
क्योंकि पुलिस और एसएफआई भिन्न-भिन्न बयान दे रहे हैं। एसएफआई का कहना है कि पुलिस ने एक छोटी सी बस में बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों को भर दिया था जिस कारण सुदीप्तो की मृत्यु हो गई। वहीं सुदीप्तो की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके शरीर पर घाव पाए गए। जिससे शक गहरा गया। इस बीच एसएफआई ने दक्षिण कोलकाता के इलाकों में बारह घंटे के बंद के दौरान जमकर प्रदर्शन किया। जिससे पूरा प्रदेश थर्रा गया। सारे प्रदेश में वामदलों की छात्र इकाइयां प्रदर्शन और चक्काजाम करने लगीं जो अभी भी जारी है। पुलिस और ममता बनर्जी ने इसे एक दुर्घटना बताया है। ममता बनर्जी को मृतक के परिवार के साथ सहानुभूति तो है पर इसके साथ ही वे इस घटना को मामूली घटना बताकर खारिज करना चाह रही हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि घटना की जांच किस एजेंसी द्वारा की जाएगी। पुलिस ने सुदीप्तो की मृत्यु के बाद एक बस चालक को गिरफ्तार कर उस पर लापरवाही से बस चलाने का आरोप लगाया है। सुदीप्तो की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया है कि उसके शरीर पर चोट के पांच निशान थे। यह निशान सिर के पीछे, कान, आंख और गले के पास भी थे। उनके गले में पत्थर के दो छोटे टुकड़े अटके पाए गए थे। सिर के पीछे और दोनों कानों के पास किसी भारी चीज से हमला किया गया है। इन घावों से लगातार खून बहता रहा जिससे सुदीप्तो को मृत्यु हो गई। इस बीच एसएफआई के कार्यकर्ता रहे सुदीप्तो की बहन सुनीता सेन गुप्ता ने यह कहकर नया विवाद खड़ा कर दिया है कि कालेजों में राजनीति बंद होनी चाहिए। सुनीता का आरोप है कि वामपार्टियां युवाओं को भड़काती हैं जिसके फलस्वरूप वे हिंसा करते हैं और कई बार हिंसा के कारण कुछ निर्दोष जाने भी चली जाती हंै। सुनीता का मानना था कि कॉलेजों में केवल पढ़ाई होनी चाहिए राजनीति नहीं। सुनीता के इस बयान से ममता बनर्जी को थोड़ी राहत मिलने की आशा है। क्योंकि ममता बनर्जी भी कालेजों में राजनीति की पक्षधर नहीं हैं।
यूं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने तीखे तेवरों को अपनी राजनीति का यूएसपी (यूनीक सेलिंग प्वाइंट) बना लिया है और इसके कई फायदे उन्होंने लिए। सिंगूर और नंदीग्राम में टाटा के नैनो कार कारखाने के खिलाफ उनका अनशन, विरोध-प्रदर्शन देश ने देखा, इसके बाद से ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर में निर्णायक मोड़ आया। केंद्र सरकार का हिस्सा रहते हुए भी उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर अपने विरोध की आवाज बुलंद रखी। प.बंगाल की जनता ने तीन दशकों की वाम मोर्चा सरकार के मुकाबले उन्हें चुना तो उनके तेवरों में और उग्रता आयी। बांग्लादेश के साथ तीस्ता जल समझौता हो या रेल किरायों में बढ़ोत्तरी, ममता बनर्जी की मनमानी के आगे सब असहाय नजर आए। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि सुश्री बनर्जी का यह रवैया तानाशाही प्रवृत्ति में तब्दील होता जा रहा है। प.बंगाल में उनका शासन करने का तरीका जागीरदारी की तरह लग रहा है, जिसमें केवल उनकी मर्जी चलेगी और जो उसका विरोध करेगा, वह परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे। यही कारण है कि उन्होंने छात्र संघ के चुनाव स्थगित करने का फैसला लिया और उसके विरोध में उतरने वाले छात्र संगठनों पर पुलिस से बल प्रयोग करवाया।
इंद्रकुमार बिन्नानी