दरअसल अफ्रीका से चीता हवाई मार्ग से ही लाए जा सकते हैं। इसके लिए भी बड़ी राशि की जरूरत है। इसके अलावा उन्हें लाने से पहले कई अन्य तरह के कामों को भी कराया जाना जरूरी है। इसके लिए अब तक केंद्र सरकार से भी कोई फंड नहीं मिल सका है। इसके लिए इंडियन आयल कॉरपोरेशन 50 करोड़ रुपए देने को तैयार है, लेकिन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के बीच अनुबंध अटका हुआ है। इसकी वजह बताई जा रही है अनुबंध के लिए संबंधित मंत्रियों से समय न मिल पाना।

दुनिया में सबसे तेज दौड़ने वाला एशियाई चीता करीब 70 साल पहले भारत में विलुप्त घोषित किया जा चुका है, लेकिन अब फिर से इसका दीदार किया जा सकेगा। साउथ अफ्रीका से इन चीतों की पहली खेप इस साल अगस्त में लाई जा रही है। पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, इस दौरान 5-6 चीतों को दक्षिण अफ्रीका से लाया जाएगा और उन्हें मप्र के कूनो नेशनल पार्क में रखा जाएगा। ये अभयारण्य भोपाल से लगभग 340 किलोमीटर दूर चंबल क्षेत्र में 750 किलोमीटर इलाके में फैला है। पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन एशियाई चीतों को भारत लाने के लिए दक्षिण अफ्रीका के साथ समझौता हो चुका है और सभी कार्यवाही पूरी कर ली गई हैं। अब विदेश मंत्रालय से अंतिम मंजूरी का इंतजार है। दक्षिण अफ्रीका से विशेषज्ञों का एक दल 15 जून को भारत आकर चीतों को रखने की व्यवस्थाओं का निरीक्षण करेगा।

सूत्रों की माने तो इस परियोजना के लिए कॉरपोरेशन जनवरी 2022 में ही राशि देने को तैयार था। वन विभाग के एक अफसर का कहना है कि यह परियोजना केंद्र सरकार की है, लेकिन केंद्र ने अब तक कोई राशि नहीं दी है, बल्कि वन विभाग को अपने हिस्से की राशि से काम शुरू करने कह दिया था। राशि मिलने की प्रत्याशा में विभाग द्वारा टाइगर फाउंडेशन सोसायटी मद से 10 करोड़ रुपए खर्च कर कूनो पालपुर में चीता रखने के लिए बाड़े का निर्माण कराया जा चुका है। अब विभाग की नजर केंद्र से मिलने वाली राशि पर लगी हुई है। यह राशि न मिल पाने की वजह से आगे के काम शुरू नहीं हो पा रहे हैं। दरअसल परियोजना में सबसे बड़ा खर्च अब अफ्रीका से चीता लाने पर होना है।

दरअसल, कतर हवाई अड्डे से दिल्ली तक चीता हवाई जहाज से लाने के बाद उन्हें करीब 500 किमी की दूरी सड़क मार्ग से तय करनी होगी। इसके लिए राशि का इंतजाम किए बगैर कोई कदम नहीं उठाया जा सकता है। ऐसे में अगर इंडियन आयल कॉरपोरेशन से ही राशि मिल जाती है, तो समय पर चीता लाना संभव हो सकेगा। गौरतलब है कि पार्क में इन चीतों के लिए 5 वर्ग किलोमीटर के एनक्लोजर (बाड़ा) में रखने की तैयारी है। अफ्रीकी दल ने कूनो नेशनल पार्क का जायजा लेने के बाद किए गए प्रबंधों की तारीफ की है। इस दल ने चीतों के भोजन की जानकारी ली और खुले मैदान देखने के बाद व्यवस्थाओं का जायजा भी लिया। इस दौरान दल के सदस्यों ने कूनो में चीता के भोजन के लिए मौजूद वन्यजीवों की जानकारी ली, वहीं खुले वनक्षेत्र का जायजा लिया। दल के सदस्यों ने कहा कि चीता प्रोजेक्ट के लिए यह अनुकूल जगह है। कूनो नेशनल पार्क में चीतों के लिए सुरक्षा, शिकार और आवास के लिए अपने क्षेत्रफल की वजह से पूरी तरह से उपयुक्त है। चीते के रहने के लिए 10 से 20 वर्ग किमी एरिया और उनके प्रसार के लिए पर्याप्त जगह होना चाहिए। यह सभी चीजें कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में मौजूद है।

सरकार की योजना नए सिरे से चीता बसाने की है, जिसके लिए दो देशों से उन्हें लाया जाना है। इसमें दक्षिण अफ्रीका से 12 और नामीबिया से 8 चीता लाने की तैयारी है। कूनों में बनाए गए बाड़े में 10 से 12 चीते एक साथ रखे जा सकते हैं। इसी माह प्रदेश के दौरे पर आए विदेशी विशेषज्ञों ने कूनों के बाद राजस्थान की मुकुंदरा हिल्स को भी इनके लिए उपयुक्त माना है। यह बात अलग है कि राजनीतिक कारणों से मुकुंदरा हिल्स में चीता बसने के लिए सहमति नहीं बन पा रही है। जबकि नौरादेही और गांधी सागर अभयारण्यों में अभी काफी तैयारी की जाना जरूरी है। ऐसे में कूनो पालपुर नेशनल पार्क में ही चीते बसाने की उम्मीद बढ़ गई है।

अगस्त में लाने की तैयारी

मप्र सरकार चाहती है कि इस काम को जल्द ही पूरा कर लिया। यही वजह है कि प्रदेश सरकार का प्रयास है कि अगस्त माह के अंत तक चीते लाकर पार्क में छोड़ दिए जाएं। यह बात अलग है कि सरकार की इस मंशा से विशेषज्ञ सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि वर्षाकाल में चीता लाना और उन्हें नई जगह पर बसाना उचित नहीं होगा। चीता हमारे लिए नया वन्य प्राणी है। उसके बारे में हम बहुत ज्यादा नहीं जानते हैं। दरअसल देश में 1952 में चीता विलुप्त हो गया था। यह चीते एक छोटी सी छलांग में 80 से 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार में दौड़ सकता है। इसी स्पीड से 460 मीटर तक लगातार दौड़ सकता है। खास बात यह है कि 3 सेकंड में ही 103 की रफ्तार पकड़ लेता है। चीता एक बार में 23 फीट की एक लंबी छलांग लगा सकता है। वह दौड़ते वक्त आधे से अधिक समय हवा में रहता है। 

-धर्मेंद्र सिंह कथूरिया

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