02-Jan-2016 07:42 AM
1236464
पिछले साल 390 ट्रेप (रंगे हाथों रिश्वत लेने के) केस बने थे, जबकि इस साल ये संख्या 403 पहुंच चुकी है। बरामद राशि भी 38 लाख से बढ़कर 52 लाख पहुंच चुकी है। छापे की संख्या जरूर बीते साल के 38 से घटकर 23 रह गई है। इस बार

पद के दुरुपयोग के मामले तेजी से बढ़े हैं। संगठन ने 179 नए प्रकरण दर्ज कर जांच शुरू की है।
घूस लेते रंगे पकड़े जाने वालों के प्रति सरकार का रवैया कैसा है, ये अभियोजन के मामलों से समझा जा सकता है। लोकायुक्त कार्यालय इन अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अनुमति मांग रहा है पर इजाजत नहीं दी जा रही है। अभी कुछ माह पहले ही लोकायुक्त संगठन ने मुख्य सचिव को 400 भ्रष्ट अफसरों की सूची भेजते हुए कहा है कि कार्रवाई न होने से सरकार की छवि खराब हो रही है। तत्काल कार्रवाई के बजाय उन अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित नहीं किया गया, जिनके खिलाफ दो साल पहले चालान पेश किया जा चुका है। लोकायुक्त पुलिस महानिदेशक अजय शर्मा ने मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा को भेजे गए पत्र में कहा है कि भ्रष्ट अधिकारियों के पद पर बने रहने से साक्ष्यों को प्रभावित करने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। भ्रष्ट अफसरों की सूची में आईएएस रमेश थेटे अपर सचिव नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग के 23 प्रकरण भी शामिल हैं। शर्मा ने लिखा है कि 200 मामले ऐसे हैं जिनमें सरकार लंबे समय से अभियोजन स्वीकृति दबाकर बैठी है। 100 मामलों में चालान पेश होने के बाद भी भ्रष्ट कर्मचारी नौकरी कर रहे हैं। 114 अधिकारी ऐसे भी हैं, जिन्हें कोर्ट से भ्रष्टाचार सहित अन्य मामलों में सजा हो चुकी है, लेकिन वे जमानत लेकर नौकरी कर रहे हैं। लोकायुक्त नावलेकर ने भी 12 जनवरी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर सरकार द्वारा भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारियों को संरक्षण देने पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि ऐसे में सुशासन और जीरो टालरेंस की बात सोचना भी बेमानी है। जस्टिस पीपी नावलेकर कहते हैं कि रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़े जाने वालों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति न मिलना समझ से परे है। मुख्य सचिव से ऐसे मामलों में तत्परता से कार्रवाई करने पत्र लिखा है। हमें भरोसा दिलाया गया है कि जल्द ही लंबित प्रकरणों का निराकरण होगा।
पिछले सालों में रिश्वत लेते या अन्य भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़ाए अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने के कारण भ्रष्ट लोगों में किसी भी प्रकार का डर नहीं है। इसलिए भ्रष्टाचार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। लोकायुक्त पुलिस का सालभर का रिकार्ड देखने से साफ है कि रिश्वत लेने के मामले में पटवारी सबसे आगे हैं। इनके खिलाफ ही प्रदेश में सर्वाधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इसके बाद पंचायत सचिव का नंबर आता है। संगठन अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक काम इन्हीं दोनों से पड़ता है। रिश्वत के मामले सर्वाधिक इंदौर संभाग में सामने आए हैं। यहां अभी तक 89 प्रकरण दर्ज किए गए हैं, जबकि भोपाल में 52, ग्वालियर 41 और जबलपुर में 46 अधिकारी-कर्मचारी रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़ाए हैं। विशेष स्थापना पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक अशोक अवस्थी का कहना है कि संगठन के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है। शासकीय कार्यालयों के बाहर रिश्वत मांगने या लेते देखने पर सूचना देने के पोस्टर चस्पा करना भी फायदेमंद रहा है। एक साल में शिकायतों की संख्या काफी बढ़ गई है। शिकायत की पुष्टि होने के बाद कार्रवाई की जा रही हैं। यही कारण है कि अधिकांश मामलों में दोषियों को अदालत से सजा मिल रही है।
भ्रष्ट अफसरों की सोशल मीडिया पर खुली पोल
पिछले तीन माह में सोशल मीडिया पर भी कई भ्रष्ट अफसरों की पोल खुल चुकी है। प्रमुख सचिव, विभाग प्रमुख से लेकर कलेक्टर तक पर मैदानी अफसरों से डिमांड करने के आरोप लग चुके हैं। हालत ये है कि सरकार में छह अपर मुख्य सचिव में से तीन सोशल मीडिया से सामने आए भ्रष्टाचार की जांच कर रहे हैं। ताजा मामला पीडब्ल्यूडी के एसडीओ अरूण मिश्रा ने कार्यपालन यंत्री रमाकांत तिवारी पर प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल के लिए वसूली करने का ऑडियो वायरल होने का है। इसकी जांच लोकायुक्त पुलिस रीवा कर रही है। इसके पूर्व आदिम जाति कल्याण आयुक्त जेएन मालपानी का ऑडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे खुलेआम मैदानी अफसर से अकेले खाने पर बदहजमी की बात कह रहे थे। प्रकरण की जांच अपर मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया कर रहे हैं। उन्होंने अभी रिपोर्ट नहीं सौंपी है। इसी तरह आईएफएस अफसर अजीत श्रीवास्तव का भी ऑडियो वायरल हुआ था।
-भोपाल से अजयधीर