मेट्रोपोलिटन एरिया यानी महानगर क्षेत्र गठित करने का निर्णय शिवराज कैबिनेट ने गत दिनों लिया, जिसमें इंदौर महानगर क्षेत्र में महू और पीथमपुर को शामिल किया गया, लेकिन उज्जैन, देवास को छोड़ दिया। बीते 10 सालों से इसकी कवायद चल रही है, जिसमें कई मर्तबा परिवर्तन भी किए गए। पूर्व कमलनाथ सरकार ने 2 हजार वर्ग किलोमीटर के लिए इंदौर मेट्रोपोलिटन अथॉरिटी बनाने की घोषणा की थी, मगर निर्णय पर अमल करने से पहले ही सरकार धराशायी हो गई और अब उपचुनावों में फायदा लेने के लिए फिर इस तरह की घोषणा की गई। दरअसल मेट्रो रेल प्रोजेक्ट को अमल में लाने के लिए इंदौर और भोपाल को मेट्रोपोलिटन एरिया घोषित करना जरूरी है।
इंदौर को महानगर बनाने के दावे सालों से होते रहे हैं। अब तो 40 लाख तक जिले की आबादी पहुंच गई है, जिसमें पुलिस कमिश्नरी को भी लागू करने का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में पड़ा है। वहीं मेट्रो प्रोजेक्ट का काम भी धीमी गति से चल रहा है। वैसे भी संविधान के 76वें संशोधन के प्रावधानों के मुताबिक 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले जिलों को महानगर के रूप में विकसित किया जाना है, जिसमें आसपास के जिलों, पालिकाओं, पंचायतों को जोड़ा जा सकता है। मास्टर प्लान की संरचना में भी राऊ, महू, नगरीय भाग से लेकर बेटमा, पीथमपुर, देपालपुर, मांगलिया, सांवेर को शामिल किया गया है। इंदौर को महानगर घोषित करने की पहल प्रबुद्ध वर्ग, मीडिया से लेकर राजनीतिक दलों द्वारा लगातार की जाती रही है, मगर उसके प्रावधानों को लागू करने से सरकार बचती रही है, जिसमें कर्मचारियों के महंगाई भत्ते से लेकर उन्हें महानगरों की तर्ज पर दी जाने वाली सुविधाएं भी शामिल हैं।
अब देखना यह है कि इस बार भी चुनावी घोषणा ना साबित हो जाए, क्योंकि भाजपा की पूर्व सरकार की पूर्व कैबिनेट में मई 2018 में यह प्रस्ताव आया था, लेकिन तब विधानसभा चुनाव को देखते हुए इसे टाल दिया था। अभी भी मेट्रो अथॉरिटी के अधिकार और उसका किस तरह से क्रियान्वयन होगा यह स्पष्ट नहीं है। चूंकि इंदौर-भोपाल में मेट्रो प्रोजेक्ट शुरू हो चुका है, जिसके चलते केंद्र का मेट्रो एक्ट लागू करना जरूरी है। पहले इसमें 2000 वर्ग किलोमीटर का एरिया शामिल किया गया था, जिसे अब घटा दिया है। हालांकि इसमें भी विसंगति रहेगी। और प्रशासनिक व कानूनी व्यवस्था संभवत: पुरानी ही चलेगी।
पूर्व कमलनाथ सरकार ने 2 हजार वर्ग किलोमीटर के लिए इंदौर मेट्रोपोलिटन एरिया का प्रस्ताव तैयार किया था, जिसमें इंदौर के साथ-साथ महू, पीथमपुर, देवास, उज्जैन को शामिल किया गया, लेकिन अब इसमें से देवास और उज्जैन को हटाकर 1200 वर्ग किलोमीटर में सीमित किया गया है, यानी 800 वर्ग किलोमीटर कम कर दिया गया। अब नए तय किए गए 1200 वर्ग किलोमीटर के मुताबिक मेट्रोपोलिटन अथॉरिटी बनाई जाएगी। हालांकि जानकारों का कहना है कि पुराने प्रस्ताव के मुताबिक ही पूरे एरिया को शामिल करना था, क्योंकि इससे महू-पीथमपुर जोन तो विकसित हो जाएगा, लेकिन धार रोड, उज्जैन रोड के लिए योजनाएं नहीं बन सकेंगी, जबकि मेट्रो का विस्तार भी उज्जैन-देवास तक किया जाना था, तब ही पूरी विंग में विकास बेहतर तरीके से संभव होता, लेकिन अब महू-पीथमपुर नगरीय निकायों और पंचायतों को ही शामिल किया गया है।
74वें संविधान संशोधन के मुताबिक आबादी के मान से इंदौर को वर्षों पहले ही महानगर घोषित किया जाना था, क्योंकि नगर निगम क्षेत्र में अधिकतम 70 वार्ड ही हो सकते हैं, लेकिन प्रदेश शासन ने विशेष नियमों के तहत ही इंदौर और भोपाल में निगम वार्डों की संख्या बढ़ाई गई और इंदौर निगम की सीमा बढ़ाने के साथ ही वार्डों की संख्या 85 कर दी गई, जिसके चलते कई वार्ड बढ़े और ज्यादा आबादी के भी हो गए, मगर अब वार्डों की संख्या और अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती, जिसके चलते अब मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी का गठन अनिवार्य हो गया है। इसमें नगर निगम और अधिक ताकतवर होगा ही, वहीं प्राधिकरण का भी वैसे तो निगम में विलय होना था, मगर अब शिवराज सरकार इस बारे में क्या निर्णय करती है इसका खुलासा आने वाले दिनों में होगा, जब अथॉरिटी के गठन का पूरा प्रोजेक्ट तैयार किया जाएगा।
एक साल बाद भी इंदौर मेट्रो का एक पिलर तक नहीं
इंदौर को मेट्रोपोलिटन सिटी बनाने की तैयारी चल रही है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इंदौर मेट्रो की रफ्तार थमी हुई है। इसकी वजह यह है कि प्रोजेक्ट को लेकर जनरल कंसल्टेंट और दिलीप बिल्डकॉन के बीच विवाद चल रहा है। गत दिनों मप्र मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के टेक्निकल डायरेक्टर जितेंद्र दुबे इंदौर पहुंचे तो उनके सामने ही कॉन्ट्रैक्टर कंपनी दिलीप बिल्डकॉन और जनरल कंसल्टेंट के प्रतिनिधि आमने-सामने हो गए। दिलीप बिल्डकॉन ने देरी के लिए कंसल्टेंट को जिम्मेदार ठहराया। दरअसल, इंदौर के साथ भोपाल मेट्रो में भी विदेशी कंसल्टेंट हैं। इंदौर मेट्रो के शुरुआती दौर में इटली के कंसल्टेंट गेबरियेले थे। उनके बाद जॉन आए। इसके बाद एक और जॉन रहे और अब साइमन शॉरी कंसल्टेंसी दे रहे हैं। वे लॉकडाउन के पहले से साउथ अफ्रीका में हैं और वहीं से ऑनलाइन मीटिंग कर रहे हैं। नागपुर मेट्रो के एमडी कहते हैं कंसल्टेंट के भरोसे काम छोड़ने से कुछ नहीं होगा। कंसल्टेंट तो चाहते ही हैं कि काम लंबा खिंचे और उनका कॉन्ट्रेक्ट रिन्यू होता रहे। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें फॉलो न करते हुए लीड करें। जनरल कंसल्टेंट के 72 कर्मचारियों को तनख्वाह दी जाना है। विडंबना यह है कि इंदौर की मेट्रो की कंसल्टेंसी साउथ अफ्रीका में बैठा कंसल्टेंट दे रहा है। इसके पहले तीन विदेशी कंसल्टेंट एमपीएमआरसी द्वारा बदले जा चुके हैं।
- राकेश ग्रोवर