आपदा में सियासी खुमारी
17-Apr-2020 12:00 AM 967

 

इ स समय विश्व कोरोना वायरस की बीमारी से लड़ रहा है। ऐसे में बिहार में इस आपदा काल में भी सियासी खुमारी छाई हुई है। पार्टियां इस विपदा की घड़ी में भी राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आ रही हैं। दरअसल, बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए राजनीतिक पार्टियां अभी से तैयारी में जुट गई हैं। जहां कुछ पार्टियां गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरने की रणनीति पर काम कर रही हैं, वहीं कुछ अकेले। बात अगर सत्तारूढ़ जदयू और भाजपा की करें तो दिल्ली चुनाव से यह संकेत मिल गया है कि दोनों पार्टियां बिहार चुनाव भी मिलकर लडें़गी। दिल्ली के सियासी दंगल में भाजपा नेताओं ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद कार्ड के जरिए ध्रुवीकरण का खुला खेल खेला। लेकिन बिहार में सुशासन बाबू नीतीश कुमार ऐसा नहीं करने देंगे।

बिहार विधानसभा चुनाव दो दलों के बजाय दो गठबंधनों के बीच होने की संभावना है। एनडीए में भाजपा के अलावा जेडीयू और एलजेपी हैं और दूसरी ओर महागठबंध में आरजेडी, कांग्रेस, आरएलएसपी और कुछ अन्य छोटी पार्टियां होंगी। इसके अलावा जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार इन दिनों बिहार में काफी सक्रिय हैं और सीएए के खिलाफ लगातार बड़ी-बड़ी जनसभाएं कर रहे हैं, ऐसे में वामपंथी दल भी मैदान में किस्मत अजमाने उतरेंगे। नीतीश कुमार से बगावत कर जेडीयू का साथ छोड़ चुके पूर्व राज्यसभा सदस्य अली अनवर कहते हैं कि नीतीश कुमार ने लगभग ढाई दशक तक भाजपा का पार्टनर रहते हुए अपनी छवि को सेकुलर बनाकर रखा था लेकिन हाल ही में जिस तरह से तीन तलाक, सीएए और अनुच्छेद 370 पर अपने स्टैंड बदले हैं, उससे साफ जाहिर है कि उन्होंने भाजपा के सामने सरेंडर कर दिया है। ऐसे में उनका असली चेहरा लोगों के सामने आ गया है और अब उनका सेकुलर मुखौटा उतर चुका है। नरेंद्र मोदी के साथ सवारी ही नहीं बल्कि उनकी राह पर चल रहे हैं। पवन वर्मा और प्रशांत किशोर को पार्टी से बाहर कर नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि उनकी सियासी राह भाजपा के एजेंडे पर आगे बढ़ेगी।

अली अनवर कहते हैं कि बिहार में भाजपा ने पहले ही नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है। नीतीश कुमार अपने काम और सुशासन के नाम पर तीन चुनाव जीत चुके हैं और अब उनके पास कुछ नया बताने के लिए नहीं है। वहीं, मौजूदा समय में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पास उपलब्धि के तौर पर धारा 370, नागरिकता संशोधन कानून और राम मंदिर जैसे मुद्दे हैं। इसके सिवा कोई विकास के काम नहीं हैं। इसीलिए भाजपा नेता बिहार विधानसभा चुनाव में इसी एजेंडे को लेकर मैदान में होंगे।

वहीं, राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि दिल्ली की तर्ज पर बिहार में भी सारे संशाधनों और प्रचार तंत्र के स्तर पर चुनाव लड़ा जाएगा लेकिन कंटेंट अलग होगा। नीतीश कुमार के चेहरा होगा तो भाजपा का संगठन होगा और नरेंद्र मोदी के कामों के बखान भी होंगे। जेडीयू भाजपा के उग्र हिंदुत्व वाले बयान देने वाले नेताओं की वजह से असहज रहती थी, लेकिन अब ये नीतीश के लिए मायने नहीं रखता है। वह कहते हैं कि बिहार का चुनाव नीतीश कुमार के एजेंडे पर लड़ा जाएगा। पीएम मोदी भले ही हिंदुत्व की बात न करें, लेकिन उनके नेता जरूर करेंगे। 2015 के चुनाव में भी भाजपा के कुछ नेताओं ने पाकिस्तान, गोहत्या और गाय की सुरक्षा को बड़ा मुद्दा बनाया था। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस बार वो न करें।

विश्लेषक कहते हैं कि पीएम मोदी और भाजपा के लिए हिंदुत्व कोई मुद्दा नहीं बल्कि चुनाव जीतना ही अहम मुद्दा है। यही बात अब नीतीश कुमार पर ही लागू होती है कि उनको डेवलपमेंट से अब कोई लेना-देना नहीं रह गया है। भाजपा बिहार में अपने बल पर राज नहीं कर सकती है तो नीतीश कुमार उनके लिए जरूरी हैं। वहीं, नीतीश कुमार अपने बल पर चुनाव नहीं जीत सकते हैं तो उनके लिए एक सहारे की जरूरत है। वह कहते हैं कि नीतीश कुमार की अब वो सियासी हैसियत नहीं रह गई है कि वो संगठन और विचारधारा के स्तर पर सियासी लड़ाई लड़ें। भाजपा और नीतीश के बीच दोस्ती एक अंधे और एक लंगड़े जैसी है, जो एक-दूसरे के बिना किसी काम के नाम नहीं है। नीतीश शुरू से कभी जार्ज के मत्थे, तो कभी लालू के सहारे और तो और कभी भाजपा के कंधे पर सवार होकर सियासत करते रहे हैं। इसीलिए उन्हें किसी भी विचारधारा से कोई परहेज नहीं है।

कयामत में भी सियासत

बिहार देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां हर बात में राजनीति होती है। ये बिहार है, आपदा-विपदा तो छोड़ दीजिए, यहां तो कयामत के दिन भी सियासत ही होगी। ऐसे में कोरोना संकट राजनीति से अछूता कैसे रह सकता है। कोरोना नाम के कातिल वायरस की महामारी से दुनिया तंग तबाह है। सबकी कोशिश यही है कि जल्द से जल्द यमदूत बने कोविड-19 से छुटकारा पाया जाए। लेकिन बिहार में तो इसी साल चुनाव होने हैं। इसे श्राप कहें या वरदान कि बिहार की माटी में ही राजनीति रची-बसी है। जाहिर है कि इस कातिल वायरस के कहर के बीच भी सियासत का होना तय है। कोई भी दल इससे अछूता नहीं है। शुरूआत धुरंधरों से करते हैं। जदयू के एक नेता की शराब के साथ नाचते हुए तस्वीरें वायरल हो गईं। ऐसे में कोरोना हो या प्रलय, नेता प्रतिपक्ष मौका कैसे चूक सकते थे। लिहाजा इन्होंने धांय से एक री-ट्वीट कर दिया। पार्टी ने वीडियो डाला और तेजस्वी ने सीएम नीतीश समेत पूरी सत्ताधारी पार्टी को घेर लिया। इन्हें बखूबी मालूम था कि ये ट्वीट अभी नहीं तो इसी साल चुनाव के वक्त तो पक्का काम आएगा। अब छोटे भाई ने सियासत शुरू की तो बड़ा भाई भला कैसे चुप रहता। लिहाजा लगे हाथ तेजप्रताप ने कोरोना भूल गमछे पर ही अपना राजनीतिक ध्यान केंद्रित कर दिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन ट्वीट्स का कोई जवाब नहीं दिया। हो सकता है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद की मर्यादा का ख्याल आ गया हो। लेकिन उनके डिप्टी कैसे चुप रहते, खासकर तब जब रोज शाम में ट्वीट की बौछार करने की आदत हो। वैसे भी सियासत एक तरफा हो नहीं सकती, लिहाजा सुशील मोदी ने लगे हाथ गमछे पर ही विपक्ष को लपेटना शुरू कर दिया।

- विनोद बक्सरी

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^