8 हजार गर्भवती महिलाएं लापता
07-Oct-2020 12:00 AM 289

 

पीसीपीएनडीटी एक्ट लागू करने के बाद एक-एक गर्भवती महिला का रिकॉर्ड स्वास्थ्य विभाग द्वारा रखा जाता है। दरअसल डॉक्टर की सलाह पर गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी करवाई जाती है, जिसके जरिए ये रिकॉर्ड मिलता है, क्योंकि सोनोग्राफी करवाते वक्त गर्भवती महिला से फार्म एफ भरवाया जाता है, जिसमें नाम, पता, उम्र, मोबाइल नंबर भी दर्ज रहता है। इसका उद्देश्य यह है कि कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाई जाए, क्योंकि सोनोग्राफी के जरिए लिंग पता लगाकर बड़े पैमाने पर कन्या भ्रूण हत्या प्रदेश सहित देशभर में होती रही है। उसी की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने यह एक्ट बनाया और सभी सोनोग्राफी सेंटरों को इसके दायरे में लिया गया है। प्रशासन ने समीक्षा के दौरान पाया कि बीते 3 सालों का 8 हजार गर्भवती महिलाओं का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। लिहाजा अब कागजों पर लापता इन गर्भवती महिलाओं की तलाश करवाई जा रही है।

कुछ साल पहले तक सोनोग्राफी सेंटरों पर आसानी से लिंग परीक्षण हो जाता था, जिसके चलते लड़के और लड़कियों की जन्म दर में काफी अंतर आने लगा। देश के कई क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहां 100 लड़कों के जन्म पर 70 से 80 लड़कियों की ही जन्म दर रह गई। इसके पश्चात केंद्र सरकार ने पीसीपीएनडीटी एक्ट बनाया, जिसमें लिंग परीक्षण पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया और ऐसा करने वाले चिकित्सकों, सोनोग्राफी सेंटरों को सजा और जुर्माने के दायरे में लाया गया और गर्भपात करवाने वालों को भी सजा देने के कठोर कानूनी नियम बनाए गए। इतना ही नहीं, एक-एक सोनोग्राफी मशीन पर शासन-प्रशासन ने चिप लगवाई, ताकि हर सोनोग्राफी की ट्रैकिंग की जा सके।

दरअसल डॉक्टरों की सलाह पर गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी करवाई जाती है, लेकिन उन सभी का रिकॉर्ड स्वास्थ्य विभाग रखता है और निजी, सरकारी अस्पतालों से लेकर जितने भी निजी सोनोग्राफी सेंटर, लैब हैं उन सभी को लाइसेंस देते वक्त पीसीपीएनडीटी एक्ट का कड़ाई से पालन करने की हिदायत भी दी जाती है और सभी सेंटरों पर लिंग परीक्षण प्रतिबंधित है। इस आशय के सूचना बोर्ड भी लगवाए गए हैं। हालांकि चोरी-छुपे लिंग परीक्षण की शिकायतें सामने आती हैं, जिसके चलते प्रशासन पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत सोनोग्राफी सेंटरों को सील और संबंधित डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई भी करता है। अभी प्रशासन को समीक्षा के दौरान यह तथ्य पता चला कि बीते 3 सालों में गर्भर्वती महिलाओं की जितनी भी सोनोग्राफी हुई उसकी तुलना में उनके भौतिक सत्यापन की रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है। इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह के निर्देश पर अपर कलेक्टर और पीसीपीएनडीटी के प्रभारी पवन जैन ने इस मामले की जांच शुरू की।

स्वास्थ्य विभाग में पीसीपीएनडीटी सेल गठित है और जिला एवं महिला बाल विकास अधिकारी इसके प्रभारी रहते हैं। पीसीपीएनडीटी ने वर्ष 2018 में 6549 गर्भवती महिलाओं की सूची ई-मेल के जरिए प्रशासन को भेजी, जिनमें से लगभग साढ़े 4 हजार गर्भवती महिलाओं की जानकारी अभी तक प्राप्त नहीं हुई। इसी तरह वर्ष 2019 में 5 हजार 115 और वर्ष 2020 में मार्च के महीने तक ही 660 गर्भवती महिलाओं की जानकारी दी गई। इनमें से साढ़े 3 हजार गर्भवती महिलाओं की जानकारी बाद में अप्राप्त रही। इस तरह इन तीन सालों में ही लगभग 8 हजार गर्भवती महिलाओं की जानकारी नहीं मिली। एक्ट के तहत गठित जिला सलाहकार समिति के सदस्यों ने भी पूर्व की बैठकों में गर्भवती महिलाओं का भौतिक सत्यापन कर जानकारी उपलब्ध कराने को कहा। बावजूद इसके अभी तक प्रशासन को यह जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी। लिहाजा जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी डॉ. सीएल पासी को नोटिस भी थमाया गया है कि वह 15 दिन में इस साल और पूर्व के वर्षों की लंबित गर्भवती महिलाओं के भौतिक सत्यापन की जानकारी उपलब्ध करवाएं। संभवत: इनमें से कुछ महिलाओं के गर्भपात हुए होंगे, वहीं कई महिलाओं ने अन्य शहर यानी मायके में जाकर डिलेवरी करवाई होगी तो कई ग्रामीण क्षेत्रों में तो घरों में ही प्रसव हो जाते हैं। अपर कलेक्टर पवन जैन का कहना है कि बीते 3 सालों का रिकॉर्ड अपडेट कराया जा रहा है, ताकि हकीकत सामने आ सके। इसका एक उद्देश्य मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी लाना भी है, क्योंकि घरों में प्रसव होने पर मां और नवजात बच्चे को खतरा रहता है। यही कारण है कि शासन-प्रशासन लगातार संस्थागत प्रसव, यानी अस्पतालों में डिलेवरी को प्रोत्साहित करता रहा है। इसके लिए अतिरिक्त पारिश्रमिक से लेकर जननी एक्सप्रेस के जरिए वाहन सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है।

कोरोनाकाल में घट गई थी सिजेरियन डिलेवरी

कोरोनाकाल में वायु, ध्वनि सहित अन्य प्रदूषणों से राहत मिली, क्योंकि कर्फ्यू-लॉकडाउन के कारण पूरा देश ही बंद रहा। वहीं इस दौरान यानी अप्रैल-मई के महीने में इंदौर सहित देशभर में सिजेरियन डिलेवरी की संख्या भी घट गई। बीते कुछ वर्षों में सामान्य के बजाय ऑपरेशन के जरिए अधिक डिलेवरी करवाई जाती है, ताकि निजी अस्पतालों में डॉक्टर और अन्य इलाज का बिल अधिक वसूल किया जा सके। कोरोना काल में चूंकि अधिकांश अस्पताल और डॉक्टर काम पर कम थे, लिहाजा सिजेरियन, यानी ऑपरेशन से डिलेवरी की संख्या घटी और सामान्य डिलेवरी बढ़ गई। उसके बाद हालांकि फिर सिजेरियन डिलेवरी ज्यादा होने लगी हैं। पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत जिन निजी या सरकारी अस्पतालों या पैथालॉजी लैब में सोनोग्राफी मशीन लगी है, उनका पंजीयन स्वास्थ्य विभाग से कराना अनिवार्य है। हर सोनोग्राफी मशीन पर ट्रैकिंग डिवाइस लगाई जाती है, जिससे एक-एक गर्भवती महिला की सोनोग्राफी का रिकॉर्ड रखा जाता है।

 - अरविंद नारद

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